Thursday, December 19, 2024
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Navratri 2024 1st Day: शारदीय नवरात्र के पहले दिन आज हो रही है मां शैल पुत्री की पूजा-अर्चना

Navratri 2024 1st Day: आज 3 अक्टूबर 2024 से शारदीय नवरात्रि का आरंभ हो चुका है. सूर्योदय के बाद मां की आराधना शुरू हो चुकी है. आज रात 1.11 बजे तक प्रतिपदा मिलने के कारण भक्तों को पूजा के लिए काफी समय मिल रहा है.

मां शैलपुत्री की पूजा का शुभ मुहूर्त

गुरुवार अपराह्न 3:17 बजे तक कलश स्थापना का उत्तम मुहूर्त है. अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.36 से 12.22 बजे तक है. दोपहर 3.18 बजे तक हस्ता रहेगा और इसके बाद चित्रा लग जायेगा, जिसे शुभ माना जा रहा है. इसके अलावा ऐंद्र योग है, जो इस दिन को और शुभ बना रहा है. नवरात्र में चतुर्थी तिथि की वृद्धि और नवमी तिथि की क्षय है. वाराणसी पंचांग के अनुसार इस वर्ष मां का आगमन दोला (डोली) और गमन चरणायुद्ध (मुर्गा) पर हो रहा है, जो शुभ नहीं माना जा रहा है. बांग्ला पंचांग के अनुसार माता का आगमन डोली पर हो रहा है. इसका फल मड़क है. वहीं गमन घटक है. इसका फल छत्रभंग है. मिथिला पंचांग के अनुसार माता का आगमन डोली और गमन मुर्गा पर हो रहा है, जो शुभ नहीं है.
गुरुवार को मां के पहले स्वरूप शैल पुत्री की पूजा हो रही है. माता रानी को प्रसाद स्वरूप गाय का घी अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है. मां के केश के शृंगार के लिए चंदन का लेप, कंघी व त्रिफला अर्पित करने का महत्व है.

ऐसे करें मां की आराधना

मां की आराधना नौ दिनों तक उपवास, एक भुक्त व सात्विक भोजन कर की जा सकती है. कई भक्त नौ दिनों तक सिर्फ जल लेकर ही मां की आराधना करते हैं. पंडित कौशल कुमार मिश्र ने कहा कि मां की आराधना कलश बैठाकर अथवा बिना कलश स्थापित किये भी की जा सकती है.

ऐसे करें कलश स्थापना

कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा घर की सफाई कर लें. पूजन सामग्री एकत्रित करें. गंगा जल छींट लें. फिर संकल्प कर गणेश जी का ध्यान करें. इसके बाद पीला सरसों आदि छींट लें. कलश बैठा रहे हैं, तो कलश बैठानेवाली जगह पर बालू और उसमें हल्की मिट्टी का समावेश कर उसे गोल अथवा चौकोर बनाकर उसके ऊपर जौ का छिड़काव कर दें और कलश रख दें. फिर कलश में गंगाजल और घर में रखे जल को रखकर पंच पल्लव डाल दें. इसके बाद कलश में सिक्का, सुपारी, सप्तमृतिका आदि डाल दें. फिर ढक्कन बंद कर उसे रख दें. उसके ऊपर अक्षत रखकर नारियल में शालू अथवा पीला कपड़ा बांधकर रख दें. वहीं कलश में मौली सूता बांध लें. नवग्रह की पूजा के लिए वेदी बनाकर उसमें झंडा आदि लगा दें. इसके बाद माता रानी की मूर्ति या उनकी तस्वीर रख लें. चुनरी ओढ़ाकर टीका कर लें और स्वयं भी इसे लगा लें. इसके बाद भगवान की पूजा कर उनका आह्वान करें और बारी-बारी से सभी देवी-देवता की पूजा कर लें. फिर फूल व फूल की माला चढ़ाकर दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. यह पाठ संपूर्ण करें. यदि संपूर्ण नहीं कर रहे हैं, तो पहले दिन प्रथम अध्याय का पाठ करें. इसके बाद दूसरे दिन दूसरा-तीसरा अध्याय, तीसरे दिन चौथा, चौथे दिन पांचवां, छठा, सातवां, आठवां, पांचवें दिन नौवा और दसवां, छठे दिन 11वां अध्याय, सातवें दिन 12-13 अध्याय और आठवें और नौवें दिन देवी सुक्त का पाठ कर हवन करें. इससे पूर्व देवी कवच का पाठ कर लें. माता रानी की आरती कर प्रसाद आदि का वितरण करें. शाम में भी हर दिन माता रानी की आरती करें और प्रसाद आदि अर्पित करते हुए इसका वितरण करें. हर दिन क्षमा प्रार्थना का पाठ कर लें.


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