Saturday, November 16, 2024
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Burger King: बर्गर किंग कौन, पुणे का छोटा दुकानदार या अमेरिकी कंपनी?

Burger King: हिंदी में एक कहावत है, ‘कभी-कभी छोटी चींटी भी हाथी को पछाड़ देती है.’ यह कहावत कभी-कभी चरितार्थ भी हो जाती है. महाराष्ट्र के पुणे के एक छोटे से दुकानदार ने हिंदी की इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया और उसने अमेरिकी कंपनी बर्गर किंग को पछाड़ दिया. उस दुकानदार की सच्चाई के सामने अब यह सवाल भी पैदा होने लगा है कि बर्गर किंग कौन, अमेरिकी कंपनी या साल 1992 के दौरान महाराष्ट्र के पुणे में स्थापित बर्गर किंग दुकान का मालिक? इसका कारण यह है कि अदालत में टाइटल केस में पुणे के बर्गर किंग के आगे अमेरिकी कंपनी मुकदमा हार चुकी है. टाइटल की यह जंग करीब 13 साल तक चली और आखिर में जीत देसी बर्गर किंग की हुई.

1992 से पुणे में चल रहा है बर्गर किंग रेस्तरां

मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के पुणे में एक ईरानी परिवार अनाहिता और शापूर साल 1992 से बर्गर किंग नामक रेस्तरां चला रहे हैं. अमेरिकी फास्टफूड कंपनी बर्गर किंग साल 2014 में भारत आई. यहां आने के बाद उसने पुणे वाले बर्गर किंग रेस्तरां पर आरोप लगाया कि उसने उसके टाइटल की चोरी की है. इस आरोप में अमेरिकी कंपनी ने अदालत में मामला दर्ज कर दिया. अदालत ने तमाम जांच-पड़ताल के बाद पुणे वाले रेस्तरां के पक्ष में अपना फैसला सुनाया और कहा कि असली बर्गर किंग पुणे का रेस्तरां ही है. पुणे के जिला अदालत के न्यायाधीश सुनील वेदपाठक ने बहुराष्ट्रीय कंपनी की याचिका रद्द कर दी. उनके इस फैसले से पुणे का रेस्तरां ही बर्गर किंग हो गया.

अमेरिकी कंपनी ने लगाया ट्रेडमार्क के गलत इस्तेमाल का आरोप

रिपोर्ट में कहा गया है कि बर्गर किंग के ट्रेडमार्क की कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई, जब अमेरिकी कंपनी बर्गर किंग कॉरपोरेशन ने पुणे के कैंप और कोरेगांव पार्क स्थित ईरानी परिवार के अनाहिता और शापूर के बर्गर किंग के खिलाफ कोर्ट में कार्रवाई शुरू की. अमेरिकी कंपनी बर्गर किंग कॉरपोरेशन का भारत में करीब 13,000 रेस्तरांओं का बड़ा नेटवर्क है. इस बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अदालत से पुणे स्थित रेस्तरां को बर्गर किंग नाम का इस्तेमाल करने से रोक लगाने की मांग की. उसने अदालत में दावा किया कि यह ट्रेडमार्क का उल्लंघन है.

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अदालत ने अमेरिकी कंपनी को दिया करारा झटका

रिपोर्ट के अनुसार, पुणे की जिला अदालत के न्यायाधीश सुनील वेदपाठक ने 16 अगस्त 2024 को ईरानी परिवार के पक्ष में फैसला सुनाया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पुणे के बर्गर किंग ने 1992 से इस नाम और ट्रेडमार्क का इस्तेमाल किया था. यह अमेरिकी कंपनी की ओर से भारत में ट्रेडमार्क का रजिस्ट्रेशन कराने से बहुत पहले का मामला है. अदालत ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि बहुराष्ट्रीय कंपनी करीब 30 सालों तक भारत में इस नाम से नहीं चल रही थी. वहीं, पुणे के आउटलेट ने लगातार बर्गर किंग ब्रांड के तहत अपने ग्राहकों को सेवा दी. इससे उनका यह नाम कानूनी और असली है.

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