नरक चतुर्दशी की कथा : पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण अपनी पत्नियों के साथ द्वारिका में रहते थे. एक दिन देवराज इंद्र भगवान कृष्ण के पा आए और कहा कि हे कृष्ण दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार की वजह से देवतागण त्राहि त्राहि कर रहे हैं. भौमासुर को ही नरकासुर कहा जाता है. क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिती के कुंडल और देवताओं से मणि छीन ली है और वह तीनों लोकों का राजा बन गया है. भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजन की कन्याओं का भी हरण कर लिया है और उनको बंदीगृह में डाल दिया है, कृपया करके इन तीनों लोकों को उस क्रूर राक्षस से बचाइए. देवराज इंद्र की बात सुनकर भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरूड़ पर सवार होकर प्रागज्योतषपुर पहुंचे, जहां क्रूर भौमासुर रहता था. भगवान कृष्ण ने पहले अपनी पत्नी की मदद से मुर नामक दैत्य के साथ उसके 6 पुत्रों का वध कर दिया. मुर दैत्य का वध हो जाने का समाचार सुनकर भौमासुर अपनी सेना के सा युद्ध के लिए निकला. भौमासुर को शाप था कि वह स्त्री के हाथों मारा जाएगा. इसलिए भगवान कृष्ण ने पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और युद्ध के अंत में सत्यभामा की मदद से भौमासुर का अंत कर दिया. इसके बाद भौमासुर के पुत्र भगदत्त को अभय का वरदान देकर प्रागज्योतिष का राजा बना दिया. भगवान कृष्ण ने जिस दिन भौमासुर का वध किया था, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी इसलिए इस तिथि को नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण ने ना सिर्फ नरकासुर का वध किया बल्कि उसकी कैद से लगभग 16 हजार महिलाओं को मुक्त भी करवाया था. इसी खुशी के कारण उस दिन दीपक जलाए गए और चारों तरफ दीपदान भी किया गया.
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Narak Chaturdashi 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 30 अक्टूबर को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, इसका समापन अगले दिन 31 अक्टूबर को दोपहर 03 बजकर 52 मिनट पर होगा. नरक चतुर्दशी हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पड़ती है. इसे दिवाली से एक दिन पहले और धनतेरस के एक दिन बाद मनाया जाता है. कहीं-कहीं इसे रूप चौदस, नरक चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है. इसको लेकर कई मान्यताएं भी हैं, जो इसे खास बनाती है. कहा जाता है कि इस दिन घरों में माता लक्ष्मी का आगमन होता है, इसलिए घर की सभी दिशाओं को सही से साफ किया जाता है. हालांकि, नरक चतुर्दशी मनाए जाने के पीछे धार्मिक मान्यता भी हैं. कहते हैं कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था. वहीं, इस दौरान नरक से बचने के लिए भी कुछ खास उपाय किए जाते हैं. आइए जानते हैं उन उपायों के बारे में.
यम के नाम का दीया: नरक चतुर्दशी के दिन यम के नाम का दीपक जलाने की परंपरा है. माना जाता है कि इस दिन यम देव की पूजा करने से अकाल मृत्यु का डर खत्म होता है.
तेल से मालिश: नरक चतुर्दशी के दिन सुबह उठकर पूरे शरीर में तेल की मालिश करें. इसके बाद स्नान कर लें. कहा जाता है कि चतुर्दशी को तेल में लक्ष्मी जी और सभी जलों में मां गंगा निवास करती हैं. इसलिए तेल मालिश के बाद स्नान करने से देवियों का आशीर्वाद मिलता है.
कालिका मां की पूजा: नरक चतुर्दशी को काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन माता कालिका की पूजा करने से दुख मिट जाते हैं.
भगवान कृष्ण की पूजा: नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना शुभ माना जाता है. ऐसा करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
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नरक चतुर्दशी के दिन 14 दीपक जलाएं: इस दिन 14 दीये जलाने का काफी महत्व है. आप इन दियों को निम्नलिखित जगहों पर रखे दें.
1. पहला दीया रात में घर से बाहर दक्षिण की ओर मुख कर कूड़े के ढेर के पास रखा जाता है.
2. दूसरा दीये को आप सुनसान देवालय में रख दें. ध्यान रहें इसे घी से जलाएं. ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिल सकती है.
3. तीसरे दीये को मां लक्ष्मी के समक्ष जलाएं.
4. चौधा दीया माता तुलसी के समक्ष जलाते हैं.
5. पांचवां दीया घर के दरवाजे के बाहर जलाता है.
6. छठा पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं.
7. सातवां दीया किसी मंदिर में जलाएं.
8. आठवां दीया घर में जहां कूड़ा रखा जाता है उस जगह पर जलाएं.
9. नौवां दीया घर के बाथरूम में जलाएं.
10. दसवां दीया घर की छत की मुंडेर पर जलाएं.
11. ग्यारहवां दीया घर की छत पर जलाएं.
12. बारहवां दीया खिड़की के पास जलाएं.
13. तेरहवें दिये को बरामदे में जलाकर रख दें.
14. चौदहवां दीया रसोई में जलाएं.
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FIRST PUBLISHED : October 27, 2024, 18:37 IST