इस साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन पर्व 26 अगस्त दिन सोमवार को है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लोग व्रत रखते हैं और बाल गोपाल का जन्मोत्सव मनाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में रात्रि के समय भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को हुआ था. इस वजह से हर साल जन्माष्टमी को रात के समय ही श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन आपको विधि विधान से लड्डू गोपाल की पूजा करनी चाहिए. पूजा के अंत में बाल गोपाल की आरती करें. आरती करने से पूजा में हुई कमियां दूर हो जाती हैं. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं जन्माष्टमी की आरती और उसकी विधि के बारे में.
जन्माष्टमी 2024 आरती विधि
26 अगस्त को जन्माष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात में 12:01 बजे से 12:45 बजे तक है. पूजा के समय बाल गोपाल की आरती के लिए एक पीतल या मिट्टी का दीपक ले लें. उसमें घी और रूई की बाती रखें. बाती को जलाएं और उससे बाल गोपाल भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें. यदि आपके पास घी का दीपक नहीं है तो आप कपूर से भी लड्डू गोपाल की आरती कर सकते हैं. आरती खड़े होकर करें. आरती गाएं और उस समय घंटी तथा शंख जरूर बजाएं. आरती के समापन के बाद उस दीपक को पूरे घर में लेकर जाएं. इससे आपके घर के अंदर की नकारात्मकता और दोष दूर हो जाएंगे. परिवार में सुख, शांति और खुशहाली आएगी.
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बाल गोपाल जी की आरती
आरती श्री बाल गोपाल जी की कीजे।
अपना जन्म सफल कर लीजे॥
श्री यशोदा का परम दुलारा।
बाबा की अखियन का तारा।।
गोपियन के प्राणों का प्यारा।
इन पर प्राण न्योछावर कीजे।।
आरती श्री बाल गोपाल जी की कीजे।
बलदाऊ के छोटो भैय्या।
कान्हा कहि कहि बोलत मैय्या।।
परम मुदित मन लेत बलैय्या।
यह छबि नैनन में भरि लीजे।।
आरती श्री बाल गोपाल जी की कीजे।
श्री राधावर सुघर कन्हैय्या।
ब्रज जन का नवनीत खवैय्या।।
देखत ही मन नयन चुरैय्या।
अपना सर्वश्व इनको दीजे।।
आरती श्री बाल गोपाल जी की कीजे।
तोतर बोलनि मधुर सुहावे।
सखन मधुर खेलत सुख पावे।।
सोई सुकृति जो इनको ध्याये।
अब इनको अपनो करि लीजे।।
आरती श्री बाल गोपाल जी की कीजे।
अपना जन्म सफल कर लीजे॥
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जन्माष्टमी 2024 श्रीकृष्ण जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारी की,
आरती कुंजबिहारी की, श्रीगिरिधर कृष्ण मुरारी की।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला,
श्रवण में कुंडल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लटन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक।
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की।
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं,
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग।
मधुर मिरदंग ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की, आरती कुंजबिहारी की।
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा,
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।
जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की, आरती कुंजबिहारी की।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू,
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू।
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की, आरती कुंजबिहारी की।
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की, आरती कुंजबिहारी की।।
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FIRST PUBLISHED : August 25, 2024, 18:01 IST