Pitru Paksha Mela 2024: पितृ पक्ष 2024 शुरू हो चुका है. आज 18 सितंबर से लेकर ये 2 अक्टूबर तक चलने वाला है. पितृ पक्ष हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो आमतौर पर सितंबर-अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है. इसे “श्राद्ध पक्ष” भी कहा जाता है.
गया के पितृपक्ष मेला का महत्व क्या है ?
गया का पितृपक्ष मेला भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं. यह मेला हर साल सितंबर से अक्टूबर के बीच आता है और विशेष रूप से गया शहर में आयोजित होता है. इस समय लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं, ताकि वे अपने परिवार के पूर्वजों के लिए पिंड दान और अन्य धार्मिक क्रियाएं कर सकें. गया का माहात्म्य धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, और इसे “पितृों का तीर्थ” भी कहा जाता है. यदि आप गए हैं या जाने का मन बना रहे हैं, तो वहाँ का माहौल, विशेषत: श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह, बहुत ही अद्भुत होता है.
Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष की हुई शुरूआत, जानें श्राद्ध के नियम
Pitru Paksha 2024: इस वर्ष 14 दिन का पितृपक्ष, इतने ही दिन कर पाएंगे तर्पण तथा पिंडदान
Pitru Paksha 2024: शुरू होने वाला है पितृ पक्ष, जरूर करें इस मंदिर के दर्शन, पितृदोष से मिलेगी मुक्ति
15 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों द्वारा पिंडदान किए जाने की उम्मीद
अधिकारियों ने बताया कि विष्णुपद मंदिर में होने वाले मेले में देश भर से 15 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों द्वारा अपने पितरों का ‘पिंडदान’ किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है. बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने मंगलवार को मंत्री विजय कुमार चौधरी, प्रेम कुमार और संतोष कुमार सुमन और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप जयसवाल की उपस्थिति में इस 16 दिवसीय मेले का उद्घाटन किया.
पितृ पक्ष के दौरान, दुनिया भर से हिंदू गया क्षेत्र में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर में अपने पूर्वजों के लिए ‘पिंड दान’ करने के लिए इकट्ठा होते हैं. अधिकारियों ने बताया कि जिला प्रशासन ने तीर्थयात्रियों के लिए गांधी मैदान में अन्य व्यवस्थाओं के अलावा टेंट भी लगाए हैं. उन्होंने बताया कि शहर में बड़ी संख्या में लोगों के आने को देखते हुए सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.
पितृपक्ष को लेकर क्या है मान्यता
मान्यता है कि इस समय पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं, और उन्हें श्रद्धा के साथ भोजन अर्पित किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो लोग ये अनुष्ठान करते हैं, उन्हें ‘पितृ दोष’ से मुक्ति मिलती है और उनके पूर्वजों को जन्म तथा मृत्यु के चक्र से ‘मुक्ति’ मिलती है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है.