Economic Survey: वित्त वर्ष 2023-24 के लिए लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि फिलहाल देश के वित्तीय क्षेत्र की स्थिति बेहतर है, लेकिन उसे झटकों से निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है. इसमें कहा गया है कि देश का वित्तीय क्षेत्र प्रगति के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है. कर्ज के लिए बैंकों पर निर्भरता कम हो रही है और पूंजी बाजार की भूमिका बढ़ रही है. इसके साथ ही, भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है. ऐसे में यह बदलाव लंबे समय से प्रतीक्षित और स्वागतयोग्य है.
पूंजी बाजार पर निर्भरता की चुनौतियां अलग
आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में कहा गया है कि पूंजी बाजार पर निर्भरता और उसके इस्तेमाल की अपनी चुनौतियों भी हैं. ऐसे समय जब भारत का वित्तीय क्षेत्र इस महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है, तब उसे झटकों के लिए भी तैयार रहना होगा. इसके साथ ही, जरूरी हस्तक्षेप और जोखिम से बचाव को लेकर नियामकीय और सरकारी नीतियों के साथ खुद को तैयार करने की भी जरूरत है.
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कंपनियों और बैंकों के बही-खाते निजी निवेश होगा मजबूत
लोकसभा में सोमवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि निकट भविष्य में कंपनियों और बैंकों के मजबूत बही-खाते निजी निवेश को और मजबूत करेंगे. हाउसिंग रियल एस्टेट बाजार में पॉजिटिव रुझान से संकेत मिलता है कि परिवारों के स्तर पर पूंजी निर्माण काफी बढ़ रहा है. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन और उनकी टीम की ओर से तैयार आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत 2047 तक एक विकसित देश बनने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रहा है. इसलिए यह जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर वित्तीय मध्यस्थता की लागत में कमी आए.
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एमएसएमई में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वित्तीय क्षेत्र को पूंजी निर्माण का समर्थन करने और एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम) में व्यापार, व्यवसाय और निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि उन्हें बड़े पैमाने का बनाया जा सके. इसमें कहा गया है कि इसे सभी नागरिकों को बीमा सुरक्षा और सेवानिवृत्ति सुरक्षा प्रदान करने की भी जरूरत है. देश में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बीमा और पेंशन फंड संपत्तियों की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत और पांच प्रतिशत है, जबकि अमेरिका में यह 52 प्रतिशत और 122 प्रतिशत है. ब्रिटेन में यह 112 प्रतिशत और 80 प्रतिशत है. इसका मतलब यह है कि इसमें आगे सुधार की काफी गुंजाइश है. सर्वेक्षण में सिफारिश की गई है कि वित्तीय क्षेत्र की सार्वजनिक और निजी कंपनियों को ग्राहक-केंद्रित बनना होगा. इसके बिना कोई भी आंकड़े बेमानी हैं.
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