Israel Iran: दुनिया जहां रूस और यूक्रेन के युद्ध से चिंतित है, वहीं अब दो और देशों के बीच तेज होते संघर्ष ने तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है. इजराइल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष अब बेहद खतरनाक रूप ले चुका है. मंगलवार, 1 अक्टूबर की रात को ईरान ने इजराइल पर करीब 180 से अधिक मिसाइलें दागीं.
ईरान की इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ने कहा कि यह हमला हमास के पूर्व प्रमुख इस्माइल हानिया, हिज्बुल्लाह नेता हसन नसरुल्लाह और IRGC कमांडर अब्बास निलफिरोशन की मौत का बदला था. दोनों देश लगातार एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि कभी ये दोनों देश अच्छे दोस्त हुआ करते थे? फिर ऐसा क्या हुआ कि वे एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए?
ईरान-इजराइल दोस्त थे फिर दुश्मन कैसे बने? (Iran Israel were friends how did become enemies)
1948 में इजराइल की स्थापना हुई, और डेविड बेन-गुरियन देश के पहले प्रधानमंत्री बने. जल्द ही, अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन ने इजराइल को एक नया राष्ट्र मान्यता दी. 1949 में तुर्की ने इजराइल को मान्यता दी, और उसके बाद ईरान, जो आज इजराइल का कट्टर दुश्मन है, ने भी इजराइल को आधिकारिक रूप से मान्यता दी.
तुर्की के बाद ईरान इजराइल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था. उस समय दोनों देशों के रिश्ते अच्छे थे, कोई दुश्मनी नहीं थी और न ही कोई संघर्ष. यहां तक कि जब इराक के शासक सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला किया, तो इजराइल ने ईरान को हथियार और अन्य सैन्य सामग्री उपलब्ध कराई थी. दोनों देशों के बीच इस समय कोई तनाव नहीं था, और वे एक-दूसरे के सहयोगी माने जाते थे.
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इजराइल ईरान में कब से शुरू हुई दुश्मनी? (When did enmity between Israel Iran start)
दुश्मनी की शुरुआत 1979 की इस्लामी क्रांति से हुई, जब ईरान को इस्लामी गणराज्य घोषित किया गया और अयातुल्लाह खोमेनी ने सत्ता संभाली. इससे पहले, ईरान में पहलवी राजवंश का शासन था, जो मिडल ईस्ट में अमेरिका का करीबी सहयोगी माना जाता था. यही कारण था कि 1948 में जब इजराइल बना, तो ईरान ने उसे मान्यता दी और दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रहे. इजराइल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन और ईरान के शासक भी मित्र थे.
लेकिन इस्लामी क्रांति के बाद अयातुल्लाह खोमेनी की सरकार ने इजराइल को मान्यता देने से इनकार कर दिया और देश में इजराइल और अमेरिका के खिलाफ नफरत फैला दी. खोमेनी ने इजराइल के साथ सभी संबंध तोड़ दिए और इजरायली नागरिकों के पासपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके अलावा, तेहरान में स्थित इजरायली दूतावास को जब्त कर फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (PLO) को सौंप दिया गया. यहीं से इजराइल और ईरान के बीच दुश्मनी की नींव पड़ी.
परमाणु हथियार ने बिगाड़ी इजराइल ईरान की दोस्ती (Nuclear weapons ruined friendship between Israel and Iran)
इजराइल और ईरान के बीच संबंध तब और अधिक बिगड़ गए जब यह सामने आया कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है. इजराइल किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनने से रोकना चाहता था, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि मध्य पूर्व में किसी देश के पास परमाणु हथियार हों. 2012 में ईरान के प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या हो गई, और ईरान ने इस हत्या का आरोप इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद पर लगाया.
इसके अलावा, दोनों देशों के बीच दुश्मनी क्षेत्रीय वर्चस्व को लेकर भी बढ़ी. सऊदी अरब की ताकत पहले से ही क्षेत्र में काफी मजबूत थी, और ऐसे में ईरान ने अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए इजराइल के खिलाफ दुश्मनी को और गहरा कर लिया. ईरान पूरी दुनिया में यह संदेश देना चाहता था कि वह मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी है. इसी उद्देश्य से उसने हमास, हिज्बुल्लाह और हूती विद्रोहियों को समर्थन देना शुरू किया, जिससे इजराइल के साथ उसकी दुश्मनी और बढ़ गई.
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अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रभाव
अमेरिका और पश्चिमी देशों (America and Western countries) का इजराइल के साथ अच्छा संबंध रहा है, जबकि ईरान पश्चिमी प्रभाव का (Iran has been opposed to Western influence) विरोधी रहा है, खासकर 1979 की क्रांति के बाद. ईरान और इजराइल के बीच की दुश्मनी में अमेरिका की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि अमेरिका और इजराइल का गहरा सामरिक संबंध है, जबकि ईरान अमेरिका को “शैतान” मानता है. इन कारणों की वजह से, जो दो देश कभी एक-दूसरे के सहयोगी थे, वे अब जानी दुश्मन बन गए हैं. इस दुश्मनी का मुख्य आधार राजनीतिक, धार्मिक, और क्षेत्रीय मतभेद हैं, जो समय के साथ और अधिक गहरे होते गए हैं.