Wednesday, October 30, 2024
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Price Hike: चाय में चीनी हो सकती है कम, जलेबी की चाशनी में नहीं रहेगा दम, जानें कारण

Price Hike: सुबह-सुबह चाय की चुस्की के साथ अखबार पढ़ने, मोबाइल पर रील देखने वाले और गली के नुक्कड़ पर लगने वाले ठेले के पास मजमा लगाने चटकारे ले-लेकर जलेबी खाने वाले जरा सावधान हो जाएं. आपकी सुबह वाली चाय में चीनी कम हो सकती है और ठेले वाली जलेबी की चाशनी में दम नजर नहीं आ सकता है. इसका कारण यह है कि ये सभी आपकी जेब पर भारी पड़ सकती है. इसका कारण यह है कि सरकार ने चीनी उद्योग की प्रमुख संगठन इस्मा की मांग को मान लेती है, तो आने वाले दिनों में चीनी की कीमत 7 से 8 रुपये तक बढ़ सकती है.

फरवरी 2019 से नहीं बढ़ा है चीनी का एमएसपी

भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (इस्मा) ने सरकार से मांग की है कि चीनी के मिनिमम सेलिंग प्राइस (एमएसपी) को 31 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़ाकर 39.14 रुपये प्रति किलोग्राम किया जाना चाहिए, क्योंकि मिलों में उत्पादन खर्च बढ़ने की वजह से उन्हें घाटे का सामना करना पड़ रहा है. इस्मा ने कहा कि चीनी के एमएसपी फरवरी 2019 से 31 रुपये प्रति किलोग्राम पर कायम है. इस्मा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि पिछले पांच सालों के दौरान गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) पांच गुना बढ़ गया है, अब एफआरपी 2024-25 चीनी सत्र के लिए 340 रुपये प्रति क्विंटल है.

मिल के गेट पर 36.5 रुपये किलो चीनी

बयान में कहा गया है कि चीनी मूल्य (नियंत्रण) आदेश 2018 के तहत एमएसपी निर्धारण में एफआरपी स्तर को ध्यान में रखा जाना चाहिए. फिलहाल, एमएसपी इन बढ़ती लागत को निर्धारित करने में विफल है. बयान में कहा गया है कि चूंकि, चीनी उद्योग के राजस्व में 85% से अधिक का योगदान देती है. इस समय मिल पर चीनी की कीमतें औसतन 36.5 रुपये प्रति किलोग्राम हैं, जो 41.66 रुपये प्रति किलोग्राम की उत्पादन लागत से कम है. इसका समाधान करने के लिए इस्मा ने 39.14 रुपये प्रति किलोग्राम के एमएसपी की वकालत की है.

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चीनी का दाम बढ़ने से गन्ना किसानों को समय पर भुगतान

इस्मा ने कहा कि चीनी की कीमतों का समायोजन यह सुनिश्चित करेगा कि मिलें वित्तीय रूप से लाभकारी बनी रहें और किसानों को समय पर भुगतान करें. इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव डालने वाले बकाया से बचा जा सके. उसने कहा कि वृद्धि का उपभोक्ताओं पर न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि 60% से अधिक चीनी का उपयोग उद्योगों द्वारा किया जाता है, जो लागत को झेलने में सक्षम हैं. उद्योग के घाटे को कम करने के लिए चीनी के एमएसपी को बढ़ाने के लिए सरकार से तत्काल समर्थन की आवश्यकता है.

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