Indian women’s hockey team captain Salima Tete आजकल सुर्खियों में हैं। वह इस समय अपने खेल की वजह से नही बल्कि घर की समस्यायों के कारण चर्चा में हैं। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान होने के बावजूद भी सलीमा के परिवार को बुनियादी जरूरतें भी पूरी करने के लिए मीलों चलना पड़ता है।
सलीमा का घर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 165 किलोमीटर दूर है। जो सिमडेगा जिले के एक छोटे से गांव बड़की छापर में रहती हैं। उनके घर में माता पिता के अलावा दो बहनें है। जिन्होंने बुनियादी सुविधाओं के अभाव में सलीमा को यहां तक पहुंचाया। उनका परिवार 3 किलोमीटर दूर से पानी लाने के लिए मजबूर है। उनके गांव में में न पीने का पानी है, न पक्की सड़क, न मोबाइल नेटवर्क है और न ही पक्का घर।
3 किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है पानी
इंडिया टुडे मैगजीन में छपी रिपोर्ट्स अनुसार सलीमा टेटे के पिता बताते हैं कि उनके गांव में पानी की टंकी तो है, लेकिन टंकी का पानी इतना खराब कि आप पानी पी नही सकते। इसलिए हमें गांव के दूसरे छोर से एक कुएं से पीने और खाना बनाने के लिए पानी लाना पड़ता है। उनकी माँ बताती हैं कि जाड़े और गर्मियों में तो कम से कम जाकर ले आतें है पानी, लेकिन बरसात में रास्ते में फिसलने और जंगली जानवरों का डर बना रहता है
कोई मोबाइल नेटवर्क भी नहीं
पिछले दिनों टी20 विश्वकप जीतने के बाद जहां सभी भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी जश्न मना रहे थे और अपने परिवार जनों से बात कर रहे थे, वहीं भारत की महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे के साथ ऐसा नहीं है। गांव में सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है। जिसके कारण वह मैच के बाद भी अपने माता – पिता से बात नहीं कर पाती । यही कारण है कि जब सलीमा अपने घर आ जाती हैं तो बाकी पूरी दुनिया से कट जाती हैं। उनसे फोन ईमेल आदि किसी भी उपकरण से संपर्क करना मुश्किल हो जाता है।
नहीं मिली पक्की छत
सबसे परेशानी की बात तो यह है कि सलीमा का परिवार अब भी खपरैल में रहता है। उनके गांव में प्रधानमंत्री आवास तो दिए गए लेकिन सलीमा के परिवार को इसका फायदा नहीं मिला । टोक्यो ओलंपिक से वापस आने के बाद राज्य सरकार ने उन्हें घर देने का वादा किया था । लकीन Salima Tete ने बताया कि वह आज भी घर के इंतजार में हैं उन्होंने आरोप लगाया कि वह ईसाई हैं इसलिए उनके साथ यह भेदभाव ही रहा है। उन्होंने कहा कि हमें जात पात को नही देखना चाहिए, हम सब एक हैं, लेकिन मेरे गांव में ईसाई परिवारों के साथ भेदभाव हो रहा है।
खेल के वक्त परिवार वालों और गाँव वालों कई परेशानियां दिमाग में आती हैं लेकिन सबकुछ भूल कर मैदान में उतरना होता है । यह बदहाली सिर्फ सलीमा की ही नहीं है बल्कि सीनियर और जूनियर टीम के लगभग 10 खिलाड़ियों और उनके परिवारों की भी है। उनको बुनियादी सुविधाओं के आभाव में ही जीना पड़ रहा है।