हथेली में सात मुख्य पर्वत होते हैं, जो सातों ग्रहों के प्रतीक हैं. हथेली का गड्ढा और उसके पास का क्षेत्र राहु और केतु को दर्शाता है.
Palmistry : हिन्दू धर्म में ज्योतिष शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र में हस्त रेखा का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि, हस्तरेखा को देखकर किसी व्यक्ति के भविष्य में होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं की जानकारी मिल सकती है. भोपाल निवासी ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश चौरे के अनुसार, हथेली में सात मुख्य पर्वत होते हैं, जो सातों ग्रहों के प्रतीक हैं. वहीं हथेली का गड्ढा और उसके पास का क्षेत्र राहु और केतु को दर्शाता है. यहां कई अलग-अलग जगहों को अलग-अलग ग्रहों का प्रतीक माना गया है. आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से.
पहली, दूसरी और तीसरी उंगली
अपने हाथ की पहली उंगली के नीचे के स्थान को गुरू पर्वत कहा जाता है. इसलिए इसे बृहस्पति की उंगली भी कहा जाता है. इस उंगली में सोने की अंगूठी में पुखराज धारण करने से बृहस्पति मजबूत होता है. वहीं दूसरी उंगली को मध्यमा उंगली कहा गया है और इसे शनि के उंगली भी कहा जाता है और इसके नीचे वाला भाग शनि पर्वत कहलाता है. जबकि, तीसरी अंगुली अनामिका नाम से जानी जाती है और यह सूर्य की उंगली है. इसके नीचे वाले पर्वत को सूर्य पर्वत कहलाता है.
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चौथी उंगली और अंगूठा
चौथी उंगली को कनिष्ठिका के नाम से जाना जाता है, जो बुध की उंगली है और इसके नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहा गया है. जबकि, अंगूठे के तीसरे पोर और जीवन रेखा के अंदर उभरे हुए स्थान को शुक्र पर्वत कहा गया है और इसके सामने वाले क्षेत्र को चन्द्र पर्वत कहा गया है.
यहां मिलेंगे कुछ ग्रह
शुक्र पर्वत और गुरु पर्वत के बीच जो जगह होती है उसे मंगल पर्वत कहा गया है. वहीं शुक्र और गुरु पर्वत के बीच की जगह को मंगल पर्वत, जबकि बुध पर्वत और चन्द्र पर्वत के बीच जगह केतु पर्वत कहा गया है. इसके अलावा केतु पर्वत के सामने वाली जगह यानी कि शनि और सूर्य पर्वत के नीचे हथेली का गड्ढा भी कहा जाता है, जिसे राहु पर्वत कहा जाता है.
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ग्रह देते हैं ऐसा फल
यदि किसी व्यक्ति के हाथ में कोई पर्वत लुप्त हो गया है तो उसमें उस ग्रह से संबंधित ग्रहों की कमी रहती है. यदि कोई पर्वत सामान्य विकसित है तो गुण भी सामान्य होंगे. यदि पर्वत अधिक विकसित हैं तो व्यक्ति भी अधिक गुणी होगा.
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FIRST PUBLISHED : October 5, 2024, 15:05 IST