Monday, October 21, 2024
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Karwa Chauth 2024: आज मनाया जा रहा है करवा चौथ, यहां से जान लें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, चांद निकलने का समय

Karwa Chauth 2024: आज 20 अक्टूबर को करवा चौथ का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को चंद्रमा के उदय के बाद अर्ध्य देकर और अपने पति के मुख को देखकर उपवास समाप्त करती हैं. इस त्योहार से संबंधित महत्वपूर्ण नियमों के बारे में जानकारी प्राप्त करें, जिसमें सरगी, करवा चौथ की कथा, चंद्र दर्शन और अन्य कई बातें शामिल हैं.

करवा चौथ का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष चतुर्थी तिथि का आरंभ 20 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 46 मिनट पर होगा और इसका समापन 21 अक्टूबर को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर होगा.

करवा चौथ के लिए दो विशेष पूजन मुहूर्त निर्धारित किए गए हैं- पहला अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा, जबकि दूसरा विजय मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 59 मिनट से लेकर 2 बजकर 45 मिनट तक होगा.

करवा चौथ पर चांद कब नजर आएगा ?

करवाचौथ पर भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की भांति दिनभर उपवास रखने का प्रावधान है, और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन किया जाता है. इस वर्ष रविवार को चतुर्थी के चंद्रमा का उदय शाम 7:40 बजे होगा.

करवा चौथ व्रत की विधि

सूर्योदय से पहले उठकर सरगी का सेवन करें.
करवा चौथ के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान करें.
इस पवित्र व्रत को विधिपूर्वक करने का संकल्प लें.
देवी-देवताओं की नियमित पूजा की भांति इस दिन भी पूजा करें.
इसके बाद पूरे दिन निर्जल व्रत रखें. संध्या के समय भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा रोली, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य एवं श्रृंगार के सामान से करें.
इसके पश्चात करवा चौथ की कथा का पाठ करें या सुनें.
चंद्र देव के उदय होने पर उनका दर्शन करें और फिर पति को छलनी से देखें.
चंद्र दे को अर्घ्य देने के बाद अपने पति को तिलक लगाकर प्रसाद दें और उनके हाथों से पानी पीकर अपना व्रत समाप्त करें.
अंत में अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.

करवा चौथ व्रत का महत्व

प्राचीन काल में यह प्रथा थी कि जब पुरुष व्यापार या युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से बाहर जाते थे, तब महिलाएं अपने पतियों के लिए विशेष पूजा करती थीं. इस अवसर पर, महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर करवा माता, भगवान शिव, गणेश और कार्तिकेय की पूजा करती थीं और इसके बाद व्रत करने का संकल्प लेती थीं.


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