पितृ पक्ष के 16 दिन पितरों को तृप्त करने और उनको प्रसन्न करने के लिए होते हैं. पितृ पक्ष का प्रारंभ भाद्रपद पूर्णिमा से होता है और समापन आश्विन अमावस्या के दिन होता है. इस साल पितृ पक्ष का प्रारंभ 17 सितंबर दिन मंगलवार से होगा. पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हैं, उनके लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध, दान, ब्राह्मण भोज, पंचबलि आदि करते हैं. इससे पितर खुश होते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं. इन कार्यों को करने से पितर को पितृ लोक से मुक्ति मिल सकती है. वे मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं. कुछ लोग पितृ पक्ष के समय में पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि नहीं करते हैं. ऐसा न करने से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं. इस बारे में विस्तार से जानते हैं काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से.
पितरों का तर्पण, पिंडदान नहीं करने से क्या होता है?
ज्योतिषाचार्य भट्ट का कहना है कि पितृ पक्ष पितरों की पूजा और तृप्ति का पखवाड़ा है. इस समय में जो भी व्यक्ति अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि नहीं करता है तो उसे पितरों के श्राप और नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है. उनको 3 गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
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1. संतानहीन
जो लोग अपने पितरों को तृप्त नहीं करते हैं, उनके पितर दुखी होकर अपने वंश को श्राप देते हैं. इसके कारण व्यक्ति संतानहीन हो सकता है. उसे पुत्र और पुत्री की प्राप्ति नहीं होती है. उसे पितृ दोष लगता है. वे इस वजह से श्राप देते हैं कि तुम्हारे रहने से वे तृप्त नहीं हो सकते हैं तो तुम्हें संतान का सुख प्राप्त न हो. मृत्यु के बाद जब तुम पितर अवस्था में आओ, तो तुम भी अतृप्त रहो.
2. धन हानि
पितरों के श्राप के कारण व्यक्ति के पास धन नहीं रहता है. उसके जीवन में धन का संकट रहता है. जीवनभर व्यक्ति कंगाली और दरिद्रता में रहता है. उसे रोजी-रोटी की दिक्कतें आती हैं. पूरा परिवार परेशान रहता है.
3. नहीं होती है तरक्की
जिन लोगों के पितर खुश नहीं होते हैं, उसका पूरा परिवार कलश, अशांति और परिजनों के बीच वैमनस्यता से परेशान रहता है. उस परिवार की तरक्की नहीं होती है. परिवार के सदस्य एक दूसरे पर शक करते हैं. परिवार का कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है. लोगों की सेहत खराब रहती है. धन का क्षय होता है.
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पितर वंश को देते हैं दंड
ज्योतिषाचार्य भट्ट के अनुसार, पितृ पक्ष के समय में तर्पण न करने पर पितृगण अपने वंश को दंड देते हैं. इस वजह से ही वे संतानहीन होने का श्राप देते हैं. कितना भी अनुष्ठान करा लो, लेकिन संतान सुख प्राप्त नहीं होता है. इसके लिए आपको सबसे पहले अपने पितरों को तृप्त करना होगा. प्रेत मंजरी में लिखा है कि जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण नहीं करते हैं, वे संतानहीन होते हैं और पितर उनको धीरे-धीरे खून चूसते हैं.
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FIRST PUBLISHED : September 11, 2024, 11:47 IST