Pitru Paksha 2024, Pitra Dosh Ke Upay: प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में पितरों के उद्धार को अत्यधिक महत्व दिया गया है. विशेष रूप से, पद्मपुराण में भगवान शिव द्वारा अपने पुत्र कार्तिकेय को दिया गया उपदेश कलियुग के संदर्भ में मानव जीवन के लिए अत्यंत प्रासंगिक और मार्गदर्शक माना जाता है. इस उपदेश में भगवान शिव ने पितरों की मुक्ति के लिए भक्ति की सर्वोच्चता का बोध कराया है, जो कर्मकांड और पिंडदान जैसी पारंपरिक विधियों से भी अधिक महत्वपूर्ण है.
यह भक्ति पितरों के लिए किसी भी अन्य कर्मकांड से अधिक फलदायी
भगवान शिव अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं, “हे पुत्र! इस संसार में, विशेषकर कलियुग में, वे ही मनुष्य धन्य होते हैं जो अपने पितरों के उद्धार के लिए निरंतर भगवान विष्णु, जिन्हें श्रीहरि के नाम से जाना जाता है, का भजन और सेवा करते हैं. यह भक्ति पितरों के लिए किसी भी अन्य कर्मकांड से अधिक फलदायी होती है.”
केवल पिंडदान या श्राद्ध जैसे कर्मकांड पर्याप्त नहीं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान और गया में श्राद्ध आदि कर्मकांड पितरों की मुक्ति के पारंपरिक साधन माने जाते हैं, लेकिन भगवान शिव का यह संदेश बताता है कि कलियुग में पितरों के उद्धार के लिए केवल पिंडदान या श्राद्ध जैसे कर्मकांड पर्याप्त नहीं हैं. शिवजी कहते हैं, “बहुत से पिंड देने और गया में श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं है यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से भगवान विष्णु का भजन करता है. हरिभजन के प्रभाव से ही मनुष्य अपने पितरों का नरक से उद्धार कर सकता है.”
सिर्फ कर्मकांड करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती
भगवान शिव ने आगे समझाया कि यदि पितरों की मुक्ति के उद्देश्य से भगवान विष्णु को दूध, जल, या अन्य पवित्र वस्तुओं से स्नान कराया जाए तो वे पितर स्वर्ग में पहुंचकर लाखों-करोड़ों कल्पों तक देवताओं के साथ आनंदपूर्वक निवास करते हैं. यह बताता है कि सिर्फ कर्मकांड करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि सच्ची भक्ति और हरिभजन से पितरों को उच्च लोकों में स्थान प्राप्त होता है.
शिवजी के इस उपदेश से यह स्पष्ट होता है कि कलियुग में मनुष्य के पास जितनी भी कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ हों, अगर वह हरिभजन के मार्ग पर चलता है, तो न केवल वह स्वयं का उद्धार कर सकता है, बल्कि अपने पूर्वजों, यानी पितरों, का भी नरक से उद्धार कर सकता है. कलियुग में भक्ति की शक्ति इतनी प्रबल मानी गई है कि वह किसी भी अन्य धार्मिक कर्मकांड को पार कर जाती है.
भगवान शिव का यह संदेश न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानव जीवन में भक्ति के महत्व को भी उजागर करता है. पिंडदान, श्राद्ध, और कर्मकांड अपनी जगह पर महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सच्ची भक्ति और भगवान विष्णु के प्रति समर्पण से पितरों का उद्धार सहज और अति फलदायी हो सकता है. इस प्रकार, शिवजी ने स्पष्ट किया कि कलियुग में हरिभजन ही सर्वोत्तम मार्ग है, जो व्यक्ति और उसके पितरों दोनों के जीवन को उन्नत कर सकता है.
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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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