Saturday, November 16, 2024
HomeSportsNational Sports Day : ध्यान सिंह के ध्यानचंद बनने की कहानी

National Sports Day : ध्यान सिंह के ध्यानचंद बनने की कहानी

National Sports Day : असाधारण प्रतिभा के धनी मेजर ध्यानचंद हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ी माने जाते हैं. उनके जैसी प्रतिभा बिरले ही किसी में होती है. इसी कारण हॉकी में अपना भविष्य तलाशने वाले हर एक युवा के लिए ध्यानचंद ही आदर्श रूप में सामने आते हैं. ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में हुआ था. बाद में इनका परिवार झांसी आ गया. उनका असली नाम ध्यान सिंह था. विदित हो कि ध्यान सिंह के भाई रूप सिंह भी हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी थे. ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए उनके जन्मदिन, यानी 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है.

दिलचस्प है हॉकी से लगाव की कहानी

यह अचंभित करने वाली बात है कि जिस ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है, उनकी बचपन में हॉकी खेलने में रुचि ही नहीं थी. सेना में जाने के बाद ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया. कहते हैं कि ध्यानचंद जब सेना में भर्ती हुए, उस समय तक उनके मन में हॉकी को लेकर खास लगाव नहीं था. वास्तव में ध्यानचंद जिस रेजिमेंट में पदस्थापित थे, उसी रेजिमेंट में मेजर तिवारी भी थे, जिन्हें हॉकी से गहरा लगाव था और वे हॉकी खेलते भी थी. इन्हीं मेजर तिवारी की देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे और देखते-देखते अपनी प्रतिभा से दुनिया को चकित कर दिया. ध्यान सिंह को हॉकी के महान खिलाड़ी ध्यानचंद में परिवर्तित करने का पूरा श्रेय मेजर तिवारी को जाता है. यदि वे नहीं होते, तो शायद दुनिया ध्यानचंद की प्रतिभा से कभी परिचित ही नहीं हो पाती. न ही कभी वह जादूगरी देख पाती जो ध्यानचंद की हॉकी स्टिक से निकलती थी. तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ काम करते हुए ध्यानचंद ने हॉकी खेलना शुरू किया और 1922 एवं 1926 के बीच, कई सेना हॉकी टूर्नामेंट और रेजिमेंटल खेलों में भाग लिया. इस दौरान जिन्होंने भी ध्यान सिंह, यानी ध्यानचंद को हॉकी खेलते देखा, विशेषकर जिन्हें हॉकी की समझ थी, वे सभी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.

एम्सटर्डम ओलिंपिक में जब दोनों भाइयों ने मचाया धमाल

ध्यानचंद में गजब की खेल प्रतिभा थी. इसी कारण जब नवगठित भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) ने एम्स्टर्डम में 1928 के ओलिंपिक के लिए एक टीम भेजने का निर्णय किया, तो ध्यानचंद को ट्रायल के लिए बुलाया गया. ध्यानचंद ट्रायल में पास रहे और भारतीय ओलिंपिक टीम में उनकी जगह पक्की हो गयी. ध्यानचंद ने इस टूर्नामेंट के पांच मैचों में 14 गोल किये और शीर्ष स्कोरर रहे. उनके किये 14 गोलों में से नौ सर्वश्रेष्ठ गोल साबित हुए. अपने पहले ही ओलिंपिक में भारतीय टीम न केवल स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही, वह टूर्नामेंट की अजेय टीम भी रही. इस टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने हालैंड को 3-0 से हराया था, जिसमें दो गोल ध्यानचंद ने किये थे. एम्सटर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंग्लैंड में कुछ मैच खेले थे और वहां ध्यानचंद विशेष सफल रहे थे. जब 1932 के लॉस एंजिल्स ओलिंपिक के लिए भारतीय टीम का चयन किया गया था, तब ध्यानचंद भी उस टीम में शामिल थे, पर इस बार बिना ट्रायल के ही उन्हें टीम में जगह दी गयी थी. इस बार तो टीम में उनके भाई रूप सिंह भी शामिल थे. इस समय तक ध्यानचंद ने सेंटर फॉरवर्ड के रूप में बहुत सफलता प्राप्त कर ली थी. लॉस एंजिल्स ओलिंपिक में अपने भाई रूप सिंह के साथ मिलकर ध्यानचंद ने एक बार फिर धमाल मचाया. फाइनल में मेजबान अमेरिका को 24-1 की करारी हार दी और दुबारा से ओलिंपिक का स्वर्ण पदक भारत की झोली में डाल दिया. इस मैच में रूप सिंह ने 10 और ध्यानचंद ने आठ गोल दागे थे.

जब बर्लिन ओलिंपिक में खेले नंगे पांव

वर्ष 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में ध्यानचंद भारतीय टीम के कप्तान चुने गये. इस टूर्नामेंट में भी भारतीय टीम ने अपना वर्चस्व कायम रखा और वह अजेय रही. फाइनल में भारत ने मेजबान जर्मनी को 8-1 से हराया, जिसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किये थे. इस मैच के दूसरे हाफ में उन्होंने नंगे पैर खेला, ताकि मैदान पर उनकी गति तेज बनी रहे. इस टूर्नामेंट में भारतीय हॉकी टीम ने कुल 38 गोल किये, जिनमें 11 गोल ध्यानचंद ने किये थे. इस प्रकार स्वर्ण पदक के साथ भारत ने बर्लिन खेलों का समापन किया. कुल मिलाकर उन्होंने तीन ओलंपिक के 12 मैचों में 37 गोल किये. ध्यानचंद ने अपना अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच 1948 में खेला. अंतरराष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से भी अधिक गोल किये. ध्यानचंद के खेल की विशेषता थी कि वे गेंद को अपने पास ज्यादा देर तक नहीं रखते थे. उनके पास बहुत नपे-तुले होते थे और वे किसी भी कोण से गोल करने में दक्ष थे. ध्यानचंद ने अपनी विशिष्ट प्रतिभा से हिटलर ही नहीं, डॉन ब्रैडमैन को भी अपना मुरीद बना लिया था.

दिल्ली में ली अंतिम सांस

अगस्त, 1956 में ध्यानचंद भारतीय सेना से लेफ्टिनेंट के रूप में रिटायर्ड हुए. वर्ष 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. उनके जन्मदिन (29 अगस्त) को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है. इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं. कई वर्षों तक विश्व हॉकी के शिखर पर छाये रहने वाले ध्यानचंद की मृत्यु तीन दिसंबर, 1979 को दिल्ली एत्स में हुई. झांसी में उनका अंतिम संस्कार उसी मैदान पर किया गया, जहां वे हॉकी खेला करते थे. अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में उन्होंने लिखा था, ‘आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं.’ पर सच तो यह है वे एक असाधारण व्यक्तित्व थे. ऐसा व्यक्तित्व जिसे कोई बिसरा ही नहीं सकता.


Home

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular