Raghu Raghvendra: साल 2013 से पहले भारत के गेंदबाजों के मन में तेज गेंदबाजी का खौफ रहता था. ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजों की बाउंसर और ‘बीमर’ तो कहर ही ढाती थी. लेकिन टीम इंडिया ने अपने सपोर्ट स्टाफ में एक ऐसा हीरो जोड़ा जिसने भारतीय क्रिकेट को एक नई ताकत दी. 2018-19 और 2020-21 की बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी के लिए भारत ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया और गजब का प्रदर्शन करते हुए भारत ने ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में ही शिकस्त दी. इस सीरीज के बाद विराट कोहली ने अपनी टीम की जीत के लिए एक सीक्रेट हीरो का जिक्र किया. वो हीरो थे, डी राघवेंद्र जिन्हें भारतीय टीम के खिलाड़ी रघु के नाम से पुकारते हैं.
टीम की हर मोके पर करते हैं सहायता
रघु वैसे सपोर्ट स्टाफ हैं, जो टीम इंडिया की हर तरह से मदद करते हैं. फील्डिंग के दौरान बाउंड्री लाइन पर मुस्तैदी से खड़े नजर आते हैं. खिलाड़ियों को पानी पिलाना हो या उनके जूते साफ करना ये सब काम रघु करते हैं. ऑस्ट्रेलिया में 2022 के टी20 वर्ल्ड कप में बांग्लादेश के खिलाफ मैच के दौरान एडिलेड में बारिश हो गई. बारिश रुकने के बाद मुकाबला शुरू हुआ तो गीले मैदान पर भारतीय खिलाड़ियों को उस पर दौड़ने में दिक्कत होने लगी. रघु राघवेंद्र नो तुरंत समय गंवाए बिना ब्रश लेकर खिलाड़ियों के जूते साफ करने लगे. लेकिन रघु की विशेषज्ञता इन कामों में नहीं है. वे भारतीय टीम के थ्रो डाउन स्पेशलिस्ट हैं.
रघु भारतीय टीम को नेट्स पर बल्लेबाजी की प्रैक्टिस करवाते हैं. वे साइडआर्म की उपयोग कर ब्रेट ली और शोएब अख्तर की स्पीड से गेंद फेंकते हैं. 150-155 किमी/घंटा की औसत से निकली गेंद भारतीय बल्लेबाजों पर कोई रहम नहीं दिखाती. इसीलिए भारतीय खिलाड़ी उनसे जितना प्यार करते हैं, उतनी ही नफरत भी. इनकी गेंदों को खेलने के बाद 135-140 की स्पीड वाले गेंदबाज स्पिनर सरीखे नजर आते हैं. विराट कोहली भी कई मौकों पर उन्हें भारतीय टीम का सीक्रेट हीरो बता चुके है. रघु स्लिंग गेंद फेंकते हैं. जिसके लिए साइडआर्म का उपयोग किया जाता है. यह एक क्रिकेट इक्विपमेंट है जो एक लंबे चम्मच के आकारनुमा होता है. इसके दूसरे सिरे के हथ्थे को पकड़कर गेंद को तेज गति से फेंकने के लिहाज से डिजायन किया गया है.
जेब में 21 रुपये के साथ छोड़ दिया घर
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ा जिले के कुमटा कस्बे निवासी एक टीचर के घर में जन्मे डी राघवेंद्र करोड़ों भारतीय की तरह क्रिकेटर बनना चाहते थे. लेकिन उनके पिता को यह मंजूर नहीं था. पिता के मना करने के बावजूद रघु क्रिकेट से दूर नहीं रह पाते थे. इसी उधेड़बुन में रघु ने एक दिन अपना घर और स्कूल दोनों छोड़ दिया. एक बैग कुछ कपड़े और जेब में मात्र 21 रुपये लेकर रघु कुमटा से सीधे हुबली आ गए. वहां उनके पास न रहने की जगह थी ने पेट भरने के लिए पैसे. वे शुरुआत में एक हफ्ते तक हुबली बस स्टैंड पर ही सोए, लेकिन पुलिस ने भगा दिया.
कब्रिस्तान के टूटे घर में गुजारी रात
बस स्टैंड से भगाए जाने के बाद रघु ने मंदिर को ठिकाना बनाया. लेकिन वहां से भी 10 दिन में ही बोरिया बिस्तर उठ गया. अंत में उनका सहारा बना एक कब्रिस्तान. कब्रिस्तान के एक टूटे कमरे में रघु के पास ओढ़ने के लिए भी कुछ नहीं था तो उन्होंने अपने क्रिकेट पिच पर बिछाई जाने वाली मैट का ही सहारा लिया. इसी दौरान उनका दायां हाथ भी टूट गया, लेकिन रघु ने हार नहीं मानी और घर लौटने से मना कर दिया.
जुनून को मिला श्रीनाथ और सचिन तेंदुलकर का साथ
हाथ टूटने से निराश रघु को एक दोस्त क्रिकेटर्स को बॉलिंग प्रैक्टिस कराने की सलाह दी. वे बंगलुरु चले आए. बेंगलुरू के कर्नाटक क्रिकेट इंस्टीट्यूट में उन्हें कर्नाटक के पूर्व विकेटकीपर और वर्तमान अंडर 19 सेलेक्शन समिति के सदस्य तिलक नायडू मिले, जिन्होंने रघु को जवागल श्रीनाथ से मिलाया. श्रीनाथ ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें कर्नाटक रणजी टीम का हिस्सा बनाया. रघु चार साल तक नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) में बिना एक रुपये तनख्वाह लिए काम करते रहे. एनसीए में ही उन्होंने बीसीसीआई का लेवल-1 का कोचिंग कोर्स पूरा किया. इसके बाद वे एनसीए में भारतीय खिलाड़ियों को प्रैक्टिस कराने लगे. साल 2011 में सचिन तेंदुलकर की निगाह उन पर पड़ी. सचिन ने बिना देर किए रघु को भारतीय क्रिकेट के स्टाफ का हिस्सा बना लिया और तब से लेकर आज तक वे दुनिया के रह कोने में, जहां भी भारतीय टीम सफर करती है, वे अपना पूरा जुनून टीम की सफलता के लिए झोंक देते हैं. उनके सफलता के चर्चे अब भारत के बाहर भी होने लगे हैं, देखिए ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट प्रशंसक सह मीडियाकर्मी का यह वीडियो-
WTC में तीसरे स्थान पर फिसला भारत, ऑस्ट्रेलिया से हार के बाद भी खेल सकेगा फाइनल? जानिए समीकरण