Wednesday, October 30, 2024
HomeReligionHappy Buddha Purnima 2024 : छह साल की तपस्या ने सिद्धार्थ को...

Happy Buddha Purnima 2024 : छह साल की तपस्या ने सिद्धार्थ को बनाया बुद्ध

कपिलवस्तु से बोधगया…राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध तक की यात्रा

कंचन, गया Happy Buddha Purnima 2024 : कपिलवस्तु में शाक्यों के राजा शुद्धोदन के पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म 563 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था. हम जानते हैं कि शुद्धोदन के साथ भद्दिय व दंडपाणि को भी शाक्यों का राजा कहा गया है, जिससे यही अर्थ निकलता है कि शाक्यों के प्रजातंत्र की गण-संस्था (संसद) के सदस्यों को लिच्छविगण की भांति राजा कहा जाता था. सिद्धार्थ की मां मायादेवी मायके जा रही थीं, तभी कपिलवस्तु से कुछ मील पर लुंबिनी नामक शालवन में सिद्धार्थ पैदा हुए. उनके जन्म के 318 वर्ष बाद (245 ईसा पूर्व) तथा अपना राज्याभिषेक के 20वें वर्ष अशोक ने इसी स्थान पर एक पाषाण-स्तंभ गाड़ा था, जो वहां अब भी मौजूद है.

सिद्धार्थ के जन्म के एक सप्ताह बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गयी और फिर उनका लालन-पालन उनकी मौसी प्रजापती गौतमी ने किया. तरुण सिद्धार्थ को संसार से विक्त व अधिक विचार मग्न देख राजा शुद्धोदन को डर लगा व चिंता हुई कि कहीं उनका लड़का साधुओं के बहकावे में आकर घर न छोड़ जाये, जैसा कि उनके जन्म के समय ज्योतिषियों व आचार्यों ने भविष्यवाणी की थी कि वह सांसारिक मोह, माया, बंधन से छुटकारा पाकर एक साधक के रूप में महात्मा के रूप में जाने जायेंगे. सिद्धार्थ को मोह, माया के बंधन में बांधने के उद्देश्य से पिता ने पड़ोसी कोलियगण (प्रजातंत्र) की सुंदरी कन्या भद्रा कापिलायनी (यशोधरा) से उनका विवाह करा दिया गया. इसके बाद उन्हें राहुल नामक पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई. यूं सिद्धार्थ अंतत: सांसारिक मोह, माया से विरत होकर घर-बार छोड़ ज्ञान की खोज में निकल पड़े.

39 वर्ष की आयु में घर छोड़ा, 45 की उम्र में ज्ञान पाया

सिद्धार्थ ने 39 वर्ष की आयु में (534 इसा पूर्व) में घर छोड़ा. छह वर्षों तक बोधगया के पास योग और अनशन की भीषण तपस्या की. ध्यान व चिंतन द्वारा 45 वर्ष की आयु में बोधि(ज्ञान) प्राप्त कर वह बुद्ध कहलाये. फिर उन्होंने अपने धर्म(दर्शन) का उपदेश कर 80 वर्ष की आयु में (483 ईसा पूर्व) में देवरिया जिले के कसया यानी कुशीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया. कपिलवस्तु से निकलकर बुद्ध राजगृह व गया में फतेहपुर के गुरपासिनी (गुरुपद गिरि) पहुंचे. वहां विश्राम पाकर कुर्किहार नामक स्थान पर पहुंचे. इतिहासवेत्ताओं का मानना है कि कुर्किहार से लगे पहाड़ी गांव तपोवन व जेठियन के रास्ते बुद्ध डुंगेश्वरी नामक स्थान पर आये.

तोपवन व जेठियन का यह क्षेत्र आज भी बौद्ध विहार के रूप में ही जाना जाता है. इन स्थानों पर बुद्ध के कई अवशेष (मूर्तियां) मिली हैं. डुंगेश्वरी पहाड़ी में माता डुंगेश्वरी (माता तारा) के समक्ष गुफा में बैठ छह सप्ताह तक बुद्ध ने बिना अन्न-जल ग्रहण किये घोर तपस्या की. वह कृषकाय हो गये. तभी उन्हें एक प्रतिध्वनि सुनायी पड़ी कि यहां ज्ञान नहीं मिलेगा, यहां से कुछ दूर और जाने पर बोधि की प्राप्ति होगी. सिद्धार्थ वहां से किसी तरह बकरौर के पास सुजाता गढ़ पहुंचे. जहां नाग कन्या सुजाता ने उन्हें यह कहते हुए कि वीणा के तार को इतना न खींच दो कि वह टूट ही जाये और इतना भी न ढीला छोड़ो कि सुर न निकले. पायस उनके सामने रख खाने का आग्रह किया.

बु्द्ध को यहीं से मध्यम मार्ग मिल गया और पायस ग्रहण कर फिर वे निरंजना नदी पार कर बोधगया पहुंचे, जहां पीपल के वृक्ष के नीचे तपस्या की और ध्यान लगाया और उन्हें बोधि(ज्ञान) की प्राप्ति हुई. वह महात्मा बुद्ध कहलाये. फिर यहीं से तथागत गुरुआ के भुरहा आदि स्थानों से गुजरते हुए औरंगाबाद, सासाराम के रास्ते सारनाथ पहुंचे, जहां उपदेश देते हुए कुशीनगर पहुंचे और महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया. इन क्षेत्रों को बौद्ध सर्किट से जोड़ने की मांग की जाती रही है.


Home

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular