Happy Birthday: भारतीय टीम के पूर्व कोच ग्रेग चैपल आज (7 अगस्त) अपना 76वां जन्मदिन मना रहे हैं. ग्रेग चैपल का जन्म आज ही के दिन साल 1948 में हुआ था. भारत टीम के साथ ग्रेग चैपल की कई सारी यादें जुड़ी हुई है. आज उनके जन्मदिन के दिन हम उनसे जुड़ी कुछ खास चीजों के बारे में जानेंगे. जिसमें सौरव गांगुली के करियर की सबसे मुश्किल दौर से लेकर क्या है वो 7 दिन का राज? इन सारी बातों का खुलासा करेंगे. तो चलिए जानते हैं.
Happy Birthday: ग्रेग चैपल 2005 से 2007 तक टीम इंडिया के कोच रहे
ग्रेग चैपल 2005 से 2007 तक टीम इंडिया के कोच थे और उस वक्त सौरव गांगुली टीम के कप्तान हुआ करते थे. 2005 में भारतीय टीम के कोच जॉन राइट का कार्यकाल खत्म हुआ था. उस वक्त कोच बनने की दौड़ में क्रिकेट जगत के कई दिग्गज लाइन में थे जिनमें मोहिंदर अमरनाथ और टॉम मूडी जैसे लोग शामिल थे, लेकिन सौरव गांगुली की पसंद ग्रेग चैपल थे इसलिए टीम प्रबंधन ने उन्हें कोच बनाया. जबकि सच्चाई यह थी कि चैपल के पास कोच का बहुत अनुभव नहीं था. लेकिन प्रबंधन ने सौरव गांगुली के कहने पर ग्रेग चैपल को कोच बनाया.
Happy Birthday: 7 दिनों की वजह से कोच बने थे चैपल
आपकी जानकारी के लिए बता दें, गांगुली और चैपल एक समय में काफी अच्छे दोस्त हुआ करते थे. खास बात तो ये हैं कि इन दोनों ने सात दिन एक दूसरे के साथ भी बिताए थे. जिसके बारे में न तो तत्कालीन टीम के सदस्यों को पता चला था और न ही किसी और को इस बात के बारे में मालूम था. ये भी सच है कि इन्हीं सात दिनों की दोस्ती का इनाम ग्रेग को तब मिला, जब दादा ने उन्हें टीम इंडिया का कोच बनाया.
Happy Birthday: क्या है वो 7 दिन का राज?
सौरव गांगुली ने सात दिन की दोस्ती के बारे में ऑटोबायोग्राफी अ सेंचुरी इज नॉट एनफ में लिखा, ‘बात 2003 की है. भारतीय टीम हाल ही में विश्व कप के फाइनल में पहुंची थी. इसलिए अगली सीरीज के लिए भी हमारे हौसले बुलंद थे. हमें साल के आखिरी महीने में ऑस्ट्रेलिया जाना था. यही अब साल की सबसे अहम सीरीज थी. स्टीव वॉ बोल चुके थे कि ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए. यह सच है कि कम से कम उस दौर में ऑस्ट्रेलिया को उसके घर में हराना असंभव सा था. लेकिन अगर बतौर कप्तान ये बात मैं मान लेता तो सीरीज का फैसला तो मैदान पर उतरने से पहले ही हो जाता. इसलिए मैंने तय कि किया कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक होने की जरूरत है. इसके लिए पहला टारगेट मैंने खुद के लिए सेट किया.’ सौरव गांगुली ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में आगे लिखा, ‘मैं सात दिन चैपल के साथ रहा. इस दौरान हम सिडनी में सुबह-शाम नेट प्रैक्टिस करते. प्रैक्टिस पिच बहुत खराब थी, लेकिन यह एक तरह से अच्छा था. मैं खुद को बदतर से बदतर स्थिति के लिए तैयार करना चाहता था. चैपल के साथ रहकर मुझे यह पता चला कि गेंदबाज किस लेंथ पर गेंदबाजी करेंगे. किस मैदान की पिच कैसी है. किस मैदान पर एक स्पिनर के साथ उतरे और किसमें दो स्पिनरों के साथ.’
ग्रेग को क्रिकेट की गजब की समझ थी: गांगुली
सौरव गांगुली ने अपनी किताब में आगे लिखा, ‘ग्रेग को क्रिकेट की गजब की समझ थी. ऑस्ट्रेलियाई मैदान बड़े थे, इसलिए फील्ड प्लेसमेंट भी अहम होती थी. मैं यह समझने के लिए ग्रेग को मैदान के कई हिस्से में ले गया और यह समझने की कोशिश की कि फील्डर को कहां खड़ा करना चाहिए, ताकि वह ज्यादा एरिया कवर कर सके. जब मैं इससे पहले 1992 में ऑस्ट्रेलिया गया था, तब फील्ड प्लेसमेंट बड़ी समस्या लगी थी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी अक्सर तीन रन दौड़ लेते थे. हमारी टीम के कई खिलाड़ी विकेटकीपर तक थ्रो ही नहीं कर पाते थे. हम तीन रन कम ही दौड़ पाते थे. इसकी एक वजह फिटनेस और दूसरी वजह फील्ड की सजावट थी. ऑस्ट्रेलियाई अच्छी तरीके से जानते थे कि फील्डर को कहां खड़ा करना है.’