फिल्म :द बकिंघम मर्डर्स
निर्माता :एकता कपूर, हंसल मेहता और करीना कपूर खान
निर्देशक :हंसल मेहता
कलाकार :करीना कपूर खान,रणवीर बरार,प्रभलीन, ऐश
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग -ढाई
the buckingham murders:हंसल मेहता रियलिस्टिक फिल्मकार के तौर पर जाने जाते हैं.उन्होंने इंडस्ट्री के कई मंझे हुए एक्टर्स के साथ काम किया है और इंडस्ट्री को मंझे हुए एक्टर्स से रूबरू भी करवाया है, लेकिन यह पहला मौका है, जब कमर्शियल फिल्मों के किसी सुपरस्टार को उन्होंने अपनी किसी फिल्म से जोड़ा है. द बकिंघम मर्डर्स वह फिल्म है,सुपरस्टार करीना कपूर खान इसका चेहरा है.वह फिल्म की सह निर्मात्री भी हैं.इस मर्डर मिस्ट्री फिल्म में हंसल की छाप है,लेकिन स्क्रीनप्ले में खामियां भी रह गयी हैं . हां करीना कपूर खान का अभिनय जरूर कमाल का है.हंसल ने उन्हें एक अलग ही अंदाज में परदे पर पेश किया है, जहां वह शब्दों से ज्यादा अपनी आंखों और बॉडी लैंग्वेज के जरिये किरदार को एक्सप्रेस करती नजर आयी हैं.
मर्डर मिस्ट्री वाली है कहानी
फिल्म की कहानी जसमीत भामरा (करीना कपूर खान ) की है. जो यूके में डिटेक्टिव सार्जेंट के तौर पर काम करती है.फिल्म के पहले ही सीन में स्थापित कर दिया जाता है कि वह एक सनकी कातिल के द्वारा अपने बेटे को खो चुकी है. सनकी कातिल को अदालत ने सजा भी सुना दी है, लेकिन उसका दर्द कम नहीं हुआ है. वह शहर बदलने का फैसला करती है और वह अपना ट्रांसफर लेकर बकिंघमशायर चली जाती है,लेकिन वहां पर उसे इशप्रीत नामक बच्चे की गुमशुदगी का केस मिलता है. उसका दर्द बढ़ जाता है. वह केस से हटने का फैसला करती है, लेकिन उसका सीनियर उसे ड्यूटी को सबसे ज्यादा अहमियत देने को कहता है. इसी बीच गुमशुदा बच्चे की मौत की खबर आती है और जसमीत कातिल की तलाश में जुट जाती है.क्या अपने बेटे के खोने के दर्द से जूझते हुए वह असली कातिल तक पहुँच पाएगी. यही फिल्म की आगे की कहानी है.
फिल्म की खूबियां और खामियां
हंसल मेहता रीयलिस्टिक फिल्म मेकर माने जाते हैं. एक बार फिर उन्होंने रियलिटी के करीब एक कहानी को गढ़ा है. फिल्म यूके के सरजमीं पर सेट है. यह फिल्म को अलग लुक देता है.इससे इंकार नहीं है,लेकिन इस दुनिया और किरदारों से जुड़ने में समय जाता है. फिल्म की गति भी धीमी है.यह एक मर्डर मिस्ट्री फिल्म है और हर पात्र को संदेह के घेरे में दिखाना इसकी सबसे अहम्में जरूरत थी. कहानी सेकेंड हाफ में इस मुद्दे पर आती है.फिल्म का क्लाइमेक्स अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का हर पात्र ग्रे है.कोई बुरा है तो क्यों है इसके पीछे की वजह को भी फिल्म में रेखांकित किया गया है. फिल्म में धार्मिक तनाव, समलैंगिकता, घरेलू हिंसा और काम की जगहों पर महिलाओं को खुद के मुकाबले कमतर दिखाने की भी सोच को दिखाया गया है, लेकिन फिल्म सरसरी तौर पर ही इन मुद्दों को सामने लेकर आ पायी है.कुछ ठोस नहीं ला पायी है.फिल्म की स्क्रिप्ट में यह कमी भी खलती है कि दूसरे डीएनए के मैच में इतना वक़्त क्यों लग गया, जबकि डिटेक्टिव्स के घेरे में हमेशा से परिवार था. इशप्रीत का किरदार ड्रग अपनी मर्जी से बेचता है या चाचा की वजह से यह भी ठीक तरह से नहीं कहानी में आ पाया है. जसमीत की पर्सनल लाइफ के बारे में भी ज्यादा बात नहीं की गयी है. वह सिंगल मदर थी. इस पर थोड़ा और फोकस पहले हाफ में किया जा सकता था.इसके साथ ही फिल्म को मेकर्स ने हिंदी के साथ – साथ हिंगलिश में भी रिलीज किया है. दर्शक फिल्म की बुकिंग के पहले इस पहलू पर विशेष तौर पर गौर करें वरना हिंदी भाषी दर्शकों को यह फिल्म अपील नहीं कर पाएगी.
करीना का काम है कमाल
यह फिल्म करीना कपूर खान की है और उन्होंने इसे पहले सीन से फिल्म के आखिरी सीन तक बखूबी जिया है.अपने बेटे को खो चुकी मां की तकलीफ हो या एक पुलिस ऑफिसर के तौर पर एक बच्चे के केस को सॉल्व करते हुए अपने अंतर्द्वंद, गुस्से और सूझबूझ को उन्होंने बखूबी सामने लाया है. करीना कपूर खान के लुक की भी यहाँ तारीफ करनी होगी। वह पूरी फिल्म में बिना मेकअप के नज़र आयी हैं. अपने चेहरे के रिंकल को उन्होंने छुपाया नहीं बल्कि अपने किरदार को उससे और मजबूती भी दी है. मास्टर शेफ रणवीर बरार ने अपने अभिनय से इस फिल्म में टेस्टी तड़का लगाया है.प्रभलीन संधू की भी तारीफ करनी होगी। उन्होंने अलग -अलग शेड्स को अपने अभिनय से बखूबी सामने लाया है. सीनियर ऑफिसर के रोल में एश टंडन जंचते है. बाकी के किरदारों ने भी अपनी भूमिका के साथ बखूबी न्याय किया है. सभी अपने किरदार में रचे बसे नजर आये हैं.