Wednesday, November 27, 2024
HomeReligionAshwatthama Story: महाभारत का वो रहस्यमयी योद्धा, जिसे मिला था अमर होने...

Ashwatthama Story: महाभारत का वो रहस्यमयी योद्धा, जिसे मिला था अमर होने का श्राप

Ashwatthama Story: कभी नहीं मरना और अमर रहना की इच्छा हर व्यक्ति में होती है, लेकिन जिसे यह अमरत्व प्राप्त होता है, वही यह बता सकता है कि यह वरदान है या श्राप. हम आज आपको यहां महाभारत के एक ऐसे पात्र के बारे में बताने जा रहे है, जो आज भी जीवित माना जाता है. कई लोगों ने उसे देखने का दावा किया है. यह चर्चा महायोद्धा अश्वत्थामा की है, जिसे भगवान कृष्ण ने ‘अमर होने का श्राप’ दिया था. आइए हम विस्तार से जानते हैं कि अश्वत्थामा कौन है और उसने ऐसा क्या किया कि भगवान कृष्ण ने उसे मृत्यु के स्थान पर अमरत्व का अभिशाप दिया.

अश्वत्थामा कौन थे?

शास्त्रों के अनुसार, अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे. द्रोणाचार्य पांडवों और कौरवों के शिक्षक थे. अपने वचन के प्रति निष्ठा के कारण, उन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से भाग लिया और उनकी सेना के सेनापति बने. अश्वत्थामा ने भी कौरवों की ओर से युद्ध में भाग लिया. महाभारत में अश्वत्थामा और दुर्योधन के बीच गहरी मित्रता थी.

Mole on Nose: नाक पर तिल होने है सौभाग्य की निशानी, यहां जानें क्या बताता है सामुद्रिक शास्त्र

कौरवों और पांडवों का गुरुपुत्र

द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को चिरंजीवी के रूप में भी जाना जाता है. द्रोणाचार्य ने कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण दिया. हस्तिनापुर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को निभाने के लिए, गुरु द्रोणाचार्य ने कौरवों की ओर से युद्ध करने का निर्णय लिया और कौरवों के सेनापति बने. अश्वत्थामा भी इस दौरान दुर्योधन का करीबी मित्र था.

अश्वत्थामा का मस्तक मणि

भगवान शिव की कृपा से अश्वत्थामा के मस्तक पर जन्म से ही एक अद्भुत मणि विद्यमान थी. इस मणि के कारण उसे दैत्य, दानव, अस्त्र-शस्त्र, रोग, देवता, नाग आदि से कोई डर नहीं था. यह मणि उसे भूख, प्यास, थकान और वृद्धावस्था से भी सुरक्षित रखती थी. इस शक्तिशाली दिव्य मणि ने अश्वत्थामा को लगभग अजेय बना दिया था.

अश्वत्थामा को किसने मारा था?

अश्वत्थामा, महाभारत के प्रमुख योद्धाओं में से एक था और उसने कौरवों की ओर से युद्ध किया था. एक अवसर पर, महाभारत युद्ध के दौरान, द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा ने पांडवों की सेना पर भारी दबाव डाला. इस स्थिति में भगवान श्री कृष्ण ने एक चाल से द्रोणाचार्य को पराजित किया. श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को निर्देश दिया कि वह सबको यह सूचना दें कि अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया. यह सुनकर द्रोणाचार्य गहरे शोक में डूब गए और उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए. द्रोणाचार्य को बिना हथियार देख धृष्टद्युम्न, जो द्रौपदी के भाई थे, ने उनका सिर काट दिया. कहा जाता है कि धृष्टद्युम्न का जन्म द्रोणाचार्य को समाप्त करने के उद्देश्य से हुआ था.

अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु से अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने पांडवों से प्रतिशोध लेने का संकल्प किया. किंतु समय के साथ सभी कौरवों का अंत हो गया. दुर्योधन की मृत्यु के पश्चात महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया, जिसके कारण अश्वत्थामा किसी भी पांडव को मारने में असफल रहा.

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की हत्या का प्रयास

अश्वत्थामा ने यहां भी रुकने का नाम नहीं लिया और अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा को मारने का प्रयास किया. उत्तरा के गर्भ में अभिमन्यु का पुत्र था. इसके लिए उसने ब्रह्मशिर अस्त्र का उपयोग किया. अश्वत्थामा की योजना थी कि इस प्रकार अर्जुन का वंश समाप्त हो जाए. पांडवों ने अश्वत्थामा के इस घिनौने कृत्य के लिए उसे बंदी बना लिया और क्रोध में उसे मृत्युदंड देने का निर्णय लिया. लेकिन तभी भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि अश्वत्थामा को मृत्यु देने से उसे मुक्ति मिल जाएगी, जबकि उसे इससे भी बड़ा दंड मिलना चाहिए. इसके अलावा, गुरुपुत्र की हत्या करना उचित नहीं है. इस पर पांडवों ने श्रीकृष्ण की सलाह पर उसकी शक्ति का स्रोत, मस्तक मणि, निकाल लिया. साथ ही भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अनंतकाल तक धरती पर कोढ़ी बनकर भटकने का श्राप दिया. यही श्राप अश्वत्थामा को अमर बनाता है.


Home

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular