Saturday, November 16, 2024
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पंडित जी से जान ले… शुक्र व गुरु तारा अस्त व उदय का समय….इन महीनों में नहीं होगे मांगलिक कार्य 

जालौर. शुक्रवार को अक्षय तृतीया है. हिंदू धर्म में ये तिथि बहुत शुभ मानी जाती है. इस दिन बिना मुहूर्त के शादी ब्याह और सारे काम किए जा सकते हैं. लेकिन इस बार गुरु और शुक्र दोनों ग्रह अस्त हैं इसलिए इस साल अक्षय तृतीया पर भी कोई शुभ कार्य नहीं होंगे.

नवग्रह में देवताओं के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्र का विशेष महत्व है. इन दोनों ही ग्रहों के स्थिति में बदलाव का असर मांगलिक और शुभ कामों के होने पर भी पड़ता है. गुरु अर्थात बृहस्पति के साथ ही शुक्र के अस्त होने से मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं और इन्हीं के उदय होने के साथ ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. यहां जानते हैं गुरु और शुक्र उदय और अस्त होने की तारीखें.

अस्त-उदय का समय
ज्योतिषाचार्य पंडित भानु प्रकाश दवे के अनुसार, संवत् 2081 वैशाख कृष्ण पक्ष रविवार को शुक्र ग्रह 28 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 17 मिनट पर मेष राशि में अस्त हो गया था. ये 29 जून 2024, को शाम 7 बजकर 37 मिनट पर मिथुन राशि में उदय हो जाएंगा. इसके साथ ही देवताओं का गुरु बृहस्पति संवत् 2081 वैशाख कृष्ण पक्ष, मंगलवार 7 मई को वृषभ राशि में रात 10 बजकर 8 मिनट पर अस्त हुआ और 6 जून को ये उदय हो जाएगा. इसलिए तब तक सारे शुभ और मांगलिक काम बंद रहेंगे.

शुक्र अस्त में क्यों नहीं होते मांगलिक कार्य ?
ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के राजा सूर्य के निकट जब कोई ग्रह एक तय दूरी पर आ जता है तो वह सूर्य ग्रह के प्रभाव से बलहीन हो जाता है. यही अवस्थ ग्रह का अस्त होना माना जाता है. शुक्र चूंकि सुख, वैवाहिक जीवन, विलासिता, विवाह, धन, ऐश्वर्य का कारक माने गए हैं. इसलिए शुक्र के अस्त होने पर मांगलिक कार्य में सफलता नहीं मिलती. शुक्र अस्त अवस्था में कुपित होता है, इससे व्यक्ति को इसके शुभ फल प्राप्त नहीं होते. यही वजह है कि शुक्र अस्त में शुभ काम की मनाही होती है.

गुरु अस्त में क्या वर्जित
ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य के दोनों तरफ लगभग 11 डिग्री पर बृहस्पति स्थित होने से अस्त माने जाते हैं. चूंकि देवगरू बृहस्पति धर्म और मांगलिक कार्यों का कारक ग्रह है. इसलिए गुरू तारा अस्त होने पर मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं.

शुक्र और गुरु तारा अस्त होने पर क्या न करें
शुक्र और गुरु तारा अगर अस्त हैं तो ऐसे में विवाह, गृह प्रवेश, बावड़ी, भवन निर्माण, कुआं, तालाब, बगीचा, जल के बड़े होदे, व्रत का प्रारम्भ, उद्यापन, प्रथम उपाकर्म, नई बहू का गृह प्रवेश, देवस्थापन, दीक्षा, उपनयन, जडुला उतारना आदि कार्य नहीं करें. वधु का द्विरागमन इस समय काल में वर्जित है.

Tags: Astrology, Local18


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