आज 6 जून ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जा रही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव और माता छाया के पुत्र शनि देव का जन्म ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को हुआ था, इस वजह से हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती या शनि देव का जन्मदिवस मनाया जाता है. शनि जयंती के अवसर पर विधि विधान से शनि देव की पूजा करने से कष्ट मिटते हैं और जीवन में खुशहाली आती है. इस समय मकर, कुंभ और मीन राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है, वहीं कर्क और वृश्चिक राशिवालों पर ढैय्या चल रही है. इन 5 राशिवालों के साथ बाकी सभी 7 राशिवालों को भी आज न्याय के देवता शनि देव की पूजा करनी चाहिए.
तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव का कहना है कि शनि जयंती के अवसर पर उनकी कृपा पाने के लिए आप चाहें तो शनि मंत्रों का जाप कर सकते हैं. शनि मंत्रों के जाप से आप पर उसके शुभ प्रभाव होंगे. इसके अलावा हनुमान जी की पूजा करने से भी शनि देव खुश होंगे. आइए जानते हैं शनि देव के प्रभावशाली मंत्रों के बारे में.
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शनि देव के मंत्र
1. शनि बीज मंत्र
ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
2. शनि महामंत्र
ओम निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
3. शनि देव का आरोग्य मंत्र
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
4. शनि देव की गायत्री मंत्र
ओम भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।
आप इन मंत्रों का जाप शनि देव की पूजा करके करें. इसके लिए आप एक आसन पर बैठ जाएं. वह आसन कंबल या कुश का हो तो अच्छा है. फिर मन में शनि देव का ध्यान करके इनमें से किसी एक मंत्र का जाप कर सकते हैं. आप चाहें तो इन मंत्रों के अलावा शनि कवच का पाठ भी कर सकते हैं. शनि कवच का पाठ करने से शनि के दोषों और कष्टों से मुक्ति मिल सकती है. शनि देव आपकी रक्षा करेंगे.
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शनि कवच का पाठ
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
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FIRST PUBLISHED : June 6, 2024, 08:09 IST