इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून गुरुवार के दिन पड़ रहा है. वट सावित्री व्रत का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं. यदि आपका विवाह हाल फिलहाल हुआ है और आप पहली बार वट सावित्री व्रत रखने वाली हैं तो आपको वट सावित्री व्रत के पूजन सामग्री, पूजा मुहूर्त, कथा, पूजन की विधि आदि के बारे में सही से जानना चाहिए. इसके बारे में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं विस्तार से.
वट सावित्री व्रत 2024 मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का प्रारंभ: 5 जून, बुधवार, शाम 07 बजकर 54 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का समापन: 6 जून, गुरुवार, शाम 06 बजकर 07 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त: 04:02 एएम से 04:42 एएम तक
अभिजीत मुहूर्त: 11:52 ए एम से 12:48 पी एम तक
शुभ-उत्तम मुहूर्त: 05:23 एएम से 07:07 एएम तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त: 12:20 पीएम से 02:04 पीएम तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: 02:04 पी एम से 03:49 पी एम तक है.
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वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री लिस्ट
1. रक्षा सूत्र, कच्चा सूत,
2. बरगद का फल, बांस का बना पंखा,
3. कुमकुम, सिंदूर, फल, फूल, रोली, चंदन
4. अक्षत्, दीपक, गंध, इत्र, धूप
5. सुहाग सामग्री, सवा मीटर कपड़ा, बताशा, पान, सुपारी
6. सत्यवान, देवी सावित्री की मूर्ति
7. वट सावित्री व्रत कथा और पूजा विधि की पुस्तक
8. पानी से भरा कलश, नारियल, मिठाई, मखाना आदि
9. घर पर बने पकवान, भींगा चना, मूंगफली, पूड़ी, गुड़,
10. एक वट वृक्ष
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
6 जून को व्रती महिलाओं को वट सावित्री व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए. फिर शुभ मुहूर्त में आपको वट सावित्री व्रत की पूजा के लिए सामग्री एकत्र करके किसी बरगद के पेड़ के पास जाना चाहिए. वहां उसके नीचे ब्रह्म देव, देवी सावित्री और सत्यवान की मूर्ति को स्थापित करें. फिर उनका जल से अभिषेकर करें.
उसके बाद ब्रह्म देव, सत्यवान और सावित्री की पूजा करें. एक-एक करके उनको पूजा सामग्री चढ़ाएं. फिर रक्षा सूत्र या कच्चा सूत लेकर उस बरगद के पेड़ की परिक्रमा 7 बार या 11 बार करते हुए उसमें लपेट दें. फिर आसन पर बैठ जाएं. अब आप वट सावित्री व्रत की कथा सुनें. फिर ब्रह्म देव, सावित्री और सत्यवान की आरती करें. आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत की कथा.
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वट सावित्री व्रत कथा
स्कंद पुराण में वट सावित्री व्रत की कथा के बारे में वर्णन मिलता है, जिसमें देवी सावित्री के पतिव्रता धर्म के बारे में बताया गया है. देवी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ था, लेकिन वे अल्पायु थे. एक बार नारद जी ने इसके बारे में देवी सावित्री को बता दिया और उनकी मृत्यु का दिन भी बता दिया.
सावित्री अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए व्रत करने लगती हैं. वे अपने पति, सास और सुसर के साथ जंगल में रहती थीं. जिस दिन सत्यवान के प्राण निकलने वाले थे, उस दिन वे जंगल में लकड़ी काटने गए थे, तो उनके साथ सावित्री भी गईं.
उस दिन सत्यवान के सिर में तेज दर्द होने लगा और वे वहीं पर बरगद के पेड़ के नीचे लेट गए. देव सावित्री ने पति के सिर को गोद में रख लिया. कुछ समय में यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगे. उनके पीछे-पीछे सावित्री भी चल दीं.
यमराज ने उनको समझाया कि सत्यवान अल्पायु थे, इस वजह से उनका समय आ गया था. तुम वापस घर चली जाओ. पृथ्वी पर लौट जाओ. लेकिन सावित्री नहीं मानीं. उनके पतिव्रता धर्म से खुश होकर यमराज ने सत्यवान के प्राण लौटा दिए, जिससे सत्यवान फिर से जीवित हो उठे. ज्येष्ठ अमावस्य तिथि को यह घटनाक्रम हुआ था और अपने पतिव्रता धर्म के लिए देवी सावित्री प्रसिद्ध हो गईं.
उसके बाद से ज्येष्ठ अमावस्य को ज्येष्ठ देवी सावित्री की पूजा की जाने लगी. वट वृक्ष में त्रिदेव का वास होता है और सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही जीवनदान मिला था. इस वजह से इस व्रत में वट वृक्ष, सत्यवान और देवी सावित्री की पूजा करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : June 5, 2024, 12:24 IST