श्राद्ध की परंपरा रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है.रामायण में भगवान राम ने अपने पिता दशरथ और महाराभारत में पांडवों ने अपने परिवारजनों का श्राद्ध किया था.
Pitru Paksha 2024 : हिन्दू धर्म में पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए अश्विन मास में आने वाले पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण किया जाता है. मान्यता है कि इससे उन्हें भोजन और जल मिलता है और आत्मा को शांति मिलती है. जिससे पूर्वज परिवारजनों पर अपनी कृपा बरसाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी जीते जी अपने खुद के श्राद्ध के बारे में सोचा है? यह विचार काफी अजीब है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप ऐसा कर सकते हैं? दरअसल, धर्मशास्त्रों के अनुसार व्यक्ति अपना जीते जी भी खुद का श्राद्ध कर सकता है. हालांकि इसके लिए कुछ स्थिति भी बताई गई है, आइए जानते हैं श्राद्ध से जुड़ी इस परंपरा के बारे में भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
इस स्थिति में किया जा सकता है खुद का श्राद्ध
धर्म शास्त्रों की मानें तो जब किसी व्यक्ति के परिवार में वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई व्यक्ति ना हो और जब वह किसी कारण से खुद की मृत्यु होने के बारे में अवगत हो तो वह ऐसा कर सकता है. दरअसल, यदि कोई व्यक्ति अधिक बीमार रहता है और कई बार चिकित्सक भी उसके जिंदा रहने के समय के बारे में बता देते हैं और वह जान जाता है कि अधिक समय नहीं जी सकता और उसके परिवार में कोई उसका श्राद्ध करने वाला आगे नहीं है, तो वह ऐसी स्थिति में खुद अपना श्राद्ध कर सकता है और पिंडदान भी.
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स्त्रियां भी कर सकती हैं श्राद्ध?
आपने हमेशा पुरुषों को ही श्राद्ध या तर्पण करते हुए देखा होगा लेकिन कई बार मन में प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रियां भी यह कार्य कर सकती हैं? इसका जवाब है हां. विद्वानों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के परिवार में पितृकुल या मातृकुल में कोई भी पुरुष है ही नहीं तो ऐसी स्थिति में घर की स्त्रियां भी श्राद्ध कर सकती हैं.
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पुरानी है श्राद्ध की परंपरा
आपको बता दें कि श्राद्ध की परंपरा रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है. ग्रंथों के अनुसार, रामायण में भगवान राम ने अपने पिता दशरथ और महाभारत में पांडवों ने अपने पितरों का श्राद्ध किया था. वहीं कौरवों का वंश पूरी तरह से खत्म होने पर भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से श्राद्ध कराया था. ऐसे में यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है और पूर्वजों के साथ दादा, परदादा और आज की पीढ़ी इस परंपरा से बंधी हुई है.
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FIRST PUBLISHED : September 19, 2024, 14:31 IST