Sunday, November 17, 2024
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Entertainment : Puppet Forms : प्राचीन है भारतीय कठपुतली कला

Entertainment : Puppet Forms : शताब्दियों से हमारे देश में मनोरंजन के लिए पुतलियों का उपयोग किया जाता रहा है. पारंपरिक नाटक की ही तरह पुतली नाट्य महाकाव्यों और दंत कथाओं पर आधारित रही हैं. जिस तरह भारत के हर क्षेत्र की अपनी परंपराएं और विभिन्नताएं हैं, उसी आधार पर देश के विभिन्न प्रांतों की पुतलियों की भी अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है. इसी कारण इनमें चित्रकला और मूर्तिकला की क्षेत्रीय शैली की झलक दिखती है. पुतली कला की कई शैलियां हैं, जैसे धागा पुतली (string puppet), छाया पुतली (shadow puppet), छड़ पुतली (rod puppet), दस्ताना पुतली (glove puppet) आदि. यहां हम जानते हैं छड़ पुतली और दस्ताना पुतली के बारे में.

छड़ पुतली (rod puppet)

छड़ पुतली दस्ताना पुतली का अगला चरण है, परंतु यह उससे काफी बड़ी होती है. इसके नीचे छड़ लगा होता है और उसी से यह संचालित होती है. पुतली कला की यह शैली पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में पायी जाती है.

पुतुल नाच, पश्चिम बंगाल : पश्चिम बंगाल की छड़ पुतली कला परंपरा को पुतुल नाच कहा जाता है. ये पुतलियां काठ से बनायी जाती है और इनमें क्षेत्र विशेष की विभिन्न कला शैलियों का अनुसरण किया जाता है. इसमें संचालक की कमर से बांस की टोपी बंधी रहती है और उस पर पुतलियों से जुड़ी छड़ें लगी रहती हैं. प्रत्येक पुतली का संचालक पर्दे के पीछे खड़ा रह कर स्वयं हलचल एवं नृत्य करता है, जिससे उसकी पुतलियां भी हिलती-डुलती हैं. यह कला लोक नाटक जात्रा से काफी मिलती है.

ओडिशा की छड़ पुतली : ओडिशा की छड़ पुतलियां आकार में छोटी होती हैं, लगभग 12 से 18 इंच लंबी. इन पुलतियों में भी तीन ही जोड़ होते हैं, लेकिन इसके हाथ छड़ यानी रॉड की जगह धागे से बंधे होते हैं. इस प्रकार पपेटरी यानी पुतली के इस प्रकार में छड़ और धागा दोनों का उपयोग होता है. हालांकि इसके संचालन की विधि थोड़ी अलग होती है. पुतली संचालक पर्दे के पीछे जमीन पर बैठ कर पुतली का संचालन करता है.

यमपुरी, बिहार : बिहार की पारंपरिक छड़ पुतलियों को यमपुरी के नाम से जाना जाता है. ये पुतलियां काठ की बनी होती हैं. पश्चिम बंगाल और ओडिशा की छड़ पुतलियों से उलट इन पुतलियों में कोई जोड़ नहीं होता है. यानी ये वन पीस होती हैं. चूंकि इनमें कोई जोड़ नहीं होता है, इसलिए इनका संचालन अन्य छड़ पुतलियों से भिन्न होता है. इन्हें चलाने के लिए कलाकार का पूरी तरह दक्ष होना आवश्यक होता है.

दस्ताना पुतली (glove puppet)

पुतली कला की इस शैली को भुजा, कर या हथेली पुतली भी कहा जाता है. इन पुतलियों का सिर मेशे (कुट्टी), कपड़े या लकड़ी का बना होता है तथा गर्दन के नीचे से दोनों हाथ बाहर निकलते हैं. बाकी शरीर के नाम पर केवल एक लहराता हुआ घाघरा होता है. भारत में दस्ताना पुतली की परंपरा उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल में लोकप्रिय है.

पावाकूथु, केरल : केरल में पारंपरिक दस्ताना पुतली नाटकों को पावाकूथु कहा जाता है. इसका प्रादुर्भाव 18वीं शताब्दी में कथकली के प्रभाव के कारण हुआ था. पावाकूथु में पुतली की लंबाई एक से दो फीट के बीच होती है. मस्तक और दोनों हाथ लकड़ी से बना कर एक मोटे कपड़े से जोड़े जाते हैं और फिर एक छोटे थैले के रूप में सिल दिये जाते हैं. संचालक इसी थैले में अपने हाथ डाल कर पुतली के मस्तक और हाथों का संचालन करता है.


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