binny and family:फिल्म बिन्नी एंड फैमिली ने सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है.इस फिल्म के लेखन और निर्देशन से संजय त्रिपाठी का नाम जुड़ा हुआ है.संजय बिहार के बेतिया से आते हैं.अपनी इस फिल्म की कहानी और किरदारों में भी उन्होंने बिहार और बेतिया को जोड़ा है.बेतिया से उनके बॉलीवुड के सफर पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत
मेरी लिखी कहानी है तो बिहार आना ही था
फिल्म की कहानी की बात करूँ तो मैंने अपने घर में ही देखा था.मेरे पेरेंट्स बिहार से आते हैं.मेरा बेटा साउथ मुंबई में पला बढ़ा है.हर समय की अपनी चुनौतियां होती है.विरोधाभास होते हैं.उससे जो कनफ्लिक्ट ड्रामा और इमोशन पैदा होता है. वह मैंने बहुत शिद्दत से महसूस किया है,तो इसलिए इस पर फिल्म बनाने का फैसला किया. मेरी कहानी है तो बिहार तो आना ही था.मैंने फिल्म में भी पेरेंट्स को बेतिया से दिखाया है.पंकज कपूर जी ने फिल्म में बिहार लहजा भी पकड़ा है. वह मुझसे ही उसके बारे में पूछते थे कि इसको ऐसे बोलना है.टोन यहां पर यह होगा.हमारे यहां बहुत बोलते हैं क्या जी कहां गए थे. मैं खुद बिहारी हूं तो मैं स्क्रिप्ट में वह भी लिखा था और बोलचाल में वह टोन लाने के लिए मेरी ही जिम्मेदारी थी. जिसे पंकज जी ने बखूबी पकड़ा है.यह फिल्म एक तरह से मेरे होम टाउन को मेरा ट्रिब्यूट है.
बिहार को दिखाने के लिए दूसरे राज्यों में अब शूटिंग नहीं करनी पड़ेगी
मेरी फिल्म में बेतिया और पटना को दिखाया गया है, लेकिन उसकी शूटिंग लखनऊ और मलिहाबाद में हुई है.हाल ही में बिहार सरकार ने नयी फिल्म नीति लागू की है. मुझे उम्मीद है कि उससे हालात बदलेंगे. निर्माता और निर्देशक बिहार में भी शूटिंग के लिए आकर्षित होंगे. बिहार में दिखाने के बहुत अच्छे-अच्छे लोकेशन है. वहां के लोग बहुत अच्छे हैं. लोगों को लगता है कि वह शूटिंग में बाधा पहुंचाएंगे. मुझे लगता है कि शुरुआत में ही कुछ समय के लिए दिक्कत होती है,लेकिन फिर लोग अभ्यस्त हो जाते हैं.हौवा खत्म हो जाता है.अब जब वहां की सरकार भी प्रयास कर रही है, तो मेरे ख्याल से जल्दी कुछ ना कुछ अच्छा निकल कर आएगा.
अंजिनी अपनी मेरिट पर चुनी गयी है
इस फिल्म के लिए हमने पहले किसी और को कास्ट किया था. वह भी नई लड़की ही थी,लेकिन किसी वजह से वह वर्कआउट नहीं हो पाया.शूटिंग से दो महीने पहले हमें मेन लीड चेंज करना पड़ा. फिर हमारी तलाश शुरू हुई और हमें एक नई लड़की ही चाहिए थी ताकि दर्शक पहले ही सीन से उसे बिन्नी समझने लगे. कास्टिंग एजेंसी ने हमें दो-तीन ऑप्शन दिखाए थे.उसमें हमें अंजिनी पसंद आई. उन्होंने उनको स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद अपने इनपुट्स भी दिए,तो मुझे लगा कि एक्टर के तौर पर इसका विजन भी बहुत अच्छा है. मैं बताना चाहूंगा कास्टिंग के बाद हमें मालूम पड़ा कि वह वरुण धवन की भतीजी और अनिल धवन की पोती है.अगर डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनता है तो वह उसकी चॉइस होती है. अगर लड़का या लड़की अपने मेहनत करके पीएमटी और एम्स क्वालीफाई करके डॉक्टर बनता है,तो हम उसकी काबिलियत को यह कहंते हुए नजरअंदाज नहीं करते हैं कि वह डॉक्टर का बेटा है और डॉक्टर ही बना.वह अपनी मेरिट से आया है.ऐसे ही अंजिनी अपने मेरिट से आयी है. 2 साल से वह अपने आप पर काम कर रही थी. आप उसके इंस्टाग्राम अकाउंट देखेंगे,तो आपको मालूम पड़ेगा कि वह डांस क्लास जाती है. एक्टिंग की उसने कई क्लासेस की है. शूटिंग पर जाने से पहले हमने पंकज कपूर जी के साथ उसकी रीडिंग रखी थी. हमने कहा कि सर नयी बच्ची है.जाने से पहले आपके साथ एक रीडिंग कर लेते हैं.सिर्फ चार लाइन ही उसने बोली थी, पंकज सर ने कहा यह कर लेगी. चलो कॉफी पीते हैं. पंकज जी का वैलिडेशन अपने आप में बहुत बड़ा था.उसके सरनेम की वजह से हम उसकी टैलेंट को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं.
पंकज सर के साथ पहली फिल्म से काम करना चाहता था
पंकज जी को मैं अपनी पहली फिल्म क्लब 60 में कास्ट करना चाहता था. पंकज जी को स्क्रिप्ट भी बहुत पसंद आई थी. वह रघुबीर यादव वाला किरदार करना चाहते थे,लेकिन चीजें वर्कआउट नहीं हुई. मैंने उसे वक्त की ठान लिया था कि मुझे उनके साथ एक फिल्म करनी ही है. जैसे ही बिन्नी एंड फैमिली की स्क्रिप्ट पूरी हुई. मैं उनके पास गया. उनको यह स्क्रिप्ट भी पसंद आयी और उन्होंने कहा कि चलो इसको करते हैं. इस फिल्म को बनने में काफी समय लगा. कोविड आया.कास्टिंग की भी दिक्कत आई लेकिन पंकज सर हमेशा साथ रहे.
देवरा से कोई कॉम्पिटिशन नहीं है
हमारी फिल्म का देवरा से तो कोई कंपटीशन ही नहीं है.वैसे मुझे लगता है कि दो फिल्मों के लिए एक शुक्रवार काफी होता है.हमारे दर्शक देवरा फिल्म से काफी अलग है. हमको अपने ऑडियंस तक पहुंचना है उनको अपने ऑडियंस तक.वैसे हमारी रिलीज डेट पुश होती चली गई है. फिल्म पहले 20 सितंबर को रिलीज होने वाली थी, लेकिन इसी बीच में विशाल मिश्रा ने फिल्म देखी और उन्हें लगा कि एक गाना इस फिल्म में होना चाहिए तो उन्होंने एक गाना कंपोज किया. वह गाना बहुत ही खूबसूरत बना था.हमें लगा कि वह गाना फिल्म में होना ही चाहिए भले ही फिल्म की रिलीज थोड़ी आगे बढ़ जाए.जिस वजह से रिलीज आगे बढ़ गयी.
दामुल की शूटिंग देखने के बाद फिल्मों से जुड़ने का फैसला कर लिया
अपने स्कूल के दिनों में मैं बहुत थिएटर करता था. मैं बचपन में एक्टर बनना चाहता था. मनोज बाजपेयी मेरे सीनियर हुआ करते थे. बेतिया के स्कूल के आर से मैं भी पढ़ा हूँ. कॉलेज भी हमारा एक ही रहा है दिल्ली का रामजस .1982 में प्रकाश झा जी फिल्म दामूल की शूटिंग कर रहे थे और मैं भी शूटिंग देखने चला गया था. वहां से वापस आने के बाद मुझे लगा कि मुझे इसी लाइन में जाना है. मेरे पिताजी बिहार में प्रोफेसर थे.उन्होंने कभी मुझे किसी चीज के लिए रोका नहीं.उन्होंने कहा कि अगर तुमको इसी लाइन में जाना है ,तो फिर सही ढंग से जाओ.एफटीआईआई जाओ. मैंने उस वक़्त तक सिविल सर्विस का दो बार एग्जाम दे दिया,लेकिन मेरा हुआ नहीं था. मुझे लगा कि मैं अब फिर से फिल्म की पढ़ाई करूं.मैं उसके लिए तैयार नहीं था. मैंने दूसरे रास्ते से जाने का फैसला किया.मैंने जर्नलिज्म से शुरुआत की. मैंने आर्टिकल लिखना शुरू किया. प्रिंट से मैं ऑडियो मीडियम में गया, फिर विजुअल मीडियम में गया.मैं हमेशा खुद को एनहांस करता रहा. दूरदर्शन के लिए मैंने एक शो बनाया था.वहां से मुझे पहली बार ऑडियो विजुअल का अनुभव हुआ. मैं खुद ही लिखता था. मैं खुद ही वॉइस ओवर देता था और फिर खुद ही जाकर दूरदर्शन पर पहुंचाता भी था. 1996 में मैंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी बनाई और टर्निंग पॉइंट नाम का एक शो भी बनाया. फिर नेशनल जियोग्राफी, बीबीसी, डिस्कवरी के लिए मैंने बहुत सारी डॉक्यूमेंट्री बनायी, जो बहुत सराही भी गयी. उसके बाद मैंने फिक्शन शो में आने का फैसला किया.फिक्शन में आने का मतलब था. आपको मुंबई आना पड़ेगा. उसके बाद 2008 में मुंबई आया. अब तक सारा काम मैं दिल्ली से ही कर रहा था.मुंबई आने के बाद स्टार प्रवाह के लिए मैंने एक मराठी शो अंतरपाठ प्रोड्यूस किया था. उसके बाद मैं दूरदर्शन के लिए 52 एपिसोड का सीरीज हम बनाया. उसके बाद मैंने फिल्म क्लब 60 लिखी और फिर उसे बनायीं. उसे फिल्म से मुझे राइटिंग से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन तक बहुत कुछ मालूम पड़ा.उस फिल्म के बाद दूसरी फिल्म बनाने में समय लगा क्योंकि मैं उस फिल्म के बाद स्टार प्लस के शो रोशनी से जुड़ गया.कुछ साल उसको करने के बाद लगा टीवी मेरे बस का नहीं फिल्म बेस्ट है.जिसके बाद मैंने बिन्नी एंड फॅमिली की कहानी लिखी.
बिहार से जुड़ाव हमेशा रहेगा
बिहार से बहुत जुड़ाव है और रहेगा.अपने पिताजी को लेकर वहां अक्सर जाता रहता हूं.पिछले साल भी गया था.मेरे रिश्तेदार और स्कूल के दोस्तअभी भी वहां हैं मुंबई में रहते हुए मैं छठ पूजा को बहुत मिस करता हूं.छठ पूजा में पूरे घर में उत्सव का माहौल होता था.पूरी फैमिली एक हो जाती थी. नए-नए कपड़े पहनना, ठेकुआ खाना. सुबह-सुबह उठकर घाट पर जाना.वैसा फेस्टिव मूड मैंने अपनी जिंदगी में कभी भी फील नहीं किया है,जैसा मैं दिवाली से छठ तक के वक्त तक फील करता था. पूरी फैमिली उनके सारे बच्चे हम एक हो जाते थे. नदी में नहाना. खेतों में घूमना.वह एहसास बहुत ही खास था.