vineet kumar singh:अपनी शानदार एक्टिंग के लिए हर किरदार में रच बस जाने में माहिर अभिनेता विनीत कुमार सिंह इन दिनों अपनी फिल्म सुपर बॉयज ऑफ़ मालेगांव को लेकर सुर्खियों में हैं. बीते दिनों उनकी फिल्म ने टोरेंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जमकर वाहवाही बटोरी थी.उनके उस अनुभव,फिल्म से जुड़ाव सहित उनके कैरियर और उससे जुड़े उतार चढ़ाव पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत
हालिया टोरंटो इंटरनेशनलफिल्म फेस्टिवल की यादें किस तरह से याद करेंगे?
बहुत खुश हूं ,जो रिस्पांस मिला है वह मैजिकल एहसास था.फिल्म राज थॉमसन हाल में स्क्रीन की गई थी.उसकी क्षमता 2600 दर्शकों की थी. इतने बड़े थिएटर अपने यहां नहीं है. ऑडियंस ने जिस तरह से सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव फिल्म को सेलिब्रेट किया.वह ऐसा बहुत ही खास है. मेरे कान में और दिमाग में अभी भी वह तालियां और सीटियां गूंज रही है.
आप आप इससे पहले भी टोरंटो फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बने थे दोनों अनुभव में आप क्या अलग पाते हैं?
मैं इससे पहले मैं अपनी फिल्म मुक्काबाज के लिए गया था.वह इंग्लिश में रिलीज हुई थी कोविड के पहले था और यह कोविड के बाद मैं पहली बार गया हूं. मैंने महसूस किया कि सिनेमा बहुत ही तेजी से बदल रहा है. नई-नई फिल्म मेकर्स आ रहे हैं. नए आइडियाज पर फिल्में बन रही हैं. इस तरह के फिल्म फेस्टिवल में पूरी दुनिया के सिनेमा लवर्स इकट्ठा होते हैं. इंटरनेशनल लोग भी अपने सिनेमा को लेकर आते हैं और बेहतर सिनेमा को सेलिब्रेट किया जाता है.
अनुराग कश्यप और एक्सेल जैसे प्रोडक्शन हाउस जब किसी फिल्म से जुड़ते हैं तो क्या इस तरह के इंटरनेशनल फेस्टिवल में फिल्मों को ज्यादा अच्छा ट्रीटमेंट मिलता है?
इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सभी फिल्मों को बराबर का प्लेटफार्म मिलता है,लेकिन मैं इस बात से भी इनकार नहीं करता हूं कि जब आपके फिल्म का निर्माता या निर्देशक फेमस हो,तो उस फिल्म को लेकर बज बहुत अच्छा बनता है. दर्शकों की उम्मीद बढ़ जाती है कि अच्छा सिनेमा देखने को मिलेगा,लेकिन आखिर में आपकी फिल्म अच्छी होनी चाहिए. फिल्म खत्म होने के बाद जो स्टैंडिंग ओवेशन मिलता है. फिल्म के बारे में अच्छी-अच्छी बातें होती है। वह तभी मिलती है,जब आपकी फिल्म अच्छी होती है.फिर चाहे आपके फिल्म का निर्माता या निर्देशक कोई भी हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.
सुपर बॉयज का मालेगांव को लेकर क्या आपलोग दूसरे इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में भी जा रहे हैं?
हां बेशक, फिल्म कई जगह पर जाएगी इसकी मुझे जानकारी है. रिलीज डेट जनवरी के आसपास है,तो उससे पहले हम कई जगह पर अपनी फिल्म को लेकर जाएंगे. अक्टूबर में लंदन में होने वाले फिल्म फेस्टिवल बीआईएफ में फिल्म जाएगी.
सुपर बॉयज का मालेगांव किस तरह से आप तक पहुंची थी?
मैंने रीमा के साथ गोल्ड फिल्म की थी तो रीमा के साथ एक केमिस्ट्री बहुत अच्छी बन गई थी.वह खुद भी लेखक है तो किरदारों की समझ उनकी बहुत ही गहरी होती है. वह बहुत अच्छी निर्देशिका भी है और कमाल के प्रोजेक्ट उन्होंने बनाए हैं. रीमा चाहती थी कि मैं इस फिल्म को करूं तो कास्टिंग एजेंसी ने मुझे अप्रोच किया. मुझे भी कहानी और किरदार पसंद आया. मैंने रीमा के साथ बैठकर एक सीन पढ़ा और फिर सब तय हो गया.
इस फिल्म से जुड़ी आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या थी ?
वैसे इस फिल्म से मुझे जोड़ना ही एक चैलेंज था क्योंकि इस फिल्म के जितने से लड़के हैं,वह उम्र में 20 प्लस के लड़के हैं और उनके बीच में मुझ 40 साल वाले को खड़ा कर दिया. हालांकि जब लुक आया तो मैं भी सभी की तरह ही लग रहा था.उसके लिए धन्यवाद मैं कॉस्ट्यूम टीम को देना चाहूंगा. हेयर और मेकअप को भी देना चाहूंगा.इसके साथ ही वरुण ग्रोवर और रीमा कागती को भी देना चाहूंगा क्योंकि उन्होंने इस तरह से लिखा कि मैं इस किरदार के करीब जा पाया.
क्या अपने किरदार के लिए आपको वजन भी काम करना पड़ा था?
फारूक के किरदार के लिए मुझे वजन कम नहीं करना पड़ा बल्कि बढ़ाना पड़ा था. फारूक जाफरी जो रियल किरदार है, जिनको मैंने फिल्म में प्ले किया है.अगर आप उनको देखेंगी तो आप पाएंगी कि वह काफी स्वस्थ रहे हैं. उनको देखकर आप समझ जाएंगी कि वह कसरत वसरत वाले आदमी नहीं है. वैसे राइटर ऐसे होते हैं. उनकी अपनी दुनिया अपने दिमाग में चल रही होती है.
आपको आपके मेकर्स रिपीट करते हैं, इसकी वजह आप क्या मानते हैं अपने व्यवहार या अदाकारी को
हां मैं खुश किस्मत हूं कि मुझे मेरे डायरेक्टर प्रोड्यूसर रिपीट करते हैं. अनुराग सर के साथ एक फिल्म की थी.उसके बाद उनके साथ 4 से 5 फिल्में करने का मौका मिला. रेड चिलीज में काम करने का मौका मिला तो वहां भी दो प्रोजेक्ट हो गया बार्ड ऑफ़ ब्लड और बेताल.धर्मा में पहले गोरी तेरे प्यार में किया था फिर उसके बाद गुंजन सक्सेना हो गया. दृश्यम फिल्म के लिए मैं अब तक तीन फिल्में कर ली है. जहां तक बात लगातार काम मिलने के आधार की है,तो मुझे लगता है कि दोनों चीज मायने रखती है.आपका व्यवहार पसंद किया जाता है और बतौर कलाकार कैसे हैं.अगर दोनों पहलू अच्छा है तो इसके बाद हर कोई आपके साथ काम करना चाहता है.
कई बार दोस्ती यारी बॉलीवुड पॉलिटिक्स भी फिल्मों से जोड़ने और तोड़ने का काम करती हैं ?
अपनी बात करूं तो मुझे इस काम में मजा आता है.मुझे सिनेमा से मोहब्बत है.जो एक जुनून सा रहा है.मैं उसी की वजह से यहां आया हूं.वरना मैं तो हॉस्पिटल खोल कर रहता क्योंकि मैं तो मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था.एक लंबा वक्त मुझे काम पाने में गया है और अब जब बेहतर काम मिल रहा है तो मेरा पूरा ध्यान काम पर है.बाकी चीजों में मेरा दिमाग नहीं जाता है कि इंडस्ट्री में क्या पॉलिटिक्स है क्या नहीं।
जब मनचाहा काम नहीं मिल पाता है,तो क्या हताश भी होते हैं ?
वह कोई भी इंसान हो. किसी भी फील्ड में हो.हताशा, निराशा उत्साह, खुशी, दुख यह सब साथ चलता है.हमें खुद को इस तरह से तैयार करना पड़ता है कि आप किसी रेस में विजेता हो गए तो पगलाइये मत और किसी रेस में हार गए तो भी घबराइए मत.यही जीवन है यही चलता है.मैं तो यही मानता हूँ.
काम नहीं मिलेगा क्या यह डर खत्म हो गया है?
ईमानदारी से कहूं तो मैं ऐसा सोचता ही नहीं हूं.इस मामले में मेरा थोड़ा ख्याल अलग है ,शायद इसीलिए मैं इंडस्ट्री में सरवाइव भी कर पाया हूं. अगर मैं बहुत ज्यादा दिमाग लाकर करता तो कोई वजह नहीं है,जो इतनी टेढ़ी-मेढ़ी जिंदगी को चुना जाए.कई बार कम शातिर होना आपके फेवर में जाता है. बहुत ज्यादा दिमाग नहीं लगाते तो कठिन यात्रा पूरी हो जाती है.अगर बार-बार आप परिणाम के बारे में सोचेंगे तो आपको एंजायटी बहुत होती है और अपनी फील्ड में रोजगार के रिजल्ट बहुत कम है. यहां पर हर दिन लाखों लोग आते हैं. संघर्ष करते हैं और उनमें से ज्यादा से अधिक लोगों को वापस जाना पड़ता है.क्योंकि उनकी लाइफ में कुछ खास नहीं हो पाता है. अगर आप आईएएस में कोशिश करते हैं,तो आपको चार बार मौका मिलता है. चौथा मौका मिलने के बाद मान लीजिए आपका नहीं हुआ,तो आपको कम से कम यह क्लेरिटी तो हो ही जाती है कि अब नहीं होना है.यहां जीवन के आखिरी साल में भी आपको क्लेरिटी नहीं आती है. आप समझ सकती है कि अस्थिरता का लेवल किस हद तक है.अगर आप इंडस्ट्री के पिछले 40 साल पर नजर डालें ,तो जो एक्टर बेटर कैपेसिटी में लगातार काम कर रहा है. उसकी संख्या आपको मुश्किल से 40 से 50 ही मिलेंगे. सुपरस्टार्स की नहीं मैं एक्टर्स की बात कर रहा हूं. 140 करोड़ की आबादी में 40 साल में सिर्फ 40 या 50 नाम आते हैं तो आप खुद ही समझ सकती है कि इंडस्ट्री में एक्टर्स के रोजगार का परसेंट क्या है.
इनदिनों फिल्मों की री रिलीज का ट्रेंड जोरों पर आप अपनी कौन सी फिल्म को री रिलीज होते देखना चाहते हैं ?
मुझे लगता है कि अग्ली और मुक्काबाज को फिर से रिलीज किया जाए तो वह अच्छा करेगी. यह दो फिल्म ऐसी हैं, जो गहरा असर डाल सकती है.यह दोनों फिल्में दर्शकों तक उतनी पहुंच नहीं पाई जितनी पहुंचनी चाहिए थी.थिएटर में क्या होता है कि आपको स्क्रीन बहुत कम नंबर पर मिलते हैं. स्क्रीन कम मिलती है मतलब बहुत कम लोगों तक आपकी फिल्म पहुंच पाती है. इन फिल्मों की रिलीज बहुत छोटी-छोटी थी. मुझे अभी भी कई लोग कहते हैं कि यह फिल्म हमारे शहर में नहीं लगी थी. हम नहीं देख पाए थे. अभी तुम्बाड़ आयी तो लोग देख रहे लैला मजनू को भी लोगों ने देखा अच्छी फिल्म है तो लोग देखेंगे ही. बस उसे दर्शकों तक पहुंचाना होगा.
आपकी फिल्म आधार की रिलीज का क्या अपडेट है ?
मेरी पूरी कोशिश है कि आधार रिलीज हो. मैं ऐसा आदमी हूं,जो उम्मीद नहीं छोड़ता हूं मेरा गहरा विश्वास है कि जब आधार रिलीज होगी तो बहुत अच्छा करेगी. हर फिल्म का अपना भाग्य होता है वह अपनी कहानी खुद लिखती है. मैं प्रयासरत हूं,लेकिन कहीं मैं छोटा पड़ जाता हूं फिल्म की रिलीज के लेकर. ऊपर वाला थोड़ी और सफलता दें तो शायद में आधार जैसे फिल्म को बाहर लेकर आ पाऊंगा.
सनी देओल के साथ फिल्म एसडीजीएम का क्या अनुभव रहा है ?
सनी सर से जब मिला तो मैंने उनको यही बोला कि हमारा बचपन आपकी फिल्मों ने भरा है. तमाम यादें हैं, जो आपसे और आपकी फिल्मों से जुड़ी हुई है. मैं बनारस में पला बढ़ा हूं. मुझे लगता है कि जो छोटे शहर में पहले बढे हैं. उनका फिल्मों और स्टार्स को लेकर अनुभव कमाल का रहता है. वह सब मैंने शेयर किया. बहुत ही हाई वोल्टेज एक्शन इस फिल्म है.एक्शन में बहुत कुछ नया आपको देखने को मिलेगा. इस फिल्म में भी एक्शन करते हुए नजर आऊंगा.