Grahon Ki Mahadasha: जन्मकुंडली के बारह भाव होते है सभी भाव का प्रभाव अलग -अलग अलग होता है. इन सभी भाव के स्वामी भी अलग अलग होते है इसी भाव के अनुसार वयोक्ति के जीवन में सुख -दुःख नकारात्मक तथा सकारात्मक प्रक्रिया देखा जाता है.जन्मकुंडली में ग्रहों का प्रभाव तो होता ही है लेकिन वह ग्रह किस भाव में बैठे है उस अनुसार वयोक्ति को उनका प्रभाव पड़ता है.कई ग्रह एक भाव में बैठकर कई भाव को देखते है उनका भी प्रभाव उसी अनुसार मिलता है.आकाश मंडल में बहुत सारे ग्रह है उपग्रह है इनकी दशा तथा महादशा और अंतरदशा प्रभाव आपके कुंडली के जिस भाव में बैठे है उसी अनुसार मिलता है. अलग -अलग ग्रहों का महादशा का प्रभाव एक सीमित समय तक चलता है.
महादशा क्या होता है
महादशा का मतलब यह होता है कोई ग्रह अपनी मजबूत स्थिति में होता है और जन्मकुंडली के जिस भाव में होते है उस भाव के अनुसार शुभ तथा अशुभ प्रभाव देते है जिसके कारण व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.सभी ग्रहों का एक अवधि बना हुआ है ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति का कुल आयु 120 वर्ष मानी गई है इन 120 वर्ष में 9 ग्रह आते है इन सभी ग्रहों को बारह रशिया में बाटा गया है सूर्य के पास एक राशि की मिली वही चंद्रमा को एक राशि प्राप्त हुआ है बाकि सभी ग्रहों को 2 रशिया प्राप्त हुई है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों की महादशा इस प्रकार है
सूर्य 06 वर्ष,चंद्रमा 10 वर्ष ,मंगल 07 वर्ष ,राहु 18 वर्ष ,गुरु 16 वर्ष ,शनि 19 वर्ष ,बुध 17 वर्ष ,केतु 07 वर्ष ,शुक्र 20 वर्ष तक रहते है.
क्या होता है महादशा
महादशा का मतलब यह होता है कोई ग्रह अपनी मजबूत स्थिति में होता है और जन्मकुंडली के जिस भाव में होते है उस भाव के अनुसार शुभ तथा अशुभ प्रभाव देते है जिसके कारण व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.सभी ग्रहों का एक अवधि बना हुआ है ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति का कुल आयु 120 वर्ष मानी गई है इन 120 वर्ष में 9 ग्रह आते है और बारह रशिया में बट्टा गया है सूर्य के पास एक राशि की मिली वही चंद्रमा को एक राशि प्राप्त हुआ है बाकि सभी ग्रहों को 2 रशिया प्राप्त हुई है.
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों की महादशा इस प्रकार है
सूर्य 06 वर्ष,चंद्रमा 10 वर्ष ,मंगल 07 वर्ष ,राहु 18 वर्ष ,गुरु 16 वर्ष ,शनि 19 वर्ष ,बुध 17 वर्ष ,केतु 07 वर्ष ,शुक्र 20 वर्ष
क्या होता है ग्रहों का अंतरदशा
जब किसी ग्रह की महादशा चलता है उस महादशा के अंतर्गत 09 ग्रहों का गोचर होता है इसको भ्रमण भी कहते है उसे ग्रह का अंतरदशा कहा जाता है जिस ग्रह की महादशा चलती है. उसी ग्रह की अंतरदशा पहले चलता है फिर जन्मकुंडली के जिस भाव में वह ग्रह होते है उस भाव के अनुसार व्यक्ति को प्रभाव पड़ता है.
क्या होता है ग्रहों का प्रत्यंतर दशा
ग्रहों का प्रत्यंतर दशा का समय उस ग्रह के महादशा के अंतर्गत जिनकी प्रत्यंतर दशा चलती है उसका एक अवधि होता है उनका गणना करके प्रत्यंतर दशा निकला जाता है उसका प्रभाव भी कुंडली के जिस भाव में ग्रह बैठे है उसी अनुसार उनका प्रभाव भी पड़ता है.
कुंडली के बारह भाव के स्वामी के महादशा का प्रभाव
पहला भाव के स्वामी का महादशा आने पर (लग्नेश की) इस भाव से व्यक्ति के स्वास्थ्य को देखा जाता है जब लग्नेश की महादशा चलता है स्वस्थ्य ठीक रहता है मान -सम्मान पद प्रतिष्ठा का लाभ मिलता है.
प्रतिष्ठा का लाभ मिलता है
धनेश की महादशा आने पर धन का लाभ मिलता है लेकिन अष्टम भाव से सप्तम होने के कारण यह दशा स्वास्थ्य के लिए उत्तम नहीं माना जाता है.स्वस्थ्य को कष्ट देता है.
तीसरे भाव के स्वामी का महादशा आने पर (तृतीयेश का) यह दशा ठीक नहीं रहता है भाई को परेशानी होती है भाई के साथ बिना मतलब के भाई के साथ तनाव बनता है जिसे भाई के साथ रिश्ते बिगरते है.
चौथे भाव की महादशा आने पर( चतुर्थेश की महादशा) सुखदायक होती है चौथे भाव के स्वामी का महादशा आने पर सभी तरह से सुख प्राप्त होता है माता का सुख प्रदान होता है मकान का सुख प्राप्त होता है.सेवक का सुख मिलता है पारिवारिक सुख भरपूर बना रहता है.
पंचम भाव के स्वामी की महादशा आने पर (पंचमेश की महादशा )धनदायक तथा सुख भरपूर मिलता है संतान से सुख मिलता है साथ ही संतान की उन्नति होता है लेकिन माता के लिए अनुकूल नहीं रहता है माता का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा.
छठे भाव के स्वामी यानि (शत्रु भाव के महादशा )आने पर रोग बढ़ जाता है शत्रु का भय बना रहता है ,अपमान होता है संपति को लेकर विवाद बनता है साथ ही संतान को कष्ट मिलता है.
सप्तम भाव के स्वामी के महादशा आने पर (सप्तमेश की महादशा ) पत्नी के साथ विवाद बनेगा,पत्नी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है.बेकार का चिंता बना रहता है काम में मन नहीं लगता है.
अष्टम भाव के स्वामी का महादशा (अष्टमेश की महादशा) आने पर कष्ट मिलता है भय बना रहता है हानि होता है मृत्यु तुल्य काष्ठ मिलता है साथी के स्वास्थ्य हानि के परिणाम मिलता है.
नवम भाव के स्वामी के महादशा आने (नवमेश की महादशा )पर भाग्य में उन्नति होता है,पूजा -पाठ में मन लगता है इस समय तीर्थ यात्रा करने का अवसर मिलता है लेकिन माता के स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है उनको बहुत कष्ट मिलता है.
दशम भाव के स्वामी का महादशा ( दशमेश की महादशा)आने पर पिता के साथ लगाव बढ़ जाता है पिता का प्रेम आपसे जुड़ जाता है राजकीय कार्य से लाभ मिलता है.सता के लोगो के
साथ बर्ताव ठीक होगा , राज्य पक्ष से लाभ होता है पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होता है धन का लाभ होता है.आपका प्रभाव बढ़ जायेगा.
एकादश भाव के स्वामी का महादशा (लाभेश की महादशा)आपने पर पुत्र की प्राप्ति करवाता है ,स्थाई संपति का लाभ होगा,लेकिन पिता के लिए कष्टकारी होता है ,मित्र का सहयोग मिलेगा.
बारह भाव के स्वामी का महादशा आने पर ( व्ययेश की की महादशा ) स्वस्थ्य ठीक नहीं रहता है खर्च बढ़ जाते है धन का हानि होता है.जेल यात्रा बनता है शत्रु परेशान करेगे. मुकदमे में हानि होता है.इनकी महादशा आने पर कई तरह से कष्ट मिलता है .
उपाय
जन्मकुंडली में यदि शुभ भाव के स्वामी शुभ प्रभाव में हो वह ग्रह आपको सुबह फल देते है यदि शुभ भाव के स्वामी अशुभ भाव में बैठे है आपको उनका महादशा आने पर आपको शुभ फल नहीं देंगे .ऐसे में आपको उस ग्रह का रत्न धारण करनी चाहिए उस ग्रह का मंत्र का जाप करें.
जन्मकुंडली से सम्बंधित किसी भी तरह से जानकारी प्राप्त करने हेतु दिए गए नंबर पर फोन करके जानकारी प्राप्त कर सकते है .
ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847