Varanasi Ghat Importance : वाराणसी भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में गंगा नदी के किनारे एक बेहद ही खूबसूरत शहर है, जो हिन्दुओं के लिए एक बहुत ही खास तीर्थ स्थलों में जाना जाता है. अगर आप वाराणसी गए हैं तो आपने ये चीज़ खुद देखी होगी कि यहां कई लोग मुक्ति और शुद्धिकरण के लिए भी आते हैं. वाराणसी अपने कई विशाल मंदिरों के अलावा घाटों और अन्य कई लोकप्रिय स्थानों से हर साल यहां आने वाले लाखों पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है.
ये जगह न केवल भारतीयों, बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी काफी पसंद आती है. अगर आप भी इस जगह अपनी फैमिली के साथ जाने की प्लानिंग कर रहे हैं या अकेले जाने की सोच रहे हैं, तो इस लेख में बताई गई वाराणसी जगहों को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें, इन जगह का सौंदर्य तो आपको आकर्षित करेगा ही लेकिन इनका अपना अलग धार्मिक महत्व भी है. आज आपको बता रहे हैं कि आपको वाराणसी की धार्मिक यात्रा कैसे करनी चाहिए और यहां की मुख्य जगहों का क्या महत्व है.
काशी विश्वनाथ मंदिर : बहुत से लोग इसे वाराणसी में सबसे प्रमुख मंदिर के रूप में देखते हैं, और कुछ इसे पूरे देश में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर मानते हैं. इस मंदिर की कहानी तीन हजार पांच सौ साल से भी अधिक पुरानी है. काशी विश्वनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिसके दर्शन करने के लिए हर महीने लाखों संख्या में लोग यहां आते हैं. कई भक्तों का मानना है कि शिवलिंग की एक झलक आपकी आत्मा को शुद्ध कर देती है और जीवन को ज्ञान के पथ पर ले जाती है. हमारा मानना है कि आपको वाराणसी में घूमने की शुरुआत इसी जगह से करनी चाहिए.
अस्सी घाट : अस्सी घाट को वह स्थान माना जाता है जहां महान कवि तुलसीदास का निधन हुआ था. इस जगह का दक्षिणी घाट पर्यटकों के बीच सबसे लोकप्रिय है. रोजाना इस जगह को देखने के लिए लोगों की संख्या हर एक घंटे में बढ़ती रहती है और त्योहारों में तो ये संख्या और भी ज्यादा बढ़ जाती है. अस्सी घाट अस्सी और गंगा नदियों के संगम पर स्थित है और एक पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित बड़े शिव लिंगम के लिए प्रसिद्ध है.
इस घाट का अत्यधिक धार्मिक महत्व है और पुराणों और भी कई चीजों में भी इसका उल्लेख किया गया है. अस्सी घाट वाराणसी और स्थानीय लोगों का दिल है, साथ ही पर्यटक गंगा में सूर्यास्त और सूर्योदय के अद्भुत दृश्य का आनंद लेने के लिए वहां आते हैं. स्थानीय युवाओं के बीच शाम को समय बिताने के लिए घाट एक प्रसिद्ध स्थान रहा है. घाट की सुबह की आरती बेहद ही शानदार होती है, देखने के लिए वैसे आपको सुबह जल्दी उठना पड़ेगा.
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राम नगर क़िला : तुलसी घाट से गंगा नदी के पार स्थित, यह उस समय बनारस के राजा बलवंत सिंह के आदेश पर 1750 ईस्वी में बलुआ पत्थर से बनाया गया था. 1971 में, सरकार द्वारा एक आधिकारिक राजा का पद समाप्त कर दिया गया था, लेकिन फिर भी पेलू भीरू सिंह को आमतौर पर वाराणसी के महाराजा के रूप में जाना जाता है. इसमें वेद व्यास मंदिर, राजा का निवास स्थान और क्षेत्रीय इतिहास को समर्पित एक संग्रहालय है.
संकट मोचन हनुमान मंदिर : अस्सी नदी के किनारे स्थित है और 1900 के दशक में स्वतंत्रता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा बनाया गया था. यह भगवान राम और हनुमान को समर्पित है. वाराणसी हमेशा संकट मोचन मंदिर से जुड़ा हुआ है और इस पवित्र शहर का एक अनिवार्य हिस्सा है. वाराणसी आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस मंदिर में जाता है और हनुमान के दर्शन जरूर करता है. इस मंदिर में चढ़ाए जाने वाले लड्डू स्थानीय लोगों के बीच अनिवार्य रूप से प्रसिद्ध हैं.
बीएचयू विश्वनाथ मंदिर : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अंदर स्थित इस मंदिर में दर्शन करने लिए रोजाना पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है. बिड़ला परिवार, जो भारत में उद्यमियों का एक बेहद सफल समूह रहा है, ने इसका निर्माण शुरू किया था. मंदिर के बारे में एक बड़ी बात यह है कि यह सिर्फ एक इमारत नहीं है, बल्कि असल में सात अलग-अलग मंदिर हैं जो मिलकर एक बड़ा धार्मिक परिसर बनाते हैं. वाराणसी के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक इस खूबसूरत मंदिर में आपको एक बार जरूर जाना चाहिए.
दशाश्वमेध घाट : जैसा कि नाम से पता चलता है, ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान ब्रह्मा ने दशा अश्वमेध यज्ञ किया था. यह घाट एक धार्मिक स्थल है और यहां कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं. यह घाट हर शाम आयोजित होने वाली गंगा आरती के लिए सबसे प्रसिद्ध है, और हर दिन सैकड़ों लोग इसे देखने आते हैं. गंगा आरती देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. आप चाहे वाराणसी अकेले आ रहे हैं या फैमिली के साथ जा रहे हैं, इस घाट का नजारा देखना बिल्कुल भी न भूलें.
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काशी के कोतवाल : धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच चर्चा छिड़ गई कि उन दोनों में से आखिर कौन बड़ा और शक्तिशाली है. दोनों अपने अपने तर्क दे रहे थे. विवाद के बीच भगवान शिव की चर्चा होने लगी. चर्चा के दौरान ब्रह्माजी के पांचवें मुख ने भगवान शिव की कुछ आलोचना कर दी. अपनी आलोचना को अपमान समझकर बाबा भोलेनाथ बहुत अधिक क्रोधित हो गए. उनके इस क्रोध से काल भैरव का जन्म हुआ. अर्थात काल भैरव के रूप में शिव का ही एक अंश प्रकट हो गया और इस अंश ने ब्रह्मा जी के आलोचक पांचवें मुंह पर नाखून मार दिए.
नाखून मारने के बाद काल भैरव के नाखूनों से ब्रह्मा का मुंह चिपक गया. ब्रह्मा का शीश काटने के कारण इन्हें ब्रह्म हत्या लगा. आकाश, पाताल घूमने के बाद जब बाबा काल भैरव काशी पहुचे तो ब्रह्मा का मुख हाथ से अलग हो गया, इसलिए काल भैरव ने अपने नाखून के कुण्ड की स्थापना की और यहीं स्नान कर उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली. काल भैरव को पाप से मुक्ति मिलते ही भगवान शिव वहां प्रक्रट हुए और उन्होंने काल भैरव को वहीं रहकर तप करने का आदेश दिया. उसके बाद से कहा जाता है कि काल भैरव इस नगरी में बस गए.मान्यता है वाराणसी में काशी विश्वनाथ के दर्शन बिना भैरव के दर्शन के सम्पूर्ण नहीं होते हैं.
Tags: Astrology, Kashi Temple, Kashi Vishwanath, State Tourism
FIRST PUBLISHED : November 8, 2024, 09:40 IST