सूरज पूरब से निकलता है. इसे सार्वभौमिक सत्य माना गया है. यानी ऐसा सच जिसे बदला नहीं जा सकता. लेकिन सच नहीं है. न तो सूरज पूरब से निकलता है न ही वह पश्चिम में ढलता है. असल में
हमारी बोलचाल की भाषा में कई बातें ऐसी हैं जो या तो इसलिए बोली जा रही हैं क्योंकि सालों से उसे वैसे ही बोला जा रहा है या फिर वैसा बोलना आसान है, इसलिए आसानी के चलते उसे बोल रहे हैं.
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दरअसल, सूरज अपनी जगह पर ही रहता है. हम यानी पृथ्वी उसका चक्कर लगाते हैं. सूरज न तो निकलता है न ही ढलता है. लेकिन जब भाषा विकसित हुई और लोगों ने यूनिवर्स के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी तो उन्होंने देखा कि सूरज पूरब से निकल रहा है और पश्चिम में ढल रहा है. फिर यह बात लिखी जाने लगी और बोली जाने लगी. फिर पीढ़ी दर पीढ़ी यह चलती जा रही है.
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सूरज अपनी जगह से टस–से–मस नहीं होता
अब यह स्पष्ट हो चुका है कि हम ब्रह्माण्ड के मिल्की वे नाम की आकाशगंगा के हिस्सा हैं. इसमें पृथ्वी सूरज के चारों ओर चक्कर लगाया करती है. जबकि सूरज अपनी जगह से टस से मस तक नहीं होता.
पृथ्वी जब सूरज का चक्कर लगाती है तो पूरब–पश्चिम वाली बात कहां से आ गई?
दिशाओं के बारे में कहा जाता है कि दशों दिशाओं की जानकारी हमारे वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद दी गई हैं. ऐसे में जब भी हमें किसी वस्तु या स्थान के बारे में बताना होता है तो हम किसी न किसी दिशा का नाम लेकर कहते हैं कि उस ओर है. यह कहना गलत नहीं है. फर्ज कीजिए पंजाब किधर है, सभी कहेंगे एक उत्तरी राज्य है, तमिलनाडु किधर है, तो कहेंगे कि यह एक दक्षिणी राज्य है. यहां तक ठीक है. पर यह कहना ठीक न होगा कि पंजाब उत्तर की ओर से निकलता है उत्तर में ही रहता है, उत्तर में विचरण करता है. ठीक वैसे ही तमिलनाडु दक्षिण में किसी तरह की कोई क्रिया करता है. क्योंकि दोनों ही स्थान एक जगह पर स्थित हैं. उनमें कोई क्रिया नहीं है.
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लेकिन सूरज के बारे में ऐसी भ्रांति है कि वह क्रिया करता है. वह चलता है. वह उगता है और वह ढलता है. जबकि असल बात यह है कि वह अपनी जगह पर ही होता है. क्रिया पृथ्वी करती है. पृथ्वी के निवासी रोजाना सूरज किसी खास हिस्से को अलग–अलग समय से अनुसार देखा करते हैं. वो तो निरंतर एक ही जगह पर एक ही ऊर्जा के साथ चमक रहा है.