Kartik Purnima 2024 Vrat Katha: कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर शुक्रवार को है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने के बाद दान करते हैं. इससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, पाप मिटते हैं और मोक्ष भी प्राप्त होता है. कार्तिक पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त प्रात: 04:58 बजे से 05:51 बजे तक है. इस दिन सूर्योदय 06:44 ए एम पर होगा. कार्तिक पूर्णिमा के दिन व्रत रखकर भगवान शिव, सत्यनारायण भगवान, चंद्रमा और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं. पूजा के समय कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा पढ़ते हैं. इससे इस दिन का महत्व पता चलता है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा के बारे में.
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय जी ने तारकासुर राक्षस का वध करके देवताओं को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी. लेकिन तारकासुर के वध से उसके तीन बेटे तारकक्ष, कमला और विद्युन्माली बेहद दुखी और देवताओं के प्रति आक्रोशित थे. तारकासुर के बेटों ने देवताओं से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की उपासना प्रारंभ कर दी. उन तीनों ने अपने कठिन तप से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर दिया और अमरता का वरदान मांगा. ब्रह्म देव ने कहा कि यह वरदान नहीं दे सकते हैं, कोई और वरदान मांग लो.
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तब तीनों भाइयों ने कहा कि आप हमारे लिए 3 अलग-अलग नगर बना दें, जिसमें वे रहकर पृथ्वी, आकाश सब भ्रमण कर सकें. एक हजार साल बाद जब तीनों भाई मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं. जो देव एक ही बाण से इन तीनों नगरों को नष्ट कर दे, उसके हाथों ही हमें मृत्यु की प्राप्ति हो. ब्रह्म देव ने उनको यह वरदान दे दिया. वरदान के प्रभाव से तीन नगरों का निर्माण हो गया. तारकक्ष के लिए सोने, कमला के लिए चांदी और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बना था. उन तीनों भाइयों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया.
देवताओं के राजा इंद्र इन तीनों भाइयों से भयभीत होकर भगवान शिव के शरण में गए और मदद करने का निवेदन किया. तब भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया, जिसमें चंद्रमा और सूर्य उस रथ के पहिए बने. इंद्र, यम, कुबेर और वरूण उस रथ के घोड़े बने. हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बने. भगवान शिव बाण और अग्निदेव उसके नोक बने. ऐसे दिव्य रथ पर सवार होकर भगवान शिव उन तीनों राक्षस भाइयों से लड़ने पहुंचे.
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भगवान शिव और उन तीनों राक्षसों के बीच भीषण युद्ध हुआ. युद्ध के समय जैसे ही तीनों भाई एक सीध में आए, भगवान शिव ने उस दिव्य धनुष से बाण चलाकर एक बार में ही तीनों का संहार कर दिया. इस वजह से भगवान शिव को भगवान त्रिपुरारी भी कहा जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह घटना हुई थी, इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं.
तीनों राक्षसों का वध होने से सभी देवी और देवता प्रसन्न हुए. उन्होंने भगवान शिव की पूजा की. उसके बाद से काशी में जाकर गंगा स्नान किए. फिर वहां पर दीपदान किया. इस वजह से कार्तिक पूर्णिमा की शाम को देव दीपावली मनाई जाती है.
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FIRST PUBLISHED : November 14, 2024, 10:36 IST