Gemology: ज्योतिषशास्त्र में नौं ग्रह है और रत्नों में भी नौं रंग प्रमुख है.वैसे तो रत्न करीब 84 प्रकार के रंगों से प्रभावित होती है पर प्रमुख नौ रंग है.शेष रंगों वाले उप रत्न कहलाते हैं.जातक यदि जन्मकुंडली के अनुसार अपने राशि,लग्न तथा ग्रहस्थिति के विचार करवाकर या हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शरीर के विभिन्न लक्षण का विचार कर विधिपूर्वक रत्न धारण करता है उसका बिगड़ा भाग्य संवर सकता है और उसके रोगों का भी उपचार हो सकता है.
निरोग रहने के लिए ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व जरूरी
जिस प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए यह आवश्यक है कि भोजन,जल,लवण,विटामिन का उचित अनुपात शरीर में हो,इसी प्रकार मानव जीवन की श्रेष्ठता,सफलता निरोग रहने के लिए यह भी जरूरी है कि उसके जीवन पर समस्त ग्रहों का उचित प्रतिनिधित्व हो,तभी जीवन का सही और सुन्दर ढंग से विकास हो सकता है.क्योंकि प्रत्येक ग्रह जीवन के किसी न किसी मुख्य आयाम का प्रतिनिधित्व करता है. एक उत्तम जीवन के लिये यह आवश्यक है कि उसका शरीर स्वस्थ हो,भाग्य प्रबल हो,सन्तान एवं पत्नी का पूर्ण सुख हो तथा आय के उचित साधन हो,जिससे वह सुख सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत कर सके.इस प्रकार शारीरिकस्वास्थ,सुखपूर्ण जीवन,प्तनी,सन्तान,भाग्योदय आदि के लिए अलग-अलग कारक ग्रह है और इन समस्त ग्रहों का उचित अनुपात ही मानव जीवन की श्रेष्ठता के लिये आवश्यक है.इसमें से जो भी ग्रह दुर्बल पड़ता है उसी के कारण मनुष्य जीवन के यह भाग कमजोर हो जाता है.
मानवीय संबंध और ज्योतिष
देखें धातु और रत्न का विवरण
ऐसी स्थिति में उस दुर्बल ग्रह को सशक्त बनाने के लिये उससे सम्बन्धित धातु एवं रत्न पहना जाता है.वैज्ञानिक रूप से इसका तात्पर्य यह है कि एक विशिष्ट रत्न में एक विशिष्ट ग्रह की किरणों को सोखने की प्रबल शक्ति है और जिस प्रकार एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में विद्युत प्रवाहित की जा सकती है उसी प्रकार वह रत्न उस विशेष किरणों को सीखकर मानव शरीर में प्रवाहित कर देता है.इसी प्रकार विशिष्ट रत्नों के माध्यम से विशिष्ट किरणों को लेने से मानव जीवन का शारीरिक कष्ट दूर होकर जीवन सुखी और आनन्दपूर्ण हो जाता है.यहां सम्बन्धित धातु और रत्न का विवरण दिया जा रहा है-
1.सूर्य ग्रह के लिए धातु सोना,रत्न माणिक्य.
2.चन्द्रमा के लिए धातु चांदी,रत्न मोती.
3.मंगल के लिए धातु सोना रत्न लाल मुंगा.
4.बुध के लिए धातु सोना या कांसा रत्न पन्ना.
5.बृहस्पति के धातु सोना,रत्न पीला पुखराज.
6.शुक्र ग्रह के लिए धातु प्लेटिनम या चांदी.
7.शनि के लिए लोहा,शीशा रत्न नीलम.
8.राहु के लिए पंचधातु रत्न गोमेदक.
9.केतु के लिए पंचधातु रत्न वैदूर्य (लहसुनिया)
सूर्य का रत्न माणिक्य-(चिकित्सा में प्रयोग)-आयुर्वेद शास्त्रों में कहा गया है-“माणिक्य दीपनं वृष्यं कफवातक्षयार्तिनुत्” अर्थात् चिकित्सार्थ रत्नों का प्रयोग करने में निपुण वैद्दयजन माणिक्य की मधुर,चिकना,बात-पित्तनाशक तथा उदर रोगों में लाभकारी बताया गया है.चून्नी भस्म दीर्घ आयुष्य प्रदान करती है,क्षयरोग,पांडुरोग,नेत्र रोग,हृदय रोग,श्वेताणु वृद्धि (ज्वर),मस्तिष्क की दुर्बलता,चर्म रोग आदि सूर्य के अशुभ प्रभाव से उत्पन्न सभी रोगों के लिए माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए.सूर्य रत्न सदैव दाहिणी अनामिका में धारण किया जाता है.माणिक्य की अभाव में उपरत्न गारनेट, रंगसितारा,स्पाइनल या लाल मूनस्टोन में से किसी को भी सोने की अगुंठी में (रत्न को इसप्रकार जड़ा जाये की वह त्वचा को स्पर्श करे) जुड़वाकर रविवार को धारण करें.
चन्द्रमा का रत्न मोती-चन्द्रमा का भी शुभ अशुभ प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है.जन्मांग चक्र में चन्द्रमा की अलग-अलग स्थितियां जातक पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालती है.जिसके फलस्वरूप जातक को विभिन्न प्रकार के रोगों जैसे सर्दी जुकाम,खाँसी,मानसिक अवसाद,मासिक धर्म सम्बन्धी रोग,पेशाब की जलन,पित्ताशय की पथरी,दंत रोग,पायरिया आदि रोगों का सामना करना पड़ता है.प्राचीन काल से लेकर आज के वैज्ञानिक तथा आधुनिक युग में आयुर्वेदिक एवं युनानी विधि में रोगों से छुटकारा पाने के लिए मोती रत्न का प्रयोग तथा अनुसंधान होते चले आ रहे हैं.रासायनिक दृष्टि से विश्लेषण करने पर पाया गया है कि मोती में कैल्शियम लगभग 82.86 प्रतिशत,कांची ओलिन 10-14 प्रतिशत तथा कार्बन,इसकी कठोरता 2,50-3.50 तथा विशिष्ट गुरूत्व 2.40-2.78 तक होता है.मोती एक खनिज पदार्थ न होकर प्राणिज अपार दर्शक रत्न होता है.मोती की उत्पत्ति घोंघा के पेट में ऐन्द्रियक पदार्थों का मिलन इससे मोती चिकित्सा के लिये बहुत लाभकारी हो जाता है.मोती रत्न चांदी में मढ़ाकर सोमवार को धारण करें.
मंगल का रत्न-लाल मूंगा- मंगल ग्रह का शुभ तथा अशुभ प्रभाव मानव पर पड़ता है.शुभ प्रभाव से जहां मानव प्रगति,साहस,उद्यम की ओर अग्रसर होता है वही मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप यकृत व तिल्ली रोग,गैस,बवासीर,जोड़ों के दर्द,रक्त-पित्त,हृदय रोग,खून की कमी,सिर दर्द आदि रोग का सामना करना पड़ता है.प्राचीन काल से ही आयुर्वेद तथा ज्योतिषीय परामर्श मंगल के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए प्रवाल अर्थात् मूंगा रत्न विधिपूर्वक धारण करने से रोगों में लाभ प्राप्त होता है.
बुध का रत्न-पन्ना- आयुर्वेद प्रकाश के अध्याय 5 श्लोक 106 में पन्ना के विषय में लिखा है कि यह विष को मारने वाला,शीतल,रस का मीठा अम्ल तथा पित्त को दूर करने वाला,रूचि कारक,पोषक और भूत बाधा को दूर करता है.रस तन्त्र में पन्ने को दीपन,रसायन,औजवलंक तथा विष नाशक कहते हैं.रस रत्न समुच्चय में लिखा है-पन्ना,ज्वॉर,वमन,विष,दमा,सन्निपात,अपन,बवासीर,पाण्डु,तपेदिक(T.B),वाकदोष,शोथ आदि रोगों को नष्ट कर शरीर में बल एवं सौन्दर्य को बढ़ाता है.प्यारे हरे रंग के कारण पन्ना दृष्टि शक्ति के लिये उत्तम है.मिरगी से बचाता है,पेचिश दूर करता है.सन्तान जन्म के समय पन्ना रत्न स्त्री का परम सहायक है.
बृहस्पति का रत्न-पुखराज-आयुर्वेद प्रकाश में वर्णन है कि पुखराज दीपन,पालन और हल्का होता है और शीत वर्षीय,अनुलोमन,रसायन तथा विष के प्रभाव को दूर करने वाला होता है.जन्मकुंडली में गुरू की अशुभ स्थिति से कण्ठ विकार,टाइफाइड,अनिद्रा,गलगण्ड(गोएटर),यकृत विकार,अतिसार(डाइरिया),मन्दाग्नि,मानस क्षोभ आदि रोगों में पुखराज रत्न सोने में जड़वाकर गुरूवार को धारण करने से लाभ होता है.
शुक्र रत्न हीरा- शुक्र ग्रह को काल पुरूष का “काम” माना गया है.यह ग्रह वीर्य,हावभाव,त्वचा का रंग,मैथुनिक रोग,स्त्री-संसर्गजन्य रोग जैसे एडस पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनिटी डिफिसिएन्सी सिन्ड्रोम है.मुत्राशय सम्बन्धी रोग तथा मनुष्य शरीर के गुप्तांग का प्रतिनिधित्व करता है.प्रभावशाली शुक्र होने पर जातक गोल चेहरा,घुंघराले बाल वाला,विपरीत योनि के प्रति आकर्षित रहने वाला तथा गौरवर्ण का होता है.जन्मकुंडली में शुक्र निर्बल,अस्त अथवा वक्री हो तो जातक प्रमेह रोगी,चर्म रोगी,दन्त रोगी,स्वप्नदोष,मधुमेह(डायबिटीज),धनुर्वात(टिटनेस),उन्माद और अनिद्रा आदि रोगों से पीड़ित होता है.शुक्र के अशुभ प्रबाव जनित रोगों से छुटकारा पाने के हीरा संभव न हो तो हीरे के बदले सफेद जिरकान,सफेद पुखराज,सफेद तुरमली,ओपल आदि धारण कर सकते हैं.
शनि का रत्न नीलम-शनि ग्रह को लोहा,भैंस,तेल,तिल,नमक,उड़द,नीलम,श्मशान,गन्दी वस्तियों तथा काले रंग की अधिपति माना गया है.जन्म कुणडली में शनि ग्रह बली अथवा उच्च राशिस्थ होकर शुभ भाव में विद्यमान है तो लोकप्रियता,सार्वजनिक प्रसिद्धि,वाहन सुख,गृह सुख तथा समृद्धि बढ़ाता है.अशुभ शनि अतुलनीय दुःख एवं मानसिक संत्रास उत्पन्न करता है,शनि निर्बल अथवा नीच राशिस्थ है तो दारिद्र,चोर-भय,लकवा,उदर-व्याधि,नेत्र रोग,चोट आदि से अंग-भंग,फोड़ा फुन्सी,कुष्ठ रोग,लकवा,शरीर के गुप्त स्थानों में रोग,कमर दर्द (साइटिका) आदि रोग उत्पन्न करता है.शनि के दुष्प्रभाव जनित रोगों से मुक्ति पाने के लिए अपना जन्मकुंडली या हस्तरेखा के विचार कर नीलम रत्न विधि पूर्वक धारण करें.
राहु का रत्न-गोमेद-राहु ग्रह को प्रत्यक्ष प्रभाव देने वाला माना गया है.इसे ज्योतिष शास्त्र में अत्यन्त शक्तिशाली ग्रह माना गया है.मानव शरीर राहु का पांवों पर आधिपत्य माना गया है.जन्मकुंडली में राहु ग्रह बली होकर शुभ भावों में विद्यमान हो तो जातक को राजनीति में सफलता देता है.राहु अशुब प्रभाव दे रहा है तो जातक को चर्बी जनित रोग,उदर रोग,प्रमेह रोग,बवासीर,हड्डी रोग,वात रोग,कमर दर्द,मद्यपान,नेशा,मानसिक अवसाद(डिप्रेशन),आलसी आदि रोगों से पीड़ित रहता है.राहु के दुष्प्रभाव जनित रोगों से मुक्ति पाने के लिये गोमेद रत्न धारण करना चाहिए.विशेष परिस्थितियों में किसी ज्योतिषी से परामर्श करें.
केतु का रत्न-लहसुनियां- जन्म कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव होने से स्नायु सम्बन्धी रोग,चर्म रोग,कुष्ठ रोग,वायु रोग,हाथ पाँव में कष्ट,क्षुधा जनित रोग आदि होता है.आयुर्वेद शास्त्र तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु के अशुभ प्रभाव जनित रोगों से छुटकारा पाने के लिए वैदुर्य मणि लहसुनिया रत्न धारण करना चाहिए.
इस तरह प्राचीन काल से आज तक भारतीय ऋषि तथा महर्षियों ने जंगल में रहकर प्राकृतिक वनस्पति तथा रत्नों के द्वारा अनेक असाध्य रोगों का इलाज सफलता पूर्वक किया है.
डॉ.एन.के.बेरा