विवाह के दौरान जितना महत्व कन्यादान का बताया गया है.विवाह के शुरू से संपन्न होने तक कई सारी रस्मों को निभाया जाता है.
Sindoor Daan Ceremony : हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान जितना महत्व कन्यादान का बताया गया है उतना ही सिंदूरदान रस्म का भी है. वैसे तो विवाह के शुरू से संपन्न होने तक कई सारी रस्मों को निभाया जाता है. लेकिन जब बात आती है सिंदूरदान की तो यहीं से शुरू होता है दूल्हा और दुल्हन के एक होने का सिलसिला. दूल्हे द्वारा एक बार मांग भर देने के बाद जिंदगी भर दुल्हन अपनी मांग में इस सिंदूर को भरती है, ताकि दांपत्य जीवन में किसी प्रकार की कोई परेशानी ना आए.
लेकिन, बिहार में विवाह के दौरान होने वाली सिंदूरदान की रस्म को किसी भी कुंवारी कन्या द्वारा देखा जाना वर्जित माना गया है. चूंकि, यह तो सभी जानते हैं कि सिंदूर को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और इसका विशेष महत्व है. इसके बावजूद सिंदूरदान रस्म को देखने की क्यों मनाही है. इस आर्टिकल में हम जानेंगे भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
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सिंदूरदान का महत्व
हिन्दू धर्म में किसी भी प्रकार के दान को विशेष माना गया है. सिंदूरदान भी इन्हीं में से एक माना जा सकता है और इसे बेहद पवित्र माना गया है. यह रस्म वो रस्म है, जिससे पति-पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है. ऐसा कहा जाता है कि दुल्हन द्वारा मांग में सिंदूर भरने से उसके पति की उम्र लंबी होती है.
सिंदूरदान देखना क्यों मना है
विवाह के दौरान निभाई जाने वाली सिंदूरदान रस्म बिहार में कुंवारी कन्याओं के लिए वर्जित मानी गई है. इसके पीछे कारण बताया जाता है कि, सिंदूरदान के लिए सिन्होरा, अखरा सिंदूर की जरूरत पड़ती है. वहीं इस रस्म को कपड़े की चार दीवारी में निभाया जाता है. इस दौरान दूल्हा अपनी दुल्हन की मांग में 3, 5 और 7 बार सिंदूर भरता है.
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मान्यता है कि, जब सिंदूरदान की रस्म निभाई जाती है कि इसके साक्षी देवी देवता भी होते हैं. वहीं इस रस्म के बाद से दोनों के नए जीवन की शुरूआत भी मानी जाती है. ऐसे में जब कुंवारी कन्या इस रस्म को देखती है तो वधु को इस रस्म का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है. यही कारण है कि यहां कुंवारी कन्या के इस रस्म को देखने की मना है.
Tags: Astrology, Dharma Aastha, Wedding Ceremony
FIRST PUBLISHED : December 7, 2024, 12:55 IST