मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभू श्रीराम की कथा और महिमा का पूर्ण वर्णन रामायण में है. श्रीराम एक मर्यादा की मूर्ति थे जिन्होंने अपने जीवन में हमेशा मर्यादा का पालन किया, बचपन में पिता की आज्ञा से गुरुकुल गये. बढ़े होकर माता कैकई और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए राजपाठ त्याग करके वन को चले गये.श्री राम पुरुष थे और दूसरों के सुख के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया. वो एक अच्छे पुत्र,पति, पिता और राजा थे.भगवान राम श्री हरि विष्णु के अवतार हैं और रामावतार लेकर वो देवताओं के मनोरथ सिद्ध करने आए थे.
होई है सोई जो राम रचि राखा
श्रीराम के जीवन में इन महिलाओं का था अहम स्थान:
मंथरा, कैकई, शूर्पनखा रामायण में इन सभी महिलाओं का प्रभू श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने में बहुत बड़ा हाथ था, इन सभी ने प्रभू की लिखी लीला को चरितार्थ करने में बहुत अहम भूमिका निभाई. इनके द्वारा किये कृत्य इतिहास में हास्य के पात्र बन गये, इन तीनों महिलाओं ने लोक कल्याण के लिए समस्त बुराईयां अपने ऊपर ले ली और प्रभू ने इनकी सहायता से वन जाने से लेकर रावण और रावण सेना के अंत तक की वीरगाथा लिख दी.
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सबसे अहम किरदार था ये :
प्रभू श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम बनाने में सबसे अहम किरदार उनकी पत्नि जगत जननी, आदि शक्ति माता सीता का था. प्रभू श्री राम के मर्यादा पुरुषोत्तम बनने पर उनकी अर्धांग्नि माता सीता का नाम लेना ही होगा क्योंकि वाल्मिकी रामायण के अनुसार श्री राम जब वनवास खत्म करके अयोध्या लौटकर आए तो राज्याभिषेक के बाद नगरवासियों ने माता सीता के चरित्र पर उंगली उठाई कि वह तो रावण के यहां रहकर आई है तो कैसे वह पवित्र हो सकती है? यही कारण था कि माता सीता को राजमहल छोड़कर फिर से वन में जाना पड़ा. एक जगह राजसभा में महर्षि वाल्मीकि बोले, ‘श्रीराम! मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि सीता पवित्र और सती है एवं कुश और लव आपके ही पुत्र हैं, मैं कभी मिथ्याभाषण नहीं करता. यदि मेरा कथन मिथ्या हो तो मेरी सम्पूर्ण तपस्या निष्फल हो जाय, मेरे इस कथन के बाद सीता स्वयं शपथपूर्वक आपको अपनी निर्दोषिता का वचन देंगीं’. वन जाने का वचन माता कैकई ने श्री राम के लिए लिया था परन्तु माता सीता तो स्वेच्छा से प्रभू के साथ बन गईं एवं 14 वर्षों तक कष्ट की भागीदार बनी, अगर मां सीता वन नहीं जाती तो श्रीराम को पता नहीं क्या क्या कहकर समाज उपमा देता लेकिन मां सीता ने वन जाकर श्रीराम के हर कार्य में उनकी मदद की थी. प्रभू तो मर्यादा पुरुषोत्तम बन गये पर माता सीता को मिला पुनः वनवास.
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FIRST PUBLISHED : September 30, 2024, 13:54 IST