भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजे जाते हैं.भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन पर हुआ था.
Parshuram Jayanti 2024 : हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रति वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को परशुराम जयंती मनाई जाती है. वहीं अक्षय तृतीया का त्योहार भी इस दिन मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पृथ्वी पर परशुराम के रूप में अवतरित हुए थे. कहा जाता है कि जो व्यक्ति भगवान परशुराम की पूजा विधि विधान से करता है, उस जातक को लंबी उम्र का वरदान मिलता है और तरक्की के मार्ग खुलते हैं. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिष आचार्य पंडित योगेश चौरे.
कौन हैं परशुराम?
भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजे जाते हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. इसलिए इनकी शक्ति कभी क्षय नहीं हो सकती. बल्कि भगवान परशुराम की शक्ति अक्षय थी. शास्त्रों में भगवान परशुराम को अमर कहा गया है. इन्हें भगवान शिव और विष्णु दोनों के संयुक्त अवतार के रूप में जाना जाता है. यह रेणुका और सप्तर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को सात अमर लोगों में से एक माना जाता है. इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी, जिसके बाद वरदान में इन्हें फरसा मिला था. इसके जरिए भगवान परशुराम ने कई युद्ध कला में महारत हासिल की. यह शस्त्र इन्हें बेहद प्रिय, था जिसे वे हमेशा साथ रखते थे.
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क्या है पूजा विधि
भगवान परशुराम जयंती के दिन सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य देव को जल अर्पित करें और भगवान परशुराम की आराधना करें. भगवान को नैवेद्य, पीले रंग के फूल, फल व पीले रंग की मिठाई चढ़ाएं. इसके बाद सपरिवार पूजा के आखिर में आरती करें और इस दिन ब्राह्मणों को दान भी दें. यह शुभ व फलदायी माना जाता है.
भगवान परशुराम जयंती पर जो जातक श्रद्धा के साथ भक्ति करता है, उन्हें मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत रखने और विधि, नियम का पालन करते हुए पूजा करने से मोक्ष के रास्ते खुलते हैं. वहीं जो जातक संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें संतान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही भगवान परशुराम और भगवान विष्णु की कृपा सदैव बनी रहती है.
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पौराणिक कथा
सनातन धार्मिक शास्त्रों के हिसाब से चिरकाल में महिष्मती नगर में नरेश सहस्त्रबाहु का शासन चलता था. कहते है कि यह राजा बहुत निर्दयी था. प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था. इनके नाम से प्रजा कांपती थी. उनके कार्यों से लोगों में दहशत और निराशा फैल गई थी. जिसके कारण धरती माता भगवान विष्णु के पास गईं. भगवान विष्णु ने पृथ्वी माता को यह आश्वासन दिया कि आने वाले समय में राजा सहस्त्रबाहु की क्रुरता और अत्याचार का अंत अवश्य ही होगा.
भगवान विष्णु ने कहा जब अधर्मी अत्याचार करते हैं तब धर्म का पतन होता है और धर्म की स्थापना के लिए मैं जरूर अवतरित होऊंगा. आगे श्री हरि ने कहा हे देवी! मैं महर्षि जमदग्नि के घर में पुत्र के रूप में जन्म लेकर इस क्रूर राजा का अंत करुंगा. अपने वचन के अनुसार, वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और कालांतर में भगवान परशुराम ने राजा सहस्त्रबाहु का वध किया और पृथ्वी वासियों को अधर्मी राजा के प्रकोप से मुक्त किया. युद्ध के बाद महर्षि ऋचीक ही परशुराम के क्रोध को शांत करने में सफल रहे.
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FIRST PUBLISHED : May 10, 2024, 12:00 IST