Indira Ekadashi Katha: कल यानी 28 सितंबर 2024 को इंदिरा एकादशी का व्रत आयोजित किया जाएगा. आश्विन मास के श्राद्ध पक्ष में आने वाली इस एकादशी का व्रत करने से पितृ दोष समाप्त होता है. आपको इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए. पूजा के दौरान इंदिरा एकादशी की कथा अवश्य पढ़ें. इससे आपका व्रत सफल होगा और पुण्य की प्राप्ति भी होगी. देश भर के अलावा इस त्योहार को बिहार, झारखंड और यूपी में खास तौर से श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है.
इंदिरा एकादशी की कथा
प्राचीन काल में सतयुग के दौरान महिष्मति नामक एक नगर में इंद्रसेन नामक एक प्रतापी राजा धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपनी प्रजा का पालन कर रहा था. यह राजा पुत्र, पौत्र और धन से संपन्न था और विष्णु का महान भक्त माना जाता था. एक दिन, जब राजा अपनी सभा में सुखपूर्वक बैठा था, तब आकाश मार्ग से महर्षि नारद उसकी सभा में आए. राजा ने उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधिपूर्वक उन्हें आसन और अर्घ्य प्रदान किया.
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मुनि ने सुखपूर्वक बैठकर राजा से पूछा, “हे राजन! आपके सभी अंग स्वस्थ हैं क्या? क्या आपकी बुद्धि धर्म में और मन विष्णु भक्ति में स्थिर रहता है?” देवर्षि नारद की बातें सुनकर राजा ने उत्तर दिया, “हे महर्षि! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुछ कुशल है और यहां यज्ञ तथा अन्य शुभ कार्य हो रहे हैं. कृपया अपने आगमन का कारण बताएं.” तब ऋषि ने कहा, “हे राजन! मेरे आश्चर्यजनक वचनों को सुनिए.
मैं एक बार ब्रह्मलोक से यमलोक गया, जहां मैंने यमराज की श्रद्धापूर्वक पूजा की और धर्मशील तथा सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की. उसी यमराज की सभा में मैंने आपके पिता को देखा, जो एकादशी का व्रत भंग करने के कारण वहां उपस्थित थे. उन्होंने संदेश भेजा है, जिसे मैं आपको बताता हूं. उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में किसी विघ्न के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं. इसलिए, हे पुत्र, यदि तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे लिए करते हो, तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है.
यह सुनकर राजा ने कहा कि- हे महर्षि, कृपया इस व्रत की विधि मुझे बताएं. नारदजी ने उत्तर दिया- आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल श्रद्धापूर्वक स्नान आदि से निवृत्त होकर, फिर दोपहर में नदी आदि में जाकर स्नान करें. इसके बाद श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें. प्रात:काल एकादशी के दिन दातून आदि करके स्नान करें, फिर व्रत के नियमों को भक्तिपूर्वक स्वीकार करते हुए प्रतिज्ञा करें कि ‘मैं आज सभी भोगों को त्याग कर निराहार एकादशी का व्रत करूंगा.
हे अच्युत! हे पुंडरीकाक्ष! मैं आपकी शरण में हूं, कृपया मेरी रक्षा करें. इस प्रकार विधिपूर्वक शालिग्राम की मूर्ति के समक्ष श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार का भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें. पितरों के श्राद्ध से जो बचे, उसे गौ को सूंघकर दें और धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें. रात्रि में भगवान के निकट जागरण करें. इसके बाद द्वादशी के दिन प्रात:काल भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं. भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित आप भी मौन होकर भोजन करें.
नारद जी ने कहा, हे राजन! यदि तुम इस विधि से आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे, तो तुम्हारे पिता अवश्य स्वर्गलोक को जाएंगे. इतना कहकर नारदजी अंतर्ध्यान हो गए.
नारद जी के अनुसार, जब राजा ने अपने परिवार और दासों के साथ व्रत किया, तब आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई. इस व्रत के फलस्वरूप, उस राजा का पिता गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक चला गया. राजा इंद्रसेन ने भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से बिना किसी बाधा के शासन किया और अंततः अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्ग लोक को प्रस्थान किया.
हे युधिष्ठिर! मैंने तुम्हें इंदिरा एकादशी के व्रत का महत्व बताया है. इस व्रत का पाठ करने और सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और विभिन्न भोगों का आनंद लेकर बैकुंठ की प्राप्ति करता है. इसके अतिरिक्त, यह व्रत पितृ दोष को समाप्त करता है और पितरों को मोक्ष दिलाने में सहायक होता है.