मूर्ति की स्थापना करना मूर्ति रखने से अलग होती है.स्थापना के बाद मूर्ति को बार-बार एक जगह से उठाकर दूसरी जगह नहीं रख सकते.
Murti Rakhne Aur Sthapit Karne me Antar : आपने अपने घर के मंदिर में कई सारे भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को रखा होगा. श्रद्धा के हिसाब से कई लोग भगवान का फोटो भी मंदिर में रखते हैं. लेकिन, वहीं कई घरों में मूर्ति की स्थापना की जाती है और इसके बाद उसकी विधिवत पूजा शुरू होती है. तो क्या मूर्ति की स्थापना करने और मूर्ति को मंदिर में रखे जाने में अंतर होता है? और क्या दोनों ही कार्यों के लिए कोई नियम हैं? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
मूर्ति स्थापना का क्या मतलब है
आप जब अपने घर में किसी भी देवी या देवता की मूर्ति लाते हैं और उसे पूरे विधि विधान से हमेशा के लिए किसी एक स्थान पर रखते हैं, तब वह स्थापना कहलाती है. आप ऐसी मूर्ति को बार-बार एक जगह से उठाकर दूसरी जगह नहीं रख सकते. वहीं स्थापना के बाद इसी मूर्ति को प्रतीमा कहा जाता है. क्योंकि, ऐसी प्रतिमा में ईश्वर का वास माना जाता है.
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मूर्ति रखने का क्या मतलब है
जब हम किसी मूर्ति को बाजार से खरीदकर लाते हैं या फिर हमें किसी के द्वारा उपहार में मिली होती है और उसे हम घर में किसी भी स्थान पर रख देते हैं ऐसी मूर्ति अस्थाई होती है और उसकी पूजा भी नहीं होती. ऐसी मूर्ति में किसी देवी या देवता का वास नहीं माना जाता है.
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मूर्ति लाने के बाद इन बातों का ध्यान रखें
हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि यदि आप सिर्फ शोपीस के लिए कोई मूर्ति घर लेकर आ रहे हैं तो ऐसा ना करें, क्योंकि भगवान शोपीस के लिए नहीं होते हैं. वहीं यदि स्थापना के लिए आप घर में मूर्ति लेकर आ रहे हैं तो इसके लिए पंडित जी से शुभ मुहूर्त जरूर दिखवा लें और साथ ही उसकी स्थापना का मुहूर्त भी निकलवा लें.
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FIRST PUBLISHED : September 29, 2024, 08:01 IST