ईरान के संविधान के अनुसार, सर्वोच्च नेता देश की “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान” की नीतियों का निर्धारक होता है, जिसका मतलब है कि वह देश की घरेलू और विदेशी नीतियों की दिशा तय करता है. संविधान में कहा गया है कि शिया मौलवियों की एक परिषद सर्वोच्च नेता का चुनाव करती है, जिसे ‘मरजा-ए-तक़लीद’ का पद प्राप्त होना चाहिए. यह शिया मौलवियों में सबसे ऊंचा पद माना जाता है. हालांकि, जब जून 1989 में अयातुल्लाह खोमेनी की मौत के बाद खामेनेई को सर्वोच्च नेता चुना गया, उस समय वे ‘मरजा-ए-तक़लीद’ नहीं थे.
1981 में तेहरान की एक मस्जिद में बम विस्फोट के दौरान खामेनेई गंभीर रूप से घायल हो गए, जिसके लिए एक वामपंथी विद्रोही समूह को जिम्मेदार ठहराया गया. इस हमले से उनका दाहिना हाथ लकवाग्रस्त हो गया. दो महीने बाद इसी समूह ने ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद-अली राजई की हत्या कर दी. इसके बाद खामेनेई को उनका उत्तराधिकारी चुना गया, और वह आठ वर्षों तक ईरान के राष्ट्रपति रहे. हालांकि, उनके और तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर हुसैन मौसवी के बीच मतभेद रहते थे, क्योंकि मौसवी ईरान में बड़े सुधारों के पक्षधर थे. इन टकरावों को रोकने के लिए बाद में संविधान में संशोधन किया गया, जिससे सुप्रीम लीडर की शक्तियां और बढ़ गईं, और खामेनेई को सर्वोच्च नेता बना दिया गया.
अयातुल्ला अली खामेनेई, जो ईरान के सर्वोच्च नेता हैं, देश के सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ और खुफिया एवं सुरक्षा गतिविधियों के नियंत्रणकर्ता हैं. वे युद्ध या शांति की घोषणा करने के भी पूर्ण अधिकार रखते हैं. खामेनेई के पास यह शक्ति है कि वे न्यायपालिका, सरकारी रेडियो और टेलीविजन नेटवर्क, और इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के सर्वोच्च कमांडरों की नियुक्ति और हटाने का निर्णय कर सकते हैं. इसके अलावा, वह संरक्षक परिषद के बारह सदस्यों में से छह को नियुक्त करते हैं, जो ईरानी संसद की गतिविधियों की निगरानी करती है और यह तय करती है कि कौन से उम्मीदवार सार्वजनिक पद के लिए योग्य हैं.
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