स्वस्थ भोजन एवं खानपान केवल एक जीवनशैली नहीं है, यह संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते में वर्णित एक मौलिक बाल अधिकार भी है. हालांकि, जहां फूड ट्रेंड्स और खानपान की शैली लगातार विकसित हो रही है, यह विरोधाभास ही है कि कुपोषण और मोटापा दोनों एक साथ बढ़ रहे हैं, विशेषकर बच्चों एवं युवाओं में. यह स्पष्ट रूप से अस्वास्थ्यकर खानपान की आदतों और उनसे होने वाले दुष्परिणामों की ओर इशारा करता है.
खानपान की गलत आदतों के कारण पैदा होने वाली समस्याओं को समझना महत्वपूर्ण है, ताकि हम एक समुदाय के रूप में अपनी युवा पीढ़ी के सामने उत्पन्न चुनौतियों का समाधान खोज सकें और उनके लिए एक स्वस्थ भविष्य का निर्माण कर सकें.
कुपोषण अभी भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां गरीबी के कारण पौष्टिक भोजन तक लोगों की पहुंच सीमित है. इसके अतिरिक्त, खानपान की गलत आदतें भी शारीरिक विकास को प्रभावित करती हैं. इससे न केवल प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, बल्कि मानसिक विकास भी प्रभावित होता है. इसके विपरीत, शहरी क्षेत्रों में मोटापे की दर बढ़ रही है, जो अक्सर फास्ट फूड एवं मीठे पेय पदार्थ के सेवन तथा गतिहीन जीवनशैली के कारण है.
स्वस्थ आहार के बारे में जागरूकता की कमी बच्चों, किशोरों तथा युवाओं में कुपोषण और मोटापा दोनों के लिए जिम्मेदार है. एनएफएचएस-5 के अनुसार, झारखंड में किशोरों (15-19 वर्ष) में मोटापा 2.6 प्रतिशत है, जबकि 2.8 प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से अधिक है. जंक फूड का क्रेज भी बच्चों में दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है. इसका दुष्प्रभाव बच्चों एवं युवाओं के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
एक विडंबना यह भी है कि जहां कुछ बच्चों को पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है और वे कुपोषण के शिकार हो जाते हैं, वहीं अन्य अधिक मात्रा में गलत भोजन करने के कारण कई गैर-संचारी बीमारियों जैसे मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और कैंसर के शिकार हो रहे हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है. दुर्भाग्य से, हमारे युवाओं में इन परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों की प्रकृति बढ़ रही है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2022 में वैश्विक स्तर पर, पांच से 19 वर्ष की आयु के 390 मिलियन बच्चों एवं किशोरों का वजन अधिक पाया गया. इनमें से 160 मिलियन बच्चे मोटापे से ग्रस्त पाये गये. इसके अतिरिक्त, पांच वर्ष से कम उम्र के 149 मिलियन बच्चे नाटेपन और 37 मिलियन बच्चे अधिक वजन या मोटापे का शिकार थे. पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाली लगभग आधी मौतें पोषण से जुड़ी समस्याओं के कारण पायी गयीं.
झारखंड, जिसे ‘मिलेट स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, इस मुद्दे पर एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करता है. परंपरागत रूप से, मिलेट्स इस क्षेत्र का मुख्य भोजन रहा है, जो अत्यधिक पौष्टिक होने के कारण पोषण असंतुलन के विभिन्न रूपों का समाधान प्रदान करता है. फाइबर, प्रोटीन और आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर मिलेट्स स्वास्थ्य लाभों का पावरहाउस है. हालांकि, स्थानीय खाद्य पदार्थों की आसानी से उपलब्धता के बावजूद, आधुनिक खानपान की आदतों के कारण इसके उपयोग में कमी आयी है.
हालांकि, स्थानीय रूप से उगाये जाने वाले खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देने और युवाओं के बीच मिलेट्स की खपत को पुनर्जीवित करने के प्रयास चल रहे हैं. हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि हमारी युवा पीढ़ी स्वस्थ खानपान की आदतों को अपनाये. इसके लिए माता-पिता, समुदाय और सरकार को स्वस्थ खानपान की आदतों को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.
माता-पिता को चाहिए कि वे अपने जीवन में स्वस्थ भोजन तथा संतुलित आहार को अपनाकर बच्चों के लिए उदाहरण बनें. इसके अतिरिक्त, घर पर अस्वास्थ्यकर स्नैक्स और मीठे पेय की खपत को सीमित करें और फलों, सब्जियों तथा साबुत अनाज के उपयोग को बढ़ावा दें. इन उपायों द्वारा बेहतर खानपान की आदतों को बढ़ावा दिया जा सकता है. स्कूल के शिक्षकों की भी जिम्मेदारी है कि वह छात्रों को स्वस्थ खानपान की आदतों के बारे में जागरूक कर उन्हें स्वस्थ आदतों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें. समुदाय, स्कूल, सामुदायिक केंद्र और स्थानीय आयोजन में भी स्वस्थ भोजन विकल्पों के प्रचार-प्रसार से बेहतर खानपान की आदतों को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है.
सरकार को भी ऐसी नीतियों को लागू करना चाहिए, जो आंगनवाड़ी केंद्रों और स्कूलों में पौष्टिक भोजन को बढ़ावा दे और बच्चों के लिए अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की बिक्री एवं बाजारीकरण को प्रतिबंधित करे. इसके अतिरिक्त, प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के माध्यम से पोषण कार्यक्रमों का विस्तार करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि बच्चों को संतुलित भोजन और स्वस्थ खानपान की आदतों के बारे में उचित जानकारी मिले. अंत में, स्वस्थ भोजन केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं है, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी है, जिसके लिए माता-पिता, समुदाय और सरकार द्वारा ठोस प्रयासों की आवश्यकता है.
(ये लेखिकाद्वय के निजी विचार हैं.)