Chaturmas 2024 start date: हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से 4 माह के लिए भगवान विष्णु चिर निद्रा में चले जाते हैं, इसीलिए इन महीनों को धार्मिक लिहाज से चातुर्मास कहा जाता है. इस दौरान विष्णुजी बैकुंठ छोड़कर पाताल लोक में निवास करते हैं. इस समय शंकरजी सृष्टि का संचालन करते हैं. पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 16 जुलाई को रात को 08 बजकर 35 मिनट होगी और इसका समापन 17 जुलाई को रात 09 बजकर 04 मिनट पर होगा. इस एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहते हैं. इस साल चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही है. इस दौरान सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं.
चातुर्मास में नहीं होते ये मांगलिक कार्य
धर्म शास्त्रों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य के लिए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु जी और माता लक्ष्मी समेत सभी देवी-देवता योग निद्रा में होते हैं, इसलिए इस समय कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार चातुर्मास के चार महीनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. इस समय विवाह, मुंडन, वधु विदाई, नए व्यापार की शुरुआत, गृह प्रवेश आदि काम बंद रहते हैं. जब देवउठनी एकादशी के दिन विष्णु जी योग निद्रा से जागते हैं, तब चातुर्मास समाप्त होता है. इसके बाद मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं.
चातुर्मास में किन देवताओं की होती है पूजा
चातुर्मास में चार महीने के लिए विष्णु जी योग निडर में होते हैं इसलिए सृष्टि के कार्यों के लिए उपलब्ध नहीं होते हैं. इस समय भगवान शंकर संसार का संचालन करते हैं, इसलिए इन चार महीनों में भोलेनाथ की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, इसके साथ ही भक्त भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी उपासना करते हैं.
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चातुर्मास का महत्व
चातुर्मास के स्वामी भगवान विष्णु जी हैं, इसलिए इस मास में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है. वहीं माता लक्ष्मी की भी कृपा रहती है. धर्म-कर्म और दान-पुण्य के लिए चातुर्मास का महीना अनुकूल माना गया है. धार्मिक मान्यता है कि चतुर्मास के दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. चातुर्मास में किए गए दान-पुण्य, पूजा और पाठ से भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होकर भक्तों को इच्छित वर देते हैं. चातुर्मास, आषाढ़ मास की एकादशी तिथि से शुरू होता है और कार्तिक मास की एकादशी को समापन होता है, इस दिन से फिर से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है.