Maa Mahagauri Katha: नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी देवी की आराधना की जाती है. इनके नाम से ही स्पष्ट है कि इनका स्वरूप पूरी तरह से गौर है. इनकी तुलना शंख, चंद्रमा और कुंद के पुष्प से की गई है.
मां महागौरी का रूप
मां महागौरी की चार भुजाएं हैं. मां का ऊपरी दायां हाथ अभय मुद्रा में स्थित है, जबकि नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू है और नीचे वाला बायां हाथ वर मुद्रा में है. मां की मुद्रा अत्यंत शांत है. मां भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या कर रही थीं, जिसके परिणामस्वरूप उनका शरीर तपस्या के कारण काला पड़ गया था. इसके बाद, मां ने अपने काले रंग को गौर वर्ण में परिवर्तित करने के लिए पुनः तपस्या की. मां की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके रंग को कांतिमय बना दिया, जिससे मां का रूप फिर से गौर हो गया. इसी कारण से मां के इस स्वरूप को महागौरी कहा जाता है.
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मां की आठवीं नवरात्रि पर मां महागौरी का पूजन कैसे करें ?
मां महागौरी के पूजन के लिए प्रातःकाल जल्दी उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लें.
घर के किसी स्वच्छ स्थान पर पूजा के लिए एक चौकी स्थापित करें.
इस चौकी पर देवी महागौरी की तस्वीर रखें.
चित्र के समक्ष शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें और देवी को कुमकुम से तिलक करें.
देवी के चित्र पर फूलों की माला अर्पित करें.
इसके पश्चात अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, चावल आदि सामग्री को क्रमशः चढ़ाते रहें.
देवी महागौरी को नारियल या उससे निर्मित मिठाई का भोग अर्पित करें.
मां महागौरी की व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कई हजार वर्षों तक कठोर तप किया. इस तप के दौरान उन्होंने जल और अन्न का सेवन नहीं किया, जिसके कारण उनका शरीर काला हो गया. मां पार्वती की तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया. महादेव ने तपस्या के समय उनके शरीर के काले पड़ने के कारण उन्हें गंगा जल से शुद्ध किया, जिसके परिणामस्वरूप उनका शरीर पुनः चमकदार हो गया. गंगा जल के प्रभाव से उनका रंग सफेद हो गया, जिससे उन्हें महागौरी के नाम से जाना जाने लगा.