नचिकेता की कहानी कठोपनिषद में दी गयी है. इस कहानी में यम और नचिकेता के बीच हुए संवाद का वर्णन है. साथ ही यह कहानी नचिकेता के साहस, दृढ़ निश्चय और पितृ भक्ति के बारे में भी बताती है. कठोपनिषद ने नचिकेता को पहला साधक माना है. उसे दुनिया का पहला जिज्ञासु भी माना जाता है.
पिता के व्यवहार से दुखी हुआ बालक नचिकेता
नचिकेता के पिता ऋषि वाजश्रवा ने एक यज्ञ करने की शपथ ली थी. वह एक बहुत ही पवित्र अनुष्ठान था, जिसमें उन्हें अपनी सारी सांसारिक संपत्ति दूसरों को दान में देनी था. यज्ञ की समाप्ति के बाद नचिकेता के पिता ने अपने शपथ के अनुरूप दान देना आरंभ किया. परंतु यह क्या! वे दान में अपनी सभी बीमार गायें, बेकार संपत्ति और जिन चीजों की उन्हें आवश्यकता नहीं थी, दे डालीं. नचिकेता को यह सब देखकर बहुत दुख हुआ. हालांकि तब उसकी उम्र महज पांच वर्ष ही रही होगी, पर धन-संपत्ति के प्रति अपने पिता का मोह उससे सहन नहीं हुआ. वह अपने पिता के पास गया और उनसे प्रश्न किया- ‘पिताजी आप यह सब क्या कर रहे हैं.’ वाजश्रवा ने कहा, ‘देख नहीं रहे कि मैं ब्राह्मणों को दान दे रहा हूं.’ छोटी उम्र में भी नचिकेता के भीतर असाधारण समझदारी थी. उसने अपने पिता से कहा, ‘परंतु आपने जिन गायों को दान में दिया है, वे तो बूढ़ी हैं, आपको अच्छी गायें दान में देनी चाहिए.’ इस पर वाजश्रवा ने झल्लाकर कहा कि ‘क्या तुम दान के बारे में मुझसे अधिक जानते हो कि कौन सी चीज देनी चाहिए और कौन सी नहीं.’ इस पर नचिकेता ने कहा- ‘हां पिताजी! दान में अपनी सबसे अधिक प्रिय वस्तु दी जाती है. और आपको सबसे प्रिय मैं हूं. तो बताइए कि आप मुझे किसको दान में देने वाले हैं?’ ऋषि वाजश्रवा ने नचिकेता की बातों का कोई उत्तर नहीं दिया, पर नचिकेता ने हठ पकड़ ली और बार-बार एक ही प्रश्न दुहराता रहा कि ‘पिताजी आप मुझे किसे दान में देने वाले हैं.’ नचिकेता के हठ से क्रोधित हो ऋषि बोले, ‘मैं तुम्हें यम को देने वाला हूं. यम मृत्यु के देवता होते हैं. बालक ने अपने पिता की बात को बहुत गंभीरता से लिया और कहा कि ‘मैं आपकी आज्ञा का पालन करूंगा पिताजी.’ और वह यम के पास जाने के लिए तैयार होने लगा. वाजश्रवा ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया, पर नचिकेता नहीं माना. उसने अपने सभी परिजनों से भेंट कर यमलोक को प्रस्थान किया.
यम की प्रतीक्षा में तीन दिन तक रहा भूखा-प्यासा
जब नचिकेता यमराज से मिलने यमलोक, यानी यमपुरी पहुंचा, तब वे उस समय वहां नहीं थे. परंतु नचिकेता तनिक भी विचलित नहीं हुआ. उसे संतोष था कि वह अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहा है. नचिकेता पूरे तीन दिन तक भूखा-प्यासा यम के द्वार पर उनकी प्रतीक्षा करता रहा. तीन दिन बाद जब यम लौटे तो वे पूरी तरह थके और भूखे, पर दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी छोटे से बालक को यमपुरी के द्वार पर प्रतीक्षा करते देख चौंक गये. बालक के दृढ़ निश्चय ने यम को आश्चर्य में डाल दिया. वे उससे बहुत प्रभावित हुए. बालक को उन्होंने अपने कक्ष में बुलाया और कहा कि तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांग सकते हो.
वर में मांगा मृत्यु का रहस्य
यम द्वारा वरदान दिये जाने की बात सुनकर नचिकेता बहुत प्रसन्न हुआ. उसने पहला वरदान यह मांगा कि उसके पिता का क्रोध शांत हो जाए और वह उससे पहले की तरह ही प्रेम करने लगें. ‘यम ने कहा तथास्तु.’ अब दूसरा वर मांगो, यम ने कहा. चूंकि नचिकेता के पिता ने स्वर्ग प्राप्ति के लिए यज्ञ किया था, सो उसने दूसरे वर के रूप में स्वर्ग प्राप्ति की विधियां पूछीं. तब यमराज ने उसे स्वर्ग प्राप्ति की सारी विधि समझायीं. अब यम ने अंतिम वरदान मांगने को कहा. इस बार नचिकेता ने पूछा, ‘मृत्यु का रहस्य क्या है? मृत्यु के बाद क्या होता है?’ नचिकेता से ऐसा प्रश्न पूछे जाने की आशा यम को बिल्कुल नहीं थी. उन्होंने नचिकेता से कहा, ‘यह प्रश्न तुम वापस ले लो और कोई दूसरा वर मांग लो. यह प्रश्न बहुत गूढ़ है और हर कोई उसे समझ नहीं सकता है.’ यम ने इस प्रश्न को टालने की हरसंभव कोशिश की. बोले, ‘देवता भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं जानते. मैं तुम्हें नहीं बता सकता.’ पर नचिकेता अपने प्रश्न पर अडिग रहा. कहता रहा, ‘मैं कुछ नहीं चाहता, आप बस मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए. आपको इसका उत्तर देना ही होगा. क्योंकि मुझे आपसे कोई और वस्तु नहीं चाहिए.’ अंतत: नचिकेता के हठ के आगे यमराज को झुकना पड़ा और उन्होंने उसे मृत्यु और आत्मा का रहस्य बताया. कहा जाता है कि यम के द्वार पर ही नचिकेता को पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हुई. इसके बाद यम ने नचिकेता को आशीर्वाद देकर उसके पिता के पास वापस भेज दिया. यम के आदेश पर नचिकेता ने श्रेष्ठ व्यक्तियों से ज्ञान प्राप्त किया. वह बड़ा होकर धर्मात्मा और विद्वान बना.