भोलनाथ को सोमवार का दिन समर्पित किया गया है.इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है.
Third Eye Of Lord Shiva : देवों के देव महादेव यानी कि भगवान शिव को शंकर, महेश, नीलकंठ और गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है. वैसे तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार का दिन सबसे शुभ माना गया है, वहीं प्रदोष व्रत की खास पूजा की जाती है. लेकिन, आषाढ़ के बाद आने वाला सावन का पूरा महीना ही भोलेनाथ को समर्पित होता है. हर सोमवार को भक्त व्रत रखते हैं और मंदिर जाकर भोलेनाथ की प्रार्थना करते हैं. भगवान शिव को जल्दी प्रसन्न होने वाले देव भी कहा जाता है. भगवान शिव के बारे में ऐसी कई बातें लगभग सभी को पता होती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं महादेव को तीसरा नेत्र कैसे मिला और क्या है इसके पीछे का रहस्य, आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित योगेश चौरे से.
महाभारत ने खोला रहस्य
महादेव के तीसरे नेत्र के बारे में इतना सभी जानते हैं कि यह क्रोध के समय खुलता है. ऐसा कहा जाता है कि जब किसी का विनाश करना हो तो भगवान शंकर अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं. लेकिन इसे पहली बार कब खोला, इसको लेकर महाभारत के छठे खंड में प्रसंग मिलता है.
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पौराणिक कथा
भगवान शिव के त्रिनेत्र को नेकर नारदजी ने विस्तार से बताया है. जिसके अनुसार, एक बार भगवान शिव ने हिमालय पर्वत पर सभा आयोजित की. इस सभा में सभी देवता, ऋषि-मुनि और ज्ञानी लोग शामिल हुए. इस दौरान माता पार्वती ने हंसी ठिठोली करते हुए भोलेनाथ की दोनों आंखें बंद कर लीं. जैसे ही माता ने शिव जी की आंखों को बंद किया तो पूरी सृष्टि में अंधेरा छा गया. ऐसे में दिन की रोशनी खत्म होने लगी और जीव-जंतुओं में भय छाने लगा.
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इस बीच भगवान शिव ने अपने माथे पर एक ज्योतिपुंज प्रकट किया, जिसे तीसरे नेत्र के रूप में जाना गया. इसके बारे में जब माता पार्वती ने पूछा तो शंकर जी ने कहा कि वे ऐसा नहीं करते तो पूरी सृष्टि का विनाश हो जाता. नारद मुनी कहते हैं कि भगवान शिव की आंखें ही पालनहार हैं और उनके बंद होने के बाद ही भगवान को तीसरा नेत्र मिला.
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FIRST PUBLISHED : June 30, 2024, 08:00 IST