आज हम आपको श्रीहरि विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्रीकृष्ण के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं. भगवान श्रीकृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे. देवकी कंस की बहन थीं. कंस एक अत्याचारी राजा था. उसने आकाशवाणी सुनी थी कि देवकी के आठवें पुत्र द्वारा वह मारा जाएगा. इससे बचने के लिए कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में डाल दिया. मथुरा के कारागार में ही भादो मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उनका जन्म हुआ. कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया. गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था. यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे.
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बाल्यावस्था से ही की बड़ी-बड़ी लीलाएं
बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए, जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे. अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया, उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया. बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए. वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमें गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है. इसके बाद मथुरा में मामा कंस का वध किया.
सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया. पांडवों की मदद की और विभिन्न संकटों से उनकी रक्षा की. महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया. 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की. उनके अवतार समाप्ति के तुरंत बाद परीक्षित के राज्य का कालखंड आता है. राजा परीक्षित, जो अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र तथा अर्जुन के पौत्र थे, के समय से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है.
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भागवत पुराण में लिखी जन्मकथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था. रोहिणी चंद्रदेव की प्रिय पत्नी और नक्षत्र भी हैं. वहीं अष्टमी तिथि को माता शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस कारण से भगवान श्रीकृष्ण को शक्ति स्वरूप और परब्रह्म कहा जाता है. भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वंय में समेटे हुए हैं. द्वापर युग में कंस और दुर्योधन जैसे अधर्मियों का आतंक बढ़ गया था. उस समय श्रीकृष्ण का जन्म हुआ.
जब देवकी और वासुदेव जी की आठवीं संतान हुई थी, तो उन्होंने प्रभु इच्छा से यशोदा और नंदलाल जी के घर जाकर अपनी आठवीं संतान को उन्हें सौंप दिया और यशोदा जी से उनकी नवजात कन्या को लेकर कारागार में वापस लौटे. जब कंस को अपनी बहन की आठवीं संतान होने की सूचना मिली, तो वह उस संतान को मारने के लिए काल कोठरी में आया.
लेकिन जैसे ही उसने उस कन्या को हाथ में लेकर मारने की कोशिश की, बच्ची उसके हाथ से उछलकर हवा में एक देवी के रूप में प्रकट हुई. यह देवी कोई और नहीं योग माया थीं. आगे चलकर श्रीकृष्ण को यशोदा जी और नंदलाल जी ने पाला और कृष्ण ने मथुरा आकर कंस का वध करके सभी लोगों को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया. श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया और पांडवों से दुर्योधन के कौरव वंश का अंत करवाया और धर्म की स्थापना की.
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FIRST PUBLISHED : September 24, 2024, 16:31 IST