Yogini Ekadashi Vrat Aarti: आज योगिनी एकादशी के पावन दिन पर भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने का विशेष महत्व है. इस व्रत को अच्छे भावनाओं और शुद्ध विचारों के साथ अनुसरण करके भक्त विष्णु भगवान के आशीर्वाद में सम्मानित होते हैं. हिंदू धर्म में योगिनी एकादशी का महत्व अधिक है, क्योंकि इस दिन व्रत रखने से मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता मिलती है, जो आत्मा के विकास में महत्वपूर्ण है. भगवान विष्णु की पूजा और आराधना से व्यक्ति को उच्च आध्यात्मिक अनुभव की प्राप्ति होती है, जो उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है. एकादशी के व्रत से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति का संचार होता है. योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आरती करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनकी कृपा प्राप्त होती है. इस दिन का उपयोग करके भक्त अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं और भगवान के दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं. इसी तरह, योगिनी एकादशी व्रत अनुष्ठान साधक को आध्यात्मिक सुधार और शांति की अद्वितीय अनुभूति दिलाता है. आइए जानते है कि इस विशेष अवसर पर भगवान विष्णु की आरती करने व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा से भर सकते हैं और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं.
योगिनी एकादशी के भोग (Yogini Ekadashi Ke Bhog)
भगवान विष्णु को पंचामृत प्रिय है, योगिनी एकादशी पर पूजा के अंत में प्रभु को पंचामृत का भोग जरूर लगाएं. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी और श्री हरि प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा भोग के लिए खीर भी बना सकते हैं. इसका भोग लगाने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और इंसान को आरोग्य की भी प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु को केला प्रिय है. प्रभु को केला का भोग जरूर लगाएं. भोग में केला शामिल करने से धन से संबंधित समस्या से छुटकारा मिलता है. इसके साथ ही कुंडली में से गुरु दोष का असर खत्म होता है. योगिनी एकादशी पर विष्णु जी को दूध और दही अर्पित करें. इससे साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है. विष्णु जी को मोतीचूर के लड्डू अर्पित करें. इससे एकदशी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है.
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Yogini Ekadashi Vrat Arti: विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे.
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का.
स्वामी दुःख विनसे मन का.
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे.
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी.
स्वामी शरण गहूँ में किसकी .
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे .
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी .
स्वामी तुम अन्तर्यामी .
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे .
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता .
स्वामी तुम पालन कर्ता .
मैं मूरख खल कामी. कृपा करो भर्ता ॥
ॐ जय जगदीश हरे.
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .
स्वामी सबके प्राणपति .
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे.
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे.
स्वामी तुम ठाकुर मेरे .
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे .
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा.
स्वमी पाप हरो देवा .
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
ॐ जय जगदीश हरे.
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे .
स्वामी जो कोई नर गावे .
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
ॐ जय जगदीश हरे.