SEBI New Rule: SEBI ने फ्यूचर्स एंड ऑप्शन (F&O) से संबंधित नए नियमों के लिए एक सर्कुलर जारी किया है, जिसमें यह बताया गया है कि ये नए नियम 20 नवंबर से प्रभावी होंगे. इस सर्कुलर के अनुसार, 1 फरवरी से ऑप्शन बायर्स को अपफ्रंट प्रीमियम का भुगतान करना होगा और इंट्रा-डे पोजीशन लिमिट की भी निगरानी की जाएगी. इसके अलावा, SEBI ने डेरिवेटिव्स के लिए इंडेक्स फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट की न्यूनतम वैल्यू 15 लाख रुपये निर्धारित की है, जबकि मौजूदा समय में यह 5 लाख से 10 लाख रुपये के बीच होती है.
नए नियमों के लागू होने के साथ, फ्यूचर्स एंड ऑप्शन ट्रेडिंग के अनुबंध आकार में बड़ा बदलाव किया गया है, जिसका उद्देश्य ट्रेडिंग के जोखिम को बेहतर तरीके से प्रबंधित करना है. SEBI के अनुसार, इन बदलावों को कई चरणों में लागू किया जाएगा ताकि बाजार में सुचारू रूप से इन्हें लागू किया जा सके और ट्रेडर्स और निवेशकों को आवश्यक समय मिल सके. इन नियमों का उद्देश्य फ्यूचर्स एंड ऑप्शन मार्केट में पारदर्शिता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, साथ ही बड़े अनुबंधों के लिए उच्च मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करना है, जिससे ट्रेडिंग का जोखिम और नियंत्रण प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जा सके.
Also Read:Sukanya Samriddhi Yojana Rule Change: सुकन्या समृद्धि योजना का बदल गया नियम,जानें आपकी बेटी का फ्यूचर कितना सुरक्षित
नए नियमों के लागू होने के पीछे मुख्य कारण
नए नियमों के लागू होने के पीछे मुख्य कारण डेरिवेटिव मार्केट की अत्यधिक जोखिमभरी प्रकृति है. SEBI की मौजूदा चिंता यह है कि इस बाजार में रिटेल निवेशकों की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है. SEBI का मानना है कि कई निवेशक डेरिवेटिव मार्केट में इसलिए कदम रख रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि यहां से उन्हें बहुत ऊंचा मुनाफा मिलेगा. हालांकि, इन निवेशकों में से अधिकांश के पास डेरिवेटिव मार्केट की सही जानकारी या अनुभव नहीं है, जिससे वे अनजाने में भारी जोखिम उठा रहे हैं.
डेरिवेटिव मार्केट अत्यधिक उतार-चढ़ाव वाला और जटिल होता है, जहां बिना पूरी जानकारी के निवेश करने पर नुकसान की संभावना अधिक होती है. SEBI का उद्देश्य इन नियमों के माध्यम से इस तरह के जोखिम को कम करना है और सुनिश्चित करना है कि केवल वे ही निवेशक इस मार्केट में उतरें जो इसके कामकाज और जोखिमों को सही तरीके से समझते हैं.
Also Read: देश में सीनियर सिटीजन्स के नाम पर कई सरकारी योजनाएं, लेकिन बुजुर्गों को क्या मिलता है लाभ?
क्या होता है F&O
F&O का मतलब “Futures and Options” (फ्यूचर्स और ऑप्शंस) होता है। ये वित्तीय बाजार के दो प्रमुख डेरिवेटिव (व्युत्पन्न) उपकरण हैं, जो निवेशकों और ट्रेडर्स को भविष्य के किसी निश्चित मूल्य पर किसी परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार या दायित्व प्रदान करते हैं. आइए, इन दोनों को विस्तार से समझते हैं.
F&O का मतलब “Futures and Options” (फ्यूचर्स और ऑप्शंस) होता है। ये वित्तीय बाजार के दो प्रमुख डेरिवेटिव (व्युत्पन्न) उपकरण हैं, जो निवेशकों और ट्रेडर्स को भविष्य के किसी निश्चित मूल्य पर किसी परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार या दायित्व प्रदान करते हैं. आइए, इन दोनों को विस्तार से समझते हैं.
1. Futures (फ्यूचर्स)
- फ्यूचर्स एक प्रकार का वित्तीय अनुबंध है, जिसमें दो पक्ष एक निश्चित तिथि पर एक निश्चित मूल्य पर एक परिसंपत्ति (जैसे शेयर, वस्तु, करेंसी) खरीदने या बेचने के लिए सहमत होते हैं
- मुख्य विशेषता: यह एक बाध्यकारी अनुबंध है. इसका मतलब है कि दोनों पक्षों को अनुबंध की समाप्ति तिथि पर अपनी प्रतिबद्धताओं का पालन करना होता है, चाहे बाजार का भाव कुछ भी हो.
- उदाहरण: मान लीजिए आप एक निवेशक हैं और आपको लगता है कि सोने की कीमत बढ़ेगी.आप आज 50,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव से 3 महीने बाद सोना खरीदने के लिए फ्यूचर्स अनुबंध करते हैं. यदि 3 महीने बाद सोने की कीमत 52,000 रुपये हो जाती है, तो आपको मुनाफा होगा क्योंकि आप इसे अनुबंध के मुताबिक 50,000 रुपये में खरीद सकते हैं.
Also Read:Tata power share price: राजस्थान सरकार के साथ समझौता होने के बाद टाटा पावर का शेयर बन गया रॉकेट, निवेशकों को कर रहा है मालामाल
Options (ऑप्शंस)
- ऑप्शंस एक अनुबंध है जो खरीदार को एक निश्चित तिथि तक एक निश्चित मूल्य पर एक परिसंपत्ति खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, लेकिन इसे करना उसकी बाध्यता नहीं होती.
- प्रकार:
- कॉल ऑप्शन: यह आपको भविष्य में एक निश्चित कीमत पर संपत्ति खरीदने का अधिकार देता है.
- पुट ऑप्शन: यह आपको भविष्य में एक निश्चित कीमत पर संपत्ति बेचने का अधिकार देता है.
- मुख्य विशेषता: इसमें खरीदार को केवल एक प्रीमियम (एक अग्रिम राशि) का भुगतान करना होता है. यदि बाजार उनकी उम्मीद के विपरीत जाता है, तो वे केवल प्रीमियम की राशि खोते हैं, न कि पूरे अनुबंध का मूल्य.
- उदाहरण: मान लीजिए आपने एक स्टॉक पर 100 रुपये प्रति शेयर की स्ट्राइक प्राइस वाला एक कॉल ऑप्शन खरीदा है, और इसके लिए 5 रुपये प्रति शेयर का प्रीमियम चुकाया है. अगर स्टॉक की कीमत 110 रुपये हो जाती है, तो आप मुनाफा कमा सकते हैं. लेकिन अगर यह 95 रुपये पर आ जाती है, तो आप ऑप्शन को एक्सरसाइज नहीं करेंगे और केवल 5 रुपये का नुकसान उठाएंगे.
Also Read : Reliance Industries Share Price: मुकेश अंबानी की कंपनी को दो दिनों में 80,000 करोड़ रुपये का तगड़ा झटका, जानिए किस वजह से
F&O ट्रेडिंग के फायदे और जोखिम
फायदे
- जोखिम प्रबंधन (हेजिंग): निवेशक इन उपकरणों का उपयोग अपनी निवेशित पूंजी को संभावित नुकसान से बचाने के लिए कर सकते हैं.
- लीवरेज: कम पूंजी में बड़ी मात्रा में निवेश किया जा सकता है, जिससे संभावित मुनाफा बढ़ता है.
जोखिम
- उच्च जोखिम: चूंकि यह लीवरेज पर आधारित है, छोटे बदलाव भी बड़े लाभ या हानि में बदल सकते हैं.
- बाजार की अनिश्चितता: अगर बाजार की दिशा आपके अनुमान के विपरीत होती है, तो नुकसान हो सकता है.
नोट: F&O ट्रेडिंग में अनुभव और गहरी समझ की जरूरत होती है. इसलिए इसे सावधानीपूर्वक और जोखिम को समझते हुए किया जाना चाहिए.
डिस्क्लेमर: प्रभात खबर किसी को किसी भी कंपनी के शेयर में निवेश करने की सलाह नहीं देता. यह बाजार जोखिमों के अधीन है. निवेश करने से पहले किसी बाजार विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लें.