इस साल शनि जयंती 6 जून गुरुवार के दिन है. हर साल ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि देव का जन्मदिन मनाया जाता है. यह दिन उन लोगों के लिए विशेष होता है, जिनकी कुंडली में शनि दोष, शनि की महादशा, साढ़ेसाती या फिर ढैय्या चल रही हो. इनके अलावा जिनकी कुंडली में शनि की स्थिति कमजोर है या फिर वह नीच ग्रहों के साथ युति करके नकारात्मक प्रभाव दे रहा है. ऐसे सभी लोगों को शनि जयंती के अवसर पर न्याय के देवता शनि महाराज की पूजा करनी चाहिए. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव के अनुसार, शनि जयंती के अवसर पर लोगों को कुछ ज्योतिष उपाय करने चाहिए, जिससे उनको शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त हो. शनि का एक आसान उपाय है, जिसे करने से आपको शनि कृपा प्राप्त होगी और उनके प्रकोप से मुक्ति मिल सकती है और वे आपकी सुरक्षा करेंगे.
शनि जयंती पर करें एक उपाय
शनि जयंती वाले दिन आप सुबह में उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत हो जाएं. उसके बाद शनि मंदिर में जाकर शनि देव की पूजा करें. उसके बाद शनि स्तोत्र या फिर शनि कवच का पाठ करें. इन दोनों पाठ में से आप कोई भी एक पाठ करेंगे तो शनि देव से जुड़ी दिक्कतें दूर होंगी.
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राजा दशरथ ने की थी शनि स्तोत्र की रचना
पद्म पुराण के अनुसार, एक बार शनि देव रोहिणी नक्षत्र का भेदन करने वाले थे, तब ज्योतिषियों ने राजा दशरथ को इससे होने वाले भीषण दुष्परिणाम के बारे में बताया. 12 साल तक अकाल पड़ेगा. यह सोचकर राजा दशरथ चिंतित हो गए. वे शनि देव से युद्ध करने के लिए नक्षत्र मंडल में पहुंच गए. उनके साहस को देखकर शनि देव प्रसन्न हुए और उनको वरदान दिया कि 12 साल तक उनके राज्य में कोई अकाल नहीं पड़ेगा.
इससे खुश होकर राजा दशरथ ने शनि देव की स्तुति की. उस दौरान उन्होंने शनि स्तोत्र की रचना की. शनि देव ने कहा कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से इस स्तोत्र को पढ़ेगा, उसे शनि की किसी भी प्रकार की बाधा नहीं होगी. जो सुबह, दोपहर और शाम इस स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे शनि की पीड़ा नहीं होगी.
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शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।।
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FIRST PUBLISHED : May 29, 2024, 11:05 IST