Sunday, October 20, 2024
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Eid-Ul-Adha 2024: कब है बकरीद का पर्व, जानें सही तारीख और इस दिन कुर्बानी देने का महत्व

Eid-ul-adha 2024: बकरीद मुसलमानों के सबसे बड़े त्योहारों मे से एक है. इस बार बकरीद 17 जून को मनाया जायेगा. इस्लाम धर्म मे बकरीद के दिन को बलिदान का पतीक माना जाता है. बकरीद को ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा के नाम से भी जाना जाता है. बकरीद के दिन नमाज अदा की जाती है, इसके बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है. इस्लामिक स्कॉलर इस्लाम अहमद शाही ने बताया कि भागलपुरी ने बताया कि कुर्बानी का अर्थ है कि रकषा के लिए सदा तत्पर. हजरत मोहम्मद साहब का आदेश है कि कोई व्यक्ति जिस भी परिवार, समाज, शहर मे रहने वाला है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह उस समाज और परिवार की हिफाजत के लिए कुर्बानी दे. ईद-उल-जुहा में भी गरीबों का खास ख्याल रखा जाता है.

कुर्बानी के बकरे को क्यों बांटा जाता है?

कुर्बानी के बकरे को तीन अलग-अलग हिस्सों मे बांटा जाता है. पहले भाग रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए होता है. वहीं दूसरा हिस्सा गरीब, जरुतमंदों को दिया जाता है, जबकि तीसरा हिस्सा परिवार के लिए होता है, जिसे तुरंत बांट दिया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पैगंबर हजरत इब्राहिम ने अल्लाह की इबादत मे खुद को समर्पित कर दिया था. एक बार अल्लाह ने उनकी परीकषा ली और उनसे उनकी कीमती चीज की कुर्बानी मांगी. तब उन्होंने अपने बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बानी देनी चाही, लेकिन तब अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहिम के बेटे की जगह वहां एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी. कहा जाता है कि तब से ही मुसलमानों मे बकरीद पर बकरे की कुर्बानी देनी की परंपरा शुरू हुई

क्यों दी जाती है कुर्बानी?

इस्लामिक मान्यता के अनुसार एक बार अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहीम की परीक्षा लेनी चाही. इसलिए उन्होंने हजरत इब्राहीम को सपने में अपनी एक प्यारी चीज कुर्बान करने के लिए कहा, जब हजरत इब्राहीम उठे तो वह इस सोच में पड़ गए कि आखिर उनके लिए सबसे प्रिय चीज क्या है? कहा जाता है कि हज़रत इब्राहीम अपने इकलौते बेटे इस्माइल को सबसे अधिक प्रेम करते थे. वहीं एक चीज है जिसे वह सबसे अधिक प्रेम करते थे, लेकिन अल्लाह की मांग को पूरा करने के लिए वह अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए.

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जब अपने बेटे को लेकर कुर्बान करने…

जब वह अपने बेटे को लेकर कुर्बान करने के लिए जा रहे थे, तो उन्हें एक शैतान मिला. जिसने हजरत इब्राहीम से कहा कि आप अपने बेटे को क्यों कुर्बान कर रहे हैं, इसके बदले किसी जानवर की कुर्बानी दे दें. हज़रत इब्राहीम साहब को शैतान की ये बात अच्छी लगी. लेकिन उन्होंने सोचा कि ये तो अल्लाह के साथ धोखा करना है और उनके द्वारा दिए गए हुक्म की नाफरमानी होगी. इसलिए वह बिना कुछ सोचे अपने बेटे को लेकर आगे बढ़ गए. उस जगह वह पहुंच गए जिस जगह पर बेटे की कुर्बानी देनी थी. उन्होंने अपने आंखों में पट्टी बांध ली, जिससे पुत्र मोह अल्लाह के राह में बाधा न बने. इसके बाद उन्होंने कुर्बानी दे दी. लेकिन जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई, तो वह देखकर हैरान रह गए है कि उनका बेटा इस्माइल सही सलामत है और उनकी जगह एक बकरी की एक प्रजाति कुर्बान हो गया था, इसके बाद से ही कुर्बानी के तौर पर बकरा को कुर्बान किया जाता है.


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