Ganesh Chaturthi 2024: भगवान गणेश के जन्मोत्सव रूप में गणेश चतुर्थी मनायी जाती है.गणेश पुराण,स्कन्द पुराण के अनुसार गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को हुआ था.इस बार 7 सितम्बर से 17 सितम्बर तक गणेश महोत्सव रहेगा.इस बार की गणेश चतुर्थी बहुत खास है.ज्योतिष के अनुसार गणेश चतुर्थी पर 100 साल बाद 4 योग का महासंयोग बन रहा है.इसके अलावे स्वाति और चित्रा नक्षत्र रहेगा.ब्रह्मयोग,रवि योग,इंद्रयोग,सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है.
गणेशजी और चतुर्थी तिथि का संबंध
श्री गणेशजी के जन्मोत्सव के साथ इस चतुर्थी का पूर्ण सम्बन्ध है.श्री गणेश के गजबदन को देख चन्द्र ने इसकी हंसी उड़ाई थी इस पर गणेशजी ने चन्द्र को श्राप दिया कि आज से तुम्हें जो देखेगा उसे पाप व मिथ्या कलंक लगेगा.चन्द्र के क्षमा मांगने व कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर श्राप का निवारण करते वक्त गणपति ने कहा कि केवल भाद्रपद शुक्ल 4 के दिन जो तुम्हें देखेगा उसे मिथ्या कलंक लगेगा.पर उस दिन जो मेरा दर्शन-पूजन करेगा उसका दोष दूर होगा.
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इसलिए मनाया जाता है गणेश उत्सव
भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी के दिन आदि देव आशुतोष भगवान शिवजी के पुत्र गणपति की उत्पत्ति हुई थी.उनका गजानन रूप में जन्म भाद्रपद शुक्ल चौथ को हुआ.उस दिन ही वे सब गणों के अधिपति बने और शिवजी से अनमोदित होकर सभी देवताओं ने उनको गणपति के रूप में सिंहासन पर बिठाया.गणपति ने तुरन्त माता पिता के चरणों में भक्ति पूर्वक वन्दन किया और पूजा की.इस पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने गणपति जी को वरदान दिया कि भाद्रपद शुक्ल चौथ के दिन से अनन्त चतुर्दशी तक 10 दिन का गणेश उत्सव जो मनायेगा व चतुर्थी को जो व्रत करेगा उसके सभी मनोरथ पूरे होंगे.उसके धन-धान्य लक्ष्मी की वृद्धि होगी घर में ऋद्धि सिद्धि भंडार भरपूर होंगे.वह शोक रहित होकर सभी मंगल को प्राप्त करेगा.इस दिन गजानन की उत्पत्ति से पार्वती और शिव दोनों ही प्रसन्न हो गये थे.देवताओं का संकट हट कर उनमें भी मंगल हो गया था.अतः यह व्रत संकट नाशन गणपति का सर्वप्रिय है.इसे जो कोई भी पृथ्वी पर करेगा उसके सभी संकट व विध्न नष्ट होंगे.
व्रती को चाहिए कि वह एक कलश स्थापित करके उस पर गणपति की मूर्ति की पूजा करें.उसके बाद विधि के अनुसार वेदी का निर्माण कराकर उस पर रंगों से अष्टदल बनाकर ब्राह्मण के द्वारा विधि विधान से हवन करवायें.रात्रि में जागरण करें.प्रातःकाल पूजन करके पुनरागमन के लिए ग्रह-गण का विर्सजन कर गणपति को स्थिर रहने का न्योता दे.ऐसा करने से उनकी कार्यसिद्धि होती है.सभी वर्ण के लोगों के लिए यह व्रत है विशेष कर स्त्रियों को यह पूजा व्रत अवश्य करना चाहिये.जो भी गणेश जयन्ती का उत्सव मनायेगा.वह परम सुखी होगा.सन्तान की चाहत रखने वाले को सन्तान,पुत्र की कामना रखने वाले को पुत्र,रोगी को आरोग्य,अभागे को सौभाग्य मिलेगा.जिस स्त्री को पुत्र और धन नष्ट हो गया हो या पति परदेश चला गया हो उसे उसका पति मिलेगा.गणपति को भक्ति-श्रद्धा सहित पूजा उपासना करने से व्रती मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है वह निश्चित ही उसे प्राप्त होता है.
श्री गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी रामायण में श्रीपार्वतीजी को श्रद्धा और शंकरजी को विश्वास का रूप माना है.किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए श्रद्धा- विश्वास,दोनों का ही होना आवश्यक है.जब तक श्रद्धा न होगी,तब तक विश्वास नहीं हो सकता तथा विश्वास के अभाव में श्रद्धा भी नहीं ठहर पाती.वैसे ही पार्वती और शिव से श्रीगणेशजी हुए.अतः श्रीगणेश सिद्धि और अभीष्टपूर्ति के प्रतीक हैं.
गणेशमेकदन्तं च हेरम्बं विघ्ननाशकं ।
लम्बोदरं शूर्पकर्ण गजवक्त्रं गृहाग्रजम् ।।