Health News : भारतीय खानपान में मसालों का बड़ा महत्व है. इसी कारण प्राय: हर भारतीय रसाई में आपको मसाले मिल जायेंगे. अन्य मसालों के साथ जायफल और जावित्री की मौजूदगी भी आपको वहां मिलेगी. परंतु क्या आप जानते हैं कि ये दोनों ही मसाले दो नहीं बल्कि एक ही हैं. एक बीज है, तो दूसरा उसकी ऊपरी परत है. आइए जानते हैं, जायफल की उत्पत्ति, खेती और उपयोग के बारे में…
इंडोनिशया का मूल निवासी है जायफल
जायफल का पेड़ विशाल और सदाबहार होता है. इस मसाले की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसके एक पेड़ पर अविश्वसनीय रूप से अलग-अलग दो मसाले फलते हैं- जायफल और जावित्री (Nutmeg and Mace). जायफल, फल के अंदर पायी जाने वाली गुठली अथवा बीज होता है, जबकि जावित्री, गुठली के ऊपर की जालीदार परत होती है. जायफल की उत्पत्ति इंडोनेशिया के बांदा में हुई थी. बांदा इंडोनेशिया के मसालों के द्वीप कहे जाने वाले मोलुक्का द्वीपों में से सबसे बड़ा द्वीप है. हालांकि, जायफल का अंग्रेजी नाम Nutmeg, लैटिन शब्द Nux और Muscat से मिलकर बना है. नक्स का अर्थ है ‘काष्ठफल’ और और मस्कट का अर्थ है ‘कस्तूरी जैसा’. इस मसाले का इतिहास पहली शताब्दी ईस्वी से आरंभ होता है जब रोमन लेखक प्लिनी ने इसके बारे में बताया था कि किस तरह एक ही पेड़ पर दो अलग-अलग स्वाद वाले नट फलते हैं. इस मसाले को 1600 के दशक में तब प्रसिद्धि मिली जब हॉलैंड ने बांदा द्वीप पर युद्ध छेड़ दिया. युद्ध छेड़ने का कारण ईस्ट इंडीज में केवल जायफल उत्पादन को अपने अधीन करना था. यहां तक कि हॉलैंड ने बाद में अंग्रेजों के स्वामित्व वाले जायफल उत्पादक द्वीप पर नियंत्रण के लिए मैनहट्टन द्वीप का सौदा तक किया था.
ऐसे होती है खेती
चूंकि जायफल और जावित्री व्यावहारिक रूप से एक ही पेड़ पर फलने वाले दो मसाले हैं, इसलिए उनकी खेती, उपज और कटाई एक समान होती है. जायफल के पेड़ आमतौर पर बीज से उगाये जाते हैं. पहले एक बर्तन में बीज अंकुरित किये जाते हैं. जब बीज अंकुरित होकर पौधे के रूप में बढ़ने लगते हैं, तो उन्हें गड्ढों में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इन पौधों को गड्ढों में रोपने का सबसे आदर्श समय मानसून होता है. जब ये पौधे छोटे होते हैं, तब गर्मी के महीन में उन्हें, विशेष रूप से थोड़ी छाया और उचित सिंचाई की आवश्यकता होती है. बीज से अंकुरित होने वाले ये पौधे पेड़ बनकर सात से आठ वर्षों में फल देने लगते हैं. 15 से 20 वर्षों के बाद जायफल के पेड़ पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं, सो इन पर फल भी खूब लगते हैं. जायफल के पेड़ों की जीवन अवधि लंबी होती है. एक पेड़ लगभग 60 वर्ष के आसपास जीवित रहता है. इन पेड़ों की खूबी यह है कि इन पर पूरे वर्ष फूल आते हैं. पेड़ खूब लंबे होते हैं और 66 फीट की ऊंचाई तक पहुंच सकते हैं. इस पेड़ पर जो फल लगते हैं वे आडू जैसे दिखते हैं. इन फलों के पकने के बाद इनसे बीज निकाल लिया जाता है. बीज के सूखने के बाद हमें जायफल और जावित्री दोनों प्राप्त होते हैं.
मसाले-औषधि दोनों में होता है उपयोग
जायफल का सेवन न केवल मसाले के रूप में किया जाता है, बल्कि इससे तेल भी निकाला जाता है. इसके तेल का उपयोग बड़े पैमाने पर इत्र और औषधी उत्पादकों द्वारा किया जाता है. इतना ही नहीं, दस्त, मतली, पेट में ऐंठन, दर्द, और गैस जैसी बीमारियों में भी इसका उपयोग किया जाता है. कैंसर, गठिया, गुर्दे की बीमारी और अनिद्रा के उपचार में भी यह उपयोगी साबित होता है. इस तेल का उपयोग मांसपेशियों के दर्द से राहत देने के लिए भी किया जाता है. जायफल और जावित्री दोनों का उपयोग मीठे और नमकीन व्यंजनों में भी किया जाता है. यह एक ऐसा मसाला है जो दुनियाभर में अलग-अलग तरह से उपयोग में लिया जाता है. भारत में यह गरम मसाला के रूप में उपयोग में लाया जाता है. वहीं कनाडा का एगनॉग, इतालवी तोर्तेलीनी, अमरीकी कद्दू की पाई, आयरिश मल्ड साइडर, स्कॉटिश हैगिस के अनिवार्य घटक (essential component) के रूप में जायफल का उपयोग किया जाता है.
सीमित मात्रा में करना चाहिए उपयोग
जायफल का सीमित मात्रा में ही उपयोग करना चाहिए. यदि अत्यधिक मात्रा में इसका उपयोग किया जाए, तो इसका असर वैसा ही होता है, जैसे किसी नशीले पदार्थ का होता है. वास्त में इसमें myristicin होता है, जो एक प्राकृतिक यौगिक है. इसी कारण इसकी अधिक खुराक लेने से चक्कर आने लगते हैं और आप मतिभ्रम की स्थिति में पहुंच जाते हैं, यानी अपना होशो-हवास खो बैठते हैं. इसका असर कुछ दिनों तक चल सकता है. वास्तव में इसके कैसेले, उत्तेजक, वातहर (carminative) और कामोत्तेजक गुणों के कारण पूर्वी देशों में इसका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है.