16 मई को सीता नवमी मनाई जा रही है.इस दिन माता सीता की पूजा का विधान है.
Sita Navami 2024 : वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है. सनातन धर्म में ये दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन मां सीता का जन्म हुआ था, इसलिए भक्त इस अवसर पर मां सीता की सच्चे मन से आराधना करते हैं ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे. इस साल सीता नवमी 16 मई दिन गुरुवार को मनाई जा रही. मान्यता के अनुसार इस दिन पूजा-अर्चना का मनवांछित फल भक्त को मिलता है. वहीं मां सीता की व्रत कथा पढ़ने का भी अपना ही अलग महत्व पुराणों में बताया गया है. जो भक्त माता सीता की कथा पढ़ता है या सुनता है, उसके जीवन से सारे दुख खत्म हो जाते हैं. सुख का आगमन होता है और माता सीता का आर्शीवाद हमेशा बना रहता है. आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
सीता नवमी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, मारवाड़ में एक देवदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था, जो भगवान की पूजा भक्ति में लीन रहता था. देवदत्त की पत्नी जिसका नाम शोभना था, उसकी सुंदरता की तारीफ पूरे क्षेत्र में की जाती थी. यही बात का घमंड उसकी पत्नी के अंदर था. उसके अनुसार वे पूरे संसार में सबसे ज्यादा खूबसूरत और सौंदर्यवान है. इसी घमंडी व्यवहार के कारण वे अन्य लोगों को अपने सामने कुछ समझती ही नहीं थी और अक्सर सभी के साथ बुरा व्यवहार किया करती थी.
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कुछ समय बाद गांव में बेहद सुंदर कन्याएं आईं, जो देवदत्त की पत्नी शोभना से भी ज्यादा सुंदर थीं. लेकिन ये बात जब ब्राह्मण की पत्नी को पता चली तो वो ईर्ष्या करने लगी. अपने क्रोध के कारण उसने पूरे गांव को कुछ लोगों से कहकर जलवा दिया. थोड़े समय बाद ब्राह्मणी की भी मृत्यु हो गई. लेकिन पिछले कर्मों के रूप में उसे अगला जन्म चांडाली का मिला और उसके जीवन में बहुत कष्ट आए, जिसे उसे भुगतना था. उसे हमेशा तिस्कार का सामना करना पड़ता पर वह मां सीता की सच्ची भक्त थी.
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एक दिन लोगों के तिरस्कार के कारण बहुत दुखी हो गई और मां सीता की प्रतिमा के सामने अपने दुखों को रोकर बताने लगी. ऐसे में मां सीता ने चांडाली को पूर्व जन्म की याद दिलाई कि पिछले जन्म में चांडाली ने ईर्ष्या के कारण पूरे गांव को आग लगवा दी थी. यह पता चलने के बाद चांडाली को बहुत दुख हुआ और उसने अपने पापों का पश्चाताप करने का सोचा.
उसने अपने बुरे कर्मों को नष्ट करने के लिए वैशाख माह की नवमी के दिन उपासना और व्रत रखना शुरू किया. सच्चे मन से की गई भक्ति से मां सीता प्रसन्न हो गईं और आर्शीवाद स्वरूप धीरे-धीरे चांडाली के सभी पापों का नाश होने लगा. चांडाली को पिछले जन्म के पापों से मुक्ति मिली. तभी से मां सीता की पूजा शुरू हुई, जिसे हम सीता नवमी के रूप में जानते हैं.
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FIRST PUBLISHED : May 15, 2024, 07:32 IST